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‘रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने को जनरल रावत ने दी थी प्राथमिकता’

  • दून विश्वविद्यालय में सीडीएस जनरल रावत स्मृति व्याख्यान माला के मौके पर वक्ताओं ने उनके दृष्टिकोण और मजबूत लीडरशिप की दी मिसाल

देहरादून। दून विश्वविद्यालय में सीडीएस जनरल रावत स्मृति व्याख्यान माला की शुरुआत के मौके पर कई ऐसे लम्हे आए जब उनके दृष्टिकोण और मजबूत लीडरशिप की मिसाल दी गई। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पहल पर देश के पहले सीडीएस दिवंगत जनरल बिपिन रावत के 64वें जन्मदिन पर दून विवि ने इस मैमोरियल लेक्चर की शुरुआत की है और हर साल 16 मार्च को इसका आयोजन किया जाएगा।
वक्ताओं ने कहा, यह सीडीएस जनरल रावत की दूरदर्शिता थी कि उन्होंने रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के उपायों को तेजी से आगे बढ़ाया। पहले सेना प्रमुख और फिर सीडीएस के तौर पर उनकी प्राथमिकताओं में रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता शीर्ष मुद्दा थी। फिर वह चाहे हथियारों के उत्पादन की बात हो या मिसाइल प्रौद्योगिकी की। देश के अलावा सीडीएस रावत के मन में अपने गृहराज्य उत्तराखंड के कुछ करने की ललक थी। वह उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्रों की सबसे ज्यादा चिंता करते थे। बाहरी खतरे से देश की सुरक्षा के लिए अहम सीमांत क्षेत्रों में बसावट बनाए रखना, वहां के लोगों को स्वरोजगार उपलब्ध कराना, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं उपलब्ध करना अक्सर उनकी चर्चाओं का हिस्सा होता। इन चिंताओं को उन्होंने अपने लगभग सभी करीबियों के साथ समय-समय पर साझा भी किया।
बुधवार को आयोजित इस खास कार्यक्रम के दौरान जनरल रावत के साथ करीब से काम करने वाले पूर्व और मौजूदा सैन्य अधिकारियों, परिजनों ने उनके विजनरी व्यक्तित्व से जुड़े कई किस्से साझा किए। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पहल पर दून विश्वविद्यालय की ओर से दिवंगत सीडीएस जनरल रावत की स्मृति में व्याख्यान माला शुरू की गई है। इसके पहले आयोजन में आईएमए के पूर्व कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल जेएस नेगी (रिटा.), ब्रिगेडियर शिवेंद्र सिंह (रिटा.), आईटीबीपी की पश्चिमी कमान के एडीजी मनोज रावत, रियर एडमिरल ओपीएस राणा (रिटा.), डीआरडीओ की आईआरडीई के निदेशक डा. बी के दास, यूसैक के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट, मेजर जनरल गुलाब सिंह रावत समेत कई कॉलेजों के प्रधानाचार्य, बुद्धिजीवी शामिल हुए।


दून विवि की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि सीडीएस जनरल बिपिन रावत इस देश और उत्तराखंड के एक रूपक हैं। जब यह कहा जाता है कि उत्तराखंड की सबसे बड़ी यूएसपी, क्रेडिट क्या है तो अक्सर हमारे उच्च गुणवत्ता वाले मानवीय संसाधन का जिक्र होता है। हमारी ईमानदारी, देशभक्ति की बात की जाती है। हम सीमाओं में रहते हैं। जब-जब यह बात होगी सीडीएस जनरल बिपिन रावत का नाम स्वर्ण अक्षरों में बार-बार लिया जाएगा। जब भी हम अपने मानव संसाधन की बात करेंगे तो साथ ही यह भी बताएंगे कि सीडीएस जनरल बिपिन रावत उत्तराखंड से थे। हम इसलिए भावुक हैं क्योंकि जब एक मजबूत राष्ट्र के रूप में भारत को एक दृढ़ सैन्य लीडरशिप की जरूरत थी, सीडीएस जनरल बिपिन रावत असमय चले गए। अक्सर कहा जाता कि वह खरी-खरी कहने वाले सेना प्रमुख थे, वह बार-बार हमें आश्वस्त करते थे कि भारत की सेना हमेशा तैयार है।

उन्होंने कहा कि जनरल रावत उत्तराखंड से पलायन को लेकर चिंतित थे। उन्होंने रिटायरमेंट के बाद अपने गांव में एक घर बनाने की बात कही थी। इस राज्य को लेकर एक चिंता उनके मन में थी। वह उत्तराखंड के लिए कुछ करें, इसके लिए उनके पास एक विजन था। विजनरी लीडरशिप की बात करते हुए प्रो. डंगवाल ने कहा कि हमेशा उसी लीडर को याद किया जाता है, जो संस्थाओं को निर्माण करता है। उन्होंने बताया कि दून विश्वविद्यालय को लेकर पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह की एक सोच थी। इसका मुख्य द्वार उनके ही विजन की देन है। परिसर में बन रहा नित्यानंद सेंटर उनका अपने गुरु के प्रति सम्मान को दर्शाता है। उनके सीएम रहते इसके लिए दून विश्वविद्यालय को 22 करोड़ रुपये की धनराशि दी गई। उनके कार्यकाल में एफटीआईआई पुणे की मदद से दून विवि में एक फिल्म ट्रेनिंग सेंटर का विचार आगे बढ़ा। उम्मीद है ये परिकल्पना जल्द पूरी होगी।

इस अवसर पर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि देश की सुरक्षा में उत्तराखंड का एक विशेष स्थान है। यह हमेशा रहेगा। जब आज हम जनरल बिपिन रावत को याद कर रहे हैं, तो उसके पीछे केवल एक दिन याद करने का नहीं है। मैं चाहता हूं कि जनरल रावत हमेशा हमारे बीच में रहे। इसके लिए हम विचार करें। मुझे जनरल रावत को नजदीक से देखने का मौका मिला। वह बहुत ही खुली सोच के जनरल थे, इसलिए उन्हें ‘जनता का जनरल’ कहा जाता था। जब हमने जनरल रावत से कहा कि टिंबरसैंण महादेव जनता के लिए खुलना चाहिए, उन्होंने कहा, मैं सहमत हूं। इसकी शुरुआत भी हो गई। इसके बाद हमने कहा कि जादोंग गांव 1962 में खाली करा दिया गया था, उस गांव में फिर बसावट होनी चाहिए। मैंने वहां के कुछ बुजुर्गों को बुलाया, ये लोग अब हर्षिल के पास रहते हैं। जब मैंने उनसे पूछा कि आप अपने गांव जाना चाहेंगे तो उन्होंने हामी भरी। इसके बाद मैंने जनरल रावत से बात की। इस पर सोच आगे बढ़ रही थी।

त्रिवेंद्र ने कहा कि देश की सुरक्षा के लिए सीमांत क्षेत्रों में आम नागरिकों का रहना उतना ही जरूरी है, जितना सेना का रहना। हमें एक ऐसा इतिहास रचने का अवसर मिला कि प्रथम सीडीएस हमारे राज्य से हुए। यह इतना बड़ा दायरा है कि इसके नीचे हम सबको जोड़ने का काम कर सकते हैं। सीडीएस जनरल रावत की इच्छा थी कि दो बढ़िया स्कूल उत्तराखंड में बनें। स्वरोजगार को लेकर उनका बड़ा जोर रहा। जनरल रावत के समय में सीमांत क्षेत्रों में लोगों को अखरोट के पौधे देकर स्वरोजगार की पहल की गई। उत्तराखंड में राज्य सरकार ने सीमांत विकास निधि की शुरुआत की। उसकी प्रेरणा भी जनरल बिपिन रावत ही थे। इसके पीछे यह सोच थी कि लोग सीमांत इलाकों में रुके रहें।
लेफ्टिनेंट जनरल जयवीर सिंह नेगी (रिटा.) ने सीडीएस जनरल बिपिन रावत की जीवन यात्रा और उनके साथ नजदीक से काम करने के अनुभव बांटे। मुख्य वक्ता के रूप में उन्होंने सीडीएस जनरल रावत के भारतीय सेनाओं को सशक्त बनाने, चीन और पाकिस्तान के साथ संघर्ष के दौरान रोमांचक कठिन सफल ऑपरेशन से जुड़े बातों को साझा किया।

सीडीएस जनरल बिपिन रावत के भाई ब्रिगेडियर शिवेंद्र सिंह (रिटा.) ने उनके साथ व्यक्तिगत और बतौर सैन्य अधिकारी कई यादों को साझा किया। आईटीबीपी के एडीजी मनोज रावत ने सीमांत क्षेत्रों के विकास पर जोर देने और सीमा प्रबंधन के लिए एक अलग मंत्रालय बनाने के प्रयास किए जाने की जरूरत बताई। डीआरडीओ के आईआरडीई के निदेशक डा. बीके दास ने स्वदेशी हथियारों के निर्माण को लेकर सीडीएस जनरल रावत के प्रयासों को सामने रखा और बताया कि आज देश में बड़े पैमाने पर स्वदेशी हथियारों के उत्पादन का काम हो रहा है। रियर एडमिरल ओपीएस राणा ने जनरल बिपिन रावत के सेना प्रमुख बनने के दौरान उनके साथ काम करने के अनुभवों को साझा किया। वहीं यूसैक के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट ने उत्तराखंड की दुर्गम और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आपदाओं और उनके प्रभावों को वैज्ञानिक व्याख्या के साथ प्रस्तुत किया। इस अवसर पर दून विवि परिसर में वीरभूमि फाउंडेशन की ओर से एक रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया गया। इसमें बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं, एनसीसी कैडेटों और वॉलंटियरों ने भाग लिया।  शिविर में 140 यूनिट ब्लड एकत्रित किया गया।

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