उत्तरकाशी। देशभर में चुनावी सरगर्मी के बीच उत्तराखंड में भी लोकसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है। राज्य में 19 अप्रैल को पहले चरण में पांच सीटों पर मतदान होना है। उत्तराखंड में अब तक हुए लोकसभा चुनावों में बसपा भले ही कोई सीट नहीं जीत पाई लेकिन बसपा प्रत्याशी को मिले मतों ने अन्य पार्टियों के प्रत्याशियों की जीत के समीकरण जरूर प्रभावित किए हैं।
बता दें कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद बहुजन समाज पार्टी के हाथी ने पहाड़ों पर कई बार चढ़ने का प्रयास किया है, लेकिन उसे हर बार निराशा ही हाथ लगी। विधानसभा चुनाव में प्रदेश के मैदानी जिले हरिद्वार से एक बार बसपा को सफलता भी मिली है, लेकिन लोकसभा चुनाव में पहाड़ पर कभी सफल होती नहीं दिखी। यहां बसपा के वोटर बढ़ने के बजाए घटते ही रहे।
बसपा ने साल 2004 के लोकसभा चुनाव में टिहरी लोकसभा सीट से प्रत्याशी मैदान में उतारा था। लेकिन बाद में प्रत्याशी ने ही नाम वापस ले लिया था। उसके बाद साल 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से बगावत कर मुन्ना सिंह चौहान बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे थे। उन्हें जौनसार पृष्ठभूमि और देहरादून जिले के नाते करीब 90 हजार के आसपास मत मिले।
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उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में टिहरी लोकसभा सीट पर बसपा से वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष शीशपाल चौधरी ने चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें मात्र 25 हजार वोट ही मिल पाए थे। बसपा ने फिर वर्ष 2019 में तत्कालीन देहरादून के जिलाध्यक्ष सत्यपाल को मैदान में उतारा था, जिन्हें सिर्फ 15 हजार वोट ही मिले थे।
अब वर्तमान में बसपा ने मैदानी इलाकों को छोड़ सीमांत जनपद उत्तरकाशी के पुरोला विधानसभा से प्रत्याशी मैदान में उतारा है। अब यह तो मतगणना के दिन ही पता लग पाएगा कि क्या बसपा पहाड़ के प्रत्याशी के नाम पर मतों की संख्या बढ़ा पाएगी। बसपा के प्रदेश सचिव सतेन्द्र खत्री का कहना है कि उत्तराखंड की जनता भाजपा और कांग्रेस के कार्यकाल से परेशान हो गई है। इसलिए बसपा लगातार जनता के बीच आकर इन दोनों की कमियों को उजागर कर रही है।