देहरादून : छात्र-छात्राओं ने जानी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की महत्ता देहरादून। आज बुधवार को यू-सैक के सभागार में राजकीय महाविद्यालय डोईवाला के विज्ञान एवं भूगर्भ-विज्ञान के छात्र-छात्राओं हेतु विभिन्न क्षेत्रों में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका एवं इसके अनुप्रयोग विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला के स्वागत सत्र में यू-सैक के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट ने कहा कि आज मानव ने अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में काफी उन्न्नति की हैं। जहां पृथ्वी से इतर ग्रहो के रहस्यों का भेद पाने के लिए मनुष्य चांद पर पहुॅच चुका है तो दूसरी तरफ उसने मानव जीवन में ज्ञान-विज्ञान और सुख-सुविधाओं का विस्तार करने के उद्ेश्य से अंतरिक्ष में अत्याधुनिक तकनीक सम्पन विभिन्न प्रकार के उपग्रहों को स्थापित करने में अदभुद सफलता प्राप्त की हैं। आज हमारा देश अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व में अपना विशेष स्थान रखता है। हमारे देश ने अपने विभिन्न अंतरिक्ष कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ, कृषि, नियोजन,सूचना एवं संचार आदि क्षेत्र में विशेष प्रगति हासिल की है। प्रो. बिष्ट ने छात्र-छात्राओं से अपेक्षा की कि आज की इस प्रशिक्षण कार्यशााला में दिये जाने वाले व्याख्यानो एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण को हृदय से आत्मसात करेगें।
कार्यशाला के तकनीकी सत्र के अर्न्तगत के प्रथम सत्र में बेसिक आफॅ रिर्मोट सेंसिग विषय पर जानकारी देते हुुए केन्द्र के वैज्ञानिक श्री पुष्कर कुमार ने छात्र-छात्राओं को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका एवं विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे अनुप्रयोगों के बारे में अवगत कराया। उन्होने बताया कि जीआईएस यानि (जियोयोग्राफिक इंफोर्मेशन सिस्टम) अर्थात भौगोलिक सूचना तंत्र एक ऐसा कम्पूटर इंफोर्मेशन सिस्टम है जो डाटा को इनपुट, स्टोर, मेनुप्लेट, एनालाइज करता हैं। जीआईएस के टूल्स डाटा, हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, मल्टीमिडिया, लोग, प्रक्रिया हैे। जीआईएस का मैपिंग, दूरसंचार और नेटवर्क, शहरी नियोजन, कृषि एवं बागवानी, नियोजन एवं नितिनिर्धारण में विशेष महत्वा हैं। उन्होने बताया कि रिर्मोट सेंसिग से तात्पर्य एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी वस्तु या स्थान के सम्पर्क में आये बिना ही इसकी सम्पूर्ण जानकारी उपग्रह से प्राप्त कर ली जाती हैं।
तकनीकी सत्र के दूसरे सत्र में जियोयोस्पशियल टैक्नोलोजी इन लैंड रिर्सोस मैनेजमेंट विषय पर जानकारी देते हुए केन्द्र के वै्रज्ञानिक डा. सुषमा गैरोला ने ‘जियोस्पाशियल टैक्नोलॉजी फॉर लैण्ड यूज/लैण्ड कवर मैपिंग’ पर व्याख्यान दिया उन्होंने बताया कि सैटेलाइट डेटा के उपयोग से सृजित भू-उपयोग/ भू-आवरण किसी भी क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण सूचना है, इसमें उस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों- जल, वन, भूमि, कृषि, अधिवास, रोड़/रेलवे, डेªेनेज, आधारभूत सुविधाओं से संबंधित समस्त सूचनाएं सम्मिलित होती हैं विकास एवं नियोजन कार्यों के क्रियान्वयन में बेहद उपयोगी है। अपने प्रस्तुतीकरण में उन्होंने राज्य में भू-संसाधनों की स्थिति एवं उनके अनुश्रवण में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विभिन्न आयामों तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे नये-नये प्रयोगों से विद्यार्थियों को परिचित कराया। साथ ही बताया कि यूसैक द्वारा रिमोट सेंसिंग एवं जी.आई.एस. तकनीकी की सहायता से मल्टी टेम्पोरल सैटेलाइट डेटा के उपयोग से राज्य के भू-संसाधनों का विविध स्केलों पर मानचित्रीकरण किया गया है तथा पांच वर्षों के निश्चित समयसीमा के अंतराल पर विभिन्न समयावधि में भू-उपयोग में आ रहे प्रमुख बदलावों को चिन्हित कर राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का जियोस्पशियल डेटाबेस को अपडेट किया गया है।
तकनीकी सत्र के तृतीय सत्र में एप्लीकेशन आफॅ आरएस एण्ड जीआईएस विषय पर जानकारी देते हुए केन्द्र के वै्रज्ञानिक डा. गजेन्द्र सिंह बताया कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विभिन्न आयामों का वानिकी में कैसे प्रयोग होता है। जिसमें जैव-विविधता आंकलन, प्रजातियों का वितरण, औषधीय एवं सगंध पादको का अध्यन, वनो में आ रहे बदलाव का अध्ययन, जंगल में हो रहे वनाग्नि घटनाओं का अध्ययन आदि पर छात्र-छात्राओं को विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी।
तकनीकी सत्र के चतुर्थ सत्र में हेमन्त बिष्ट ने छात्र-छात्राओं को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी आधारित विभिन्न एप्लीकेशन जैसे- गूगल अर्थ, गूगल मेप, के अनुप्रयोग के विषय में जानकारी प्रदान की।
कार्यशाला के अन्तिम सत्र में छात्र-छात्राओं को हेंडसाऑन टैनिंग में केन्द्र में कार्यरत सीनियर रिर्सच फैलो डा. नवीन चन्द्र ने उपग्रह से प्राप्त ईमेज को इण्टरप्रेट एवं प्रोसेस करने की जानकारी प्रदान की। प्रायोगिक सत्र में प्रतिभागियों को जीपीएस से अक्षांतर एवं देशान्तर से लोक्ेशन प्राप्त करना सिखाया।
कार्यशाला में छात्र-छात्राओं के दल के साथ आयी महाविद्यालय की प्राधापिका डा. कंचन सिंह ने यू-सैक का धन्यवाद करते हुए कहा कि यू-सैक द्वारा समय-समय पर छात्र-छात्राओं एवं रेखिय विभागों के लिए इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है जिनके माध्यम से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की महत्वापूर्ण जानकारी लाभार्थियों को प्रदान की जाती हैं। आज के प्रशिक्षण कार्यशाला में छात्र-छात्राओं को इसका व्यहारिक एवं प्रायोगिक ज्ञान प्राप्त हुआ जो कि उनके शैक्षिक एवं व्यवहारिक जीवन में लाभकारी सिद्ध होगा।
केन्द्र के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट द्वारा कार्यशाला में प्रतिभाग कर रहे छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षण प्रमाण पत्र भी प्रदान किये गये।
कार्यशाला का संचालन डा. सुषमा गैराला द्वारा किया गया। कार्यशाला में यू-सैक के वैज्ञानिक अरूणा रानी, डा. प्रिर्यदर्शी उपाध्याय, डा. नीलम रावत, डा. आशा थपलियाल, शशांक लिगवाल, आरएस मेहता, सुधाकर भट्ट, दिव्या उनियाल, हेमन्त बिष्ट, श्री नवीन चद्र, कुमारी सोनम बहुगुणा, विवेक तिवारी, विपुल बिष्ट, यहया काजमिन एवं प्रतिभागी उपस्थित रहे।