देहरादून। ऋषिकेश एम्स देश में पहली हेली एंबुलेंस सेवा शुरू कर इतिहास रचने जा रहा है। 29 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअली इस हेली सेवा का शुभारंभ करेंगे। आखिर 4 साल के इंतजार के बाद भारत की अपनी पहली हेली एंबुलेंस सेवा शुरू होने जा रही है। बताया गया कि पूरे उत्तराखंड में उपलब्ध यह सेवा पूरी तरह से निःशुल्क होगी और इसका दुरुपयोग न हो, इसके लिए भी खास इंतजाम किए जाएंगे। उत्तराखंड से लगे उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में भी यह सर्विस उपलब्ध रहेगी।
एम्स ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक प्रो. मीनू सिंह ने इस संबंध में जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि किसी भी क्षेत्र में हादसा होने पर घायल की स्थिति को खतरे में पाने पर डॉक्टर हेली सर्विस के लिए रिकमेंड कर सकेंगे। अगर मरीज की हालत ऐसी खराब है कि उसे कुछ घंटों के भीतर ही इलाज की जरूरत होगी तब डॉक्टर के रिकमेंडेशन से हेली ऐंबुलेंस सेवा का लाभ लिया जा सकेगा। यह सर्विस पूरे उत्तराखंड में उपलब्ध रहेगी। प्रदेश से सटे यूपी के कुछ इलाकों में भी हेली ऐंबुलेंस का लाभ लिया जा सकेगा।
क्या होता है हेली एंबुलेंस
हेली एंबुलेंस सेवा एक अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधा है जो आपातकालीन स्थितियों में रोगियों को तेज़ और सुरक्षित परिवहन प्रदान करती है। सामान्य एंबुलेंस की तुलना में, हेली एंबुलेंस से गंभीर मरीज का इलाज समय पर हो पाएगा। इसकी मदद से ज्यादा से ज्यादा मरीज की जान बच पाएगी और डेथ रेट कम होगा। हमारे देश में आए दिन सड़क दुर्घटना से हजारों लोगों की मौत हो जाती है। ऐसे में हेली एंबुलेंस उनलोगों के लिए वरदान साबित होगा। विशेषकर दुर्गम और दूरस्थ क्षेत्रों में, जहां पारंपरिक एंबुलेंस सेवा नहीं पहुंच पाती, वहां हेली एंबुलेंस का महत्व और भी बढ़ जाता है।
हेली एंबुलेंस में एक्सपर्ट डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ होते हैं, जो उड़ान के दौरान ही मरीज की स्थिति पर निगरानी रखते हैं और आवश्यक चिकित्सा मदद प्रदान करते हैं। हेली एंबुलेंस में अत्याधुनिक (Advance medical equipment) चिकित्सा उपकरण होते हैं, जैसे कि वेंटिलेटर, डिफिब्रिलेटर, और अन्य लाइफ सपोर्ट सिस्टम, जो मरीज की स्थिति को स्थिर रखने में सहायक होते हैं।
अब लोगों को समय पर मिलेगा इलाज
भारत जैसे देश में, जहां भौगोलिक विविधता (Geographic diversity) और जनसंख्या घनत्व ( population density) अत्यधिक है, वहां हेली एंबुलेंस सेवा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। पर्वतीय क्षेत्रों, घने जंगलों या बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को तुरंत इलाज नहीं मिल पाता है।