कोप्पल। कर्नाटक में एक सत्र न्यायालय ने दलितों के खिलाफ किए गए अत्याचारों के लिए सामूहिक रूप से दोषी ठहराए गए 98 व्यक्तियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यह अभूतपूर्व फैसला पहली बार है जब जाति-आधारित हिंसा से संबंधित मामलों में इतनी बड़ी संख्या में प्रतिवादियों को सामूहिक रूप से सजा सुनाई गई है। इसके साथ-साथ सभी दोषियों पर 5-5 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
यह मामला 28 अक्टूबर 2014 को कोप्पल जिले के गंगावती तालुका के मरुकुम्बी में हुए जाति संघर्ष का है। कोप्पल कोर्ट के न्यायाधीश चंद्रशेखर सी. ने यह फैसला सुनाया। जानकारी के मुताबिक यह देश का पहला ऐसा मामला है जिसमें जाति संघर्ष केस में 101 लोगों को दोषी ठहराया गया है। सरकारी वकील अपर्णा बूंदी ने कहा कि मामले में 117 लोगों को आरोपी बनाया गया था, इनमें से 16 की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई।
बता दें, कोर्ट में 101 आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित हुए। जातिगत गाली-गलौज का मामला उन तीन लोगों पर लागू नहीं हुए क्योंकि ये तीनों अनुसूचित जाति और जनजाति से संबंधित थे, इसलिए 101 लोगों में से इन तीन दोषियों को पांच साल की जेल और 2 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। हालांकि, दंगा करने के लिए उन्हें पांच साल के लिए जेल की सजा भुगतनी पड़ेगी।
यह है मामला
यह मामला 28 अगस्त 2014 का है। जब गांव के होटलों और नाई की दुकानों में दलितों को प्रवेश देने से मना करने पर पीड़ितों और आरोपियों के बीच झड़प हो गई थी। जिसके बाद आरोपियों ने गंगावती तालुक के मराकुंबी गांव में दलित समुदाय के लोगों के घरों में आग लगा दी थी। इस घटना के बाद राज्य के कई हिस्सों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ था। इस हिंसा के कारण माराकुम्बी को तीन महीने तक पुलिस की सख्त निगरानी रही थी। इतना ही नहीं राज्य की दलित अधिकार समिति ने इस हिंसा के विरोध में मरुकुम्बी से बेंगलुरु तक एक मार्च का भी आयोजन किया था। साथ ही काफी लंबे समय तक गंगावती थाने का घेराव कई दिनों तक चला था।