उत्तरकाशी। धराली में बीते पांच अगस्त को पानी के साथ बह कर आए मलबे में आठ से दस फीट नीचे तक होटल और लोग दबे हुए हैं। इसकी जानकारी एनडीआरएफ की ओर से प्रयोग की गई ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (जीपीआर) के माध्यम से मिली है। इसके प्रयोग से मिलने वाले तत्वों के आधार पर ही एनडीआरएफ और एसडीआरएफ धराली में मलबे के ऊपर खुदाई कर रही है।
आपदा के बाद सहारनपुर के तीन युवक लापता हैं. तीनों धराली में वेल्डिंग का काम करते थे। सहारनपुर के इन परिवारों की आंखों में अब भी उम्मीद की लौ जल रही है, शायद उनका कोई अपना मलबे से जिंदा निकल आए। इसी उम्मीद में वो पिछले 7 दिनों से उत्तरकाशी के मातली हेलीपैड पर डटे हुए हैं।
बता दें कि धराली आपदा के बाद अपनों की तलाश में परिजन दर-दर भटकने को मजबूर हैं। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के जुखेड़ी गांव निवासी कपिल ने अपने परिवार की इस दर्दभरी दास्तां को उत्तरकाशी के मातली हेलीपैड पर पर बयां किया। उन्होंने बताया उनका छोटा भाई मुकेश कुमार (उम्र 22 वर्ष), चाचा मोनू का बेटा दीपांशु (उम्र 19 वर्ष), ननौता गांव निवासी आफताब (उम्र 18 वर्ष) तीनों धराली में वेल्डिंग का काम करते थे।
कपिल ने बताया कि ‘5 अगस्त की सुबह करीब 9 बजे मेरे पिता राम सिंह ने भाई मुकेश से फोन पर बात की थी। भाई ने बताया था कि यहां हल्की-हल्की बारिश हो रही है और वो काम पर जा रहा है।’ यह कहते हुए कपिल की आंखें भर आती हैं कि उसी दिन दोपहर में खबर मिली कि धराली क्षेत्र में भयंकर आपदा आ गई है।’हमने मुकेश को फोन किया, लेकिन नंबर बंद मिला। फिर दीपांशु को कॉल की, वहां से भी कोई जवाब नहीं आया।’
कपिल ने बताया कि दीपांशु अपने परिवार का इकलौता बेटा है। दो महीने पहले ही मुकेश और आफताब के साथ धराली आया था। धराली में आपदा की वीडियो देखने के बाद हम लोग तत्काल सहारनपुर से रवाना हुए अगले दिन सुबह उत्तरकाशी पहुंचे। मन में एक ही आस थी कि शायद वो सब सुरक्षित मिल जाएं, लेकिन गगनानी से आगे धराली वाला रास्ता और सड़क टूट चुकी थी।