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गुजरात सरकार का कारनामा : मोरबी के गुनहगारों का एफआईआर में नाम तक नहीं!

मोरबी गुजरात। यहां मच्छू नदी का केबल ब्रिज गिरने से मरने वालों की संख्या 141 हो चुकी है। इनमें 50 से ज्यादा बच्चे हैं। मौत के इन डराने वाले आंकड़ों के बीच इस घटना के जिम्मेदारों को बचाने का खेल भी शुरू हो गया है। सोमवार को पुलिस ने इस केस में जिन 9 लोगों को गिरफ्तार किया, उनमें ओरेवा के दो मैनेजर, दो मजदूर, तीन सिक्योरिटी गार्ड और दो टिकट क्लर्क शामिल हैं।
पुलिस की एफआईआर में न तो पुल को ऑपरेट करके पैसे कमाने वाली ओरेवा कंपनी का जिक्र है, न रिनोवेशन का काम करने वाली देवप्रकाश सॉल्यूशन कंपनी का। पुल की निगरानी के लिए जिम्मेदार मोरबी नगर पालिका के इंजीनियरों का भी नाम इसमें नहीं है। यानी केवल छोटे कर्मचारियों को हादसे का जिम्मेदार ठहराकर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है।
एक झटके में 141 जान लेने वाले इस हादसे को लेकर अफसर कितने गंभीर हैं, इसकी बानगी यह है कि राज्य सरकार ने जांच के लिए जिन 5 अधिकारियों की कमेटी बनाई थी, उसने भी महज 25 मिनट में अपनी जांच पूरी कर ली। गौरतलब है कि सस्पेंशन पुल को ऑपरेट करने के लिए ओरेवा कंपनी और मोरबी नगर पालिका के बीच 6 मार्च 2022 को जो एग्रीमेंट हुआ था, उसमें 300 रुपए के स्टांप पेपर पर हुए एग्रीमेंट में लिखा है कि कंपनी कब टिकट की दर बढ़ा सकेगी, कैसे पुल का कमर्शियल इस्तेमाल कर सकेगी और इसमें सरकारी एजेंसियों का दखल नहीं होगा। तीन पेज के एग्रीमेंट में इस बात का कहीं नहीं है कि हादसा होने की स्थिति में कौन जिम्मेदार होगा।
मोरबी नगर पालिका के साथ ओरेवा के समझौते के मुताबिक मरम्मत पूरी होने के बाद पुल को खोला जाना था। इस ब्रिज पर मार्च 2023 तक वयस्कों से 15 रुपये और बच्चों से 10 रुपये टिकट लेने का प्रावधान था। साल 2023-24 से हर साल टिकट में 2 रुपए बढ़ाए जाने थे, लेकिन ओरेवा ने पुल खुलते ही ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए बड़ों के लिए 17 रुपए और बच्चों के लिए 12 रुपए का टिकट बेचना शुरू कर दिया।
नियम के मुताबिक जब कोई सरकारी संपत्ति किसी निजी कंपनी को संचालन के लिए दी जाती है तो उस पर मालिकाना हक सरकारी संस्था के पास ही रहता है। जैसे हाईवे पर टोल वसूली निजी कंपनियां करती हैं, लेकिन रसीद राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के नाम से ही जारी की जाती है। मोरबी के सस्पेंशन ब्रिज के मामले में ऐसा नहीं था। पुल और टिकट दोनों पर मोरबी नगर पालिका का जिक्र तक नहीं था।
मोरबी के ऐतिहासिक पुल को सात महीने में दो करोड़ रुपए के खर्च से पुल को रिनोवेट करने का दावा किया गया था, लेकिन खुलने के पांच दिन बाद ही यह भरभराकर गिर गया। पुल पर लोगों की भीड़ के अचानक आ जाने से ओवरलोड होकर पुल गिर गया। स्ट्रक्चरल इंजीनियरों के साथ-साथ स्थानीय इंजीनियरों ने त्रासदी की शुरुआती जांच की। इसमें पता चला कि मरम्मत के दौरान पुल का वजन संभालने वाली एंकर पिन की मजबूती पर ध्यान ही नहीं दिया गया। यही वजह रही कि लोड पड़ने से पुल के दरबारगढ़ सिरे पर लगी एंकर पिन उखड़ गई और एक तरफ से कमजोर होकर पुल नदी में जा गिरा।
एंकर पिन जमीन में फिट रहते हैं और सस्पेंशन ब्रिज को दोनों ओर से थामे रहते हैं। किसी भी सस्पेंशन ब्रिज को थामने वाली केबल को दोनों किनारों पर बांधा जाता है। इसके लिए पुल के दोनों किनारों पर पक्के फाउंडेशन बनाकर उनमें लोहे के मजबूत हुक लगाए जाते हैं। ब्रिज की केबल इन्हीं हुक्स में कसी जाती है और जरूरत के मुताबिक इन्हें कसा या ढीला किया जा सकता है। यही हुक्स एंकर पिन या लंगर पिन कहलाते हैं।
सस्पेंशन ब्रिज के रिनोवेशन का काम देवप्रकाश सॉल्यूशंस को दिया गया था। उसके जिम्मे पुल के स्ट्रक्चर को मजबूत रखने की जिम्मेदारी थी। उसने पुल की नींव यानी एंकर पिन को अनदेखा कर दिया। 143 साल पुराने ब्रिज के दोनों तरफ लगी चारों एंकर पिन कितनी मजबूत हैं और क्या उन्हें बदले जाने की जरूरत है, इस पर काम करने के बजाय पूरा पैसा ब्रिज की सजावट पर खर्च कर दिया गया। मोरबी पुल में लगी एंकर पिन की क्षमता 125 लोगों की थी, लेकिन रविवार को 350 से ज्यादा लोगों को एक साथ पुल पर जाने दिया गया। ठेकेदार और अफसरों को यह ध्यान ही नहीं था कि पुल 143 साल पुराना है। उसकी एंकर पिन इतना बोझ संभालने में सक्षम नहीं थीं। नतीजा यह हुआ कि लोगों का बोझ पड़ने से ऐसी ही एक पिन टूट गई और लोग नीचे जा गिरे।

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