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संविधान से नहीं हटेगा ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द, SC का बड़ा फैसला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बेहद ही अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने भारत के संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को हटाने की मांग वाली कम से कम तीन याचिकाओं को खारिज कर दिया। यह शब्द 1976 में 42वें संशोधन के जरिये प्रस्तावना में डाले गए थे, जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू था।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर 22 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस याचिका में संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को शामिल किए जाने को चुनौती दी गई थी।

सीजेआई ने कहा कि दो अभिव्यक्तियां ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ 1976 में संशोधन के जरिए बनाई गई थी और यह तथ्य कि संविधान 1949 में अपनाया गया था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सीजेआई ने कहा, ‘पूर्वव्यापी तर्क, अगर स्वीकार किए जाते हैं तो सभी संशोधनों पर लागू होंगे।’ 22 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि आपातकाल के दौरान संसद ने जो कुछ भी किया वह सब निरर्थक था, साथ ही कहा कि संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्दों को जोड़ने वाला 1976 का संशोधन न्यायिक समीक्षा से गुजर चुका है।

‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्दों को 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया था। भारत में आपातकाल की घोषणा दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी. यह 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच रहा। इस संशोधन ने प्रस्तावना में भारत के वर्णन को ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य’ से बदलकर ‘संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ कर दिया।

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘विषय संशोधन (42वां संशोधन) इस न्यायालय द्वारा कुछ हद तक न्यायिक समीक्षा के अधीन रहा है। संसद ने हस्तक्षेप किया है। हम यह नहीं कह सकते कि उस समय (आपातकाल) संसद ने जो कुछ भी किया सब कुछ निरर्थक था।’

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच ने कहा कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति प्रस्तावना तक भी फैली हुई है। प्रस्तावना को अपनाने की तारीख संसद की प्रस्तावना में संशोधन करने की शक्ति को सीमित नहीं करती है। इस आधार पर याचिकार्ता के तर्क को सिरे से खारिज कर दिया। सीजेआई खन्ना ने फैसले के बाद कहा कि इतने साल हो गए हैं, अब इस मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है।

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