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जानिए कौन हैं ‘पहाड़ की गांधी’ राधा बहन, जिन्हें मिलेगा पद्मश्री पुरस्कार…

देहरादून। उत्तराखंड की दो हस्तियों को भी इस बार पद्मश्री पुरस्कारों के लिए चयनित किया गया है। इसमें ह्यू-कोलिन गेंजर और राधा बहन का नाम शामिल है। दोनों हस्तियों को पद्मश्री पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा।

ह्यू-कोलिन गेंजर को साहित्य के क्षेत्र में योगदान देने और राधा बहन को समाज सेवा के क्षेत्र में ​उत्कृष्ठ कार्य के लिए सम्मानित किया जाएगा। उत्तराखंड के यात्रा लेखक ह्यू-कोलिन गेंजर का नाम पद्मश्री सम्मान के लिए चयनित किया गया है। मसूरी निवासी ह्यू-कोलिन गेंजर अंग्रेजी के यात्रा लेखक के रूप में जाने जाते हैं।

उत्तराखंड से पद्मश्री के लिए एक और नाम भी चयनित हुआ है, जिन्हें राधा बहन के नाम से जाना जाता है। राधा बहन अल्मोड़ा की रहने वाली है, उन्होंने उत्तराखंड के पहाड़ से जुड़े तमाम मुद्दों को लेकर कई आंदोलन किए हैं। राधा बहन भट्ट जिन्हें ‘पहाड़ की गांधी’ के नाम से जाना जाता है, पहाड़ों और उनके संसाधनों की रक्षा करने में जुटी हैं। राधा बहन भट्ट का जन्म 17 अक्टूबर 1933 को अल्मोड़ा जिले के धुरका गांव में हुआ था।

12वीं तक की पढ़ाई के बाद राधा बहन ने गांधीवादी विचारधारा को अपनाया और पर्यावरण संरक्षण, महिला शिक्षा और सशक्तिकरण में सक्रिय हो गईं। 1951 में वो कौसानी के लक्ष्मी आश्रम से जुड़ीं और यहां से उनका समाज सेवा का सफर शुरू हुआ. राधा बहन भट्ट ने 1957 में भूदान आंदोलन में भाग लिया और विनोबा भावे के साथ उत्तर प्रदेश और असम में लंबी पदयात्राओं का हिस्सा बनीं। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने ग्राम स्वराज, शराब विरोधी आंदोलन और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाई।

गांधी से प्रेरित जीवन

राधा बहन भट्ट का जीवन गांधीवादी विचारों से प्रेरित रहा है. 1961 से 1965 तक उन्होंने गांव-गांव में स्वराज, शराब विरोधी आंदोलन और महिला सशक्तिकरण के लिए काम किया। उन्होंने उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में शिक्षा का प्रसार किया। पहाड़ के दूरस्थ गांवों में 25 बाल मंदिरों की स्थापना की, जिनके माध्यम से 15,000 बच्चों को शिक्षा से जोड़ा।

चिपको आंदोलन और पर्यावरण

राधा बहन भट्ट का पर्यावरण के प्रति संघर्ष भी अद्वितीय है. 1975 में उन्होंने 75 दिनों की लंबी पैदल यात्रा निकाली, जिसमें वन संरक्षण, चिपको आंदोलन, शराब विरोधी आंदोलन और ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए लोगों को जागरूक किया गया। उन्होंने अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जिलों में लगभग 1.6 लाख पौधे लगाए और पेड़ों को बचाने के लिए निरंतर प्रयास किए।

हिमालय और नदियों की रक्षक

2006 से 2010 तक राधा बहन ने उत्तराखंड के हिमालय और नदियों के सर्वेक्षण में भी योगदान दिया. इस दौरान उन्होंने नदियों पर बनने वाली हाइड्रो पॉवर परियोजनाओं का विरोध किया और उनके संरक्षण की दिशा में काम किया। राधा बहन भट्ट ने पर्यावरण संरक्षण के लिए एक पुस्तक ‘हिमालय की बेटियां’ भी लिखी, जिसे जर्मन और डेनिश भाषाओं में प्रकाशित किया गया। इस पुस्तक में उन्होंने हिमालय क्षेत्र की महिलाओं के संघर्ष और पर्यावरण के लिए उनके योगदान को उकेरा है। इस समय वे ‘नौला’ यानी जलस्रोत बचाव अभियान चला रही हैं, जिसका उद्देश्य कौसानी क्षेत्र के नालों को पुनर्जीवित करना है।

अनगिनत सम्मान

राधा बहन भट्ट को उनके कार्यों के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं, जिनमें गांधीवादी विचारधारा के प्रसार के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार, गोदावरी गौरव, इंदिरा प्रियदर्शिनी पर्यावरण पुरस्कार, मुनि सतबल पुरस्कार और कुमाऊं गौरव पुरस्कार शामिल हैं। उन्हें शांति के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया जा चुका है।

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