उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, भाजपा के क्षत्रपों पर बल पड़ते नजर आ रहे हैं। इनके इस तनाव की सबसे बड़ी वजह है कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में शामिल हुए विजय बहुगुणा को आलाकमान से मिलती तरजीह। टिकट बंटवारे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने से लेकर पार्टी के स्टार प्रचारकों में शामिल होने के अलावा बहुगुणा दिल्ली तक अपनी मजबूत पैठ बनाए हैं।
अपने अलग अंदाज में काम करने के लिए पहचाने जाने वाले बहुगुणा एक समय कांग्रेस आलाकमान के काफी करीबी थे। इसी के चलते उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, मगर 2013 की आपदा के बाद उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी। उत्तराखंड की सियासत में यह बात जगजाहिर है कि हरीश रावत और बहुगुणा के बीच संबंध कभी बेहतर नहीं रहे।
उसके बाद से बहुगुणा की कोशिश हमेशा से हरीश रावत को अकेला करने की रही। हालांकि बहुगुणा जब भाजपा में शामिल हुआ तो कई महीनों तक उनका अतापता नहीं रहा। मगर बहुगुणा शायद सही समय का इंतजार कर रहे थे।
यह सही समय आया विधानसभा चुनाव के ठीक पहले। चुनाव पास आते ही बहुगुणा ने ऐसी गणित भिड़ाई कि कांग्रेस के तमाम बड़े नाम ताश के पत्तों की तरह बिखरकर भाजपा की झोली में आ गिरे।