- त्रिवेंद्र सिंह रावत को साफ छवि, लगातार सक्रियता मिलता दिख रहा फायदा
- बेटे वीरेंद्र के राजनीतिक सफर का दमदार आगाज़ करना चाहते हैं हरीश रावत
- निर्दलीय उमेश कुमार के लिए क्रेडिबिलिटी सबसे बड़ी चुनौती
देहरादून। कहते हैं सियासी तापमान और अंडर करेंट का पता लगाना हो तो बिना तामझाम के किसी भी शहर के अलग-अलग हिस्सों में निकल जाइये, जमीनी हकीकत खुद सामने आ जाएगी। उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों में सबसे दिलचस्प हरिद्वार सीट पर मुकाबला सोशल मीडिया पर भले ही कड़ा बनाया और बताया जा रहा हो लेकिन जमीन पर एकतरफा दिखता है। यह सीट 2024 में भी अपने पिछले परिणाम को दोहराने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 400 पार के नारे और चेहरे पर लोगों का भरोसा पहले से ज्यादा मजबूत दिखता है। हरिद्वार में उनके नाम और काम का क्रेज साफ नजर आ रहा है। यहां से भाजपा के प्रत्याशी त्रिवेंद्र सिंह रावत को साफ छवि, पिछले कुछ समय से लगातार रही सक्रियता और सीएम रहते हुए हरिद्वार के लिए कराए गए कामकाज का फायदा मिलता दिख रहा है।
पिछले एक साल के दौरान वह ब्लड डोनेशन कैंप को लेकर लगातार युवाओं के बीच में रहे। कई कॉलेजों में जाकर उन्होंने युवाओं से सीधा संवाद किया। हरिद्वार-ऋषिकेश और देहरादून की दूरी घटाने वाले हाईवे और ब्रिज भी उनकी दावेदार को रफ्तार दे रहे हैं। उन्हें संत-समाज का आशीर्वाद भी प्राप्त है। अयोध्या में राममंदिर का निर्माण एक ऐसा मुद्दा है, जो भाजपा के लिए गेमचेंजर साबित होने जा रहा है। कई जगह लोग पीएम मोदी की योजनाओं का खुलकर जिक्र कर रहे हैं।
पिछले एक हफ्ते में कई बार सांसद रमेश पोखरियाल निशंक और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ दिखे हैं। यहां तक कि पौड़ी से लोकसभा चुनाव लड़ रहे अनिल बलूनी भी लगातार त्रिवेंद्र सिंह के साथ नजर आ रहे हैं। यह उनकी सांगठनिक मजबूती और सियासी कद के महत्व को दर्शाता है। मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के दो साल बाद वह सुर्खियों के केंद्र में हैं। हरिद्वार से लगातार कई बड़े चेहरे भाजपा में शामिल हो रहे हैं।
2019 के लोकसभा चुनावों में 20 प्रतिशत से ज्यादा वोटों के अंतर से हरिद्वार सीट भाजपा की झोली में आई थी। इस बार ये अंतर बढ़ता दिख रहा है। उत्तराखंड में हरिद्वार ही एकमात्र सीट है, जहां पर मुकाबला दो दलों के बीच न होकर त्रिकोणीय होता है। यहां भाजपा, कांग्रेस और बसपा में सीधी लड़ाई होती है। इस बार एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी यहां खम ठोका है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में खानपुर सीट जीतने वाले उमेश कुमार लोकसभा में अपनी किस्मत आजमाने जा रहे हैं। सोशल मीडिया ज्यादा दिखने वाले निर्दलीय प्रत्याशी उमेश कुमार के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्रेडिबिलिटी है। वह भी अच्छी तरह जानते हैं कि लोकसभा में खानपुर में भी मुश्किल होगी और दूसरी विधानसभाओं में माहौल बनाना आसान नहीं है। हेलीकॉप्टर की ‘हवाबाजी’ के चलते लोग उन्हें देखने जरूर आ रहे हैं लेकिन कितने वोट में वास्तव में तब्दील होंगे, ये एक बड़ा सवाल है। उन पर ब्लैकमेलिंग जैसे गंभीर आरोप रहे हैं।
उधर, हरिद्वार से कांग्रेस का उम्मीदवार कौन होगा, ये सस्पेंस भी अब दूर हो गया है। वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अपने बेटे वीरेंद्र रावत को टिकट दिलवाने में कामयाब हो गए हैं। उत्तराखंड की प्रभारी कुमारी शैलजा से मुलाकात के बावजूद उमेश कुमार की कांग्रेस में एंट्री रोककर उन्होंने साबित कर दिया है कि वह अब भी फैसले अपने हक में करवा सकते हैं। वीरेंद्र को अपनी सियासी विरासत को सौंपने में भले ही हरीश रावत ने देर कर दी हो लेकिन वो जानते हैं कि मोदी के पक्ष में बन रहे जबरदस्त माहौल के बावजूद अगर वीरेंद्र यहां कांग्रेसी वोटों को थामे रखने में कामयाब हो जाएंगे तो उनकी इस सीट पर दावेदारी आगे के लिए भी पुख्ता हो जाएगी। वह खुद भी चाहते हैं कि वीरेंद्र हरिद्वार सीट से अपने पहले चुनाव में असर छोड़ें।
पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने ज्वालापुर, भगवानपुर, पिरान कलियर और मंगलौर सीट पर भाजपा से ज्यादा वोट हासिल किए थे। बाकी सभी सीटों पर भाजपा कांग्रेस पर 20 साबित हुई थी। धर्मपुर, डोईवाला और ऋषिकेश सीट पर भाजपा ने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर एकतरफा बढ़त बना रखी थी। इस बार भी स्थिति कमोबेश पहले जैसी है। अंतर बस इतना है कि अब भाजपा के वोटर मुखर होकर मोदी के पक्ष में मतदान करने की बात कह रहे हैं, वहीं कांग्रेस का परंपरागत वोटर अपने पत्ते नहीं खोलता चाहता। इस लोकसभा सीट पर मुस्लिम बहुल इलाकों के वोटिंग पैटर्न को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
यहां विधानसभा चुनाव में 80 प्रतिशत तक वोटिंग हुई थी। ऐसे में भाजपा के लिए चुनौती दोतरफा है, पहला मुस्लिम वोटों में सेंध लगाना और दूसरा अपने असर वाली विधानसभाओं में वोटिंग का प्रतिशत सुधारना। पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा को कुल डाले गए वोटों का 61 प्रतिशत मत मिला था। लेकिन इस बार इतने मत-प्रतिशत को थामे रखना भी उसके लिए चुनौती है। निश्चित तौर पर राम मंदिर, विकास और सुरक्षा के मुद्दे पर भाजपा को दूसरे दलों से बढ़त हासिल है। लेकिन भाजपा को अपने कैडर और दूसरे वोटरों को मतदान केंद्रों तक लाने के लिए मेहनत करनी होगी।