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Chandrayaan-3: चांद के बाद अब सूरज पर फतह की तैयारी, जल्द लांच होगा आदित्य L-1 मिशन

ISRO ADITYA-L1 Mission: स्पेस मिशन में भारत एक के बाद कीर्तिमान बनाने को तैयार है। बुधवार शाम चंद्रयान-तीन की सफलतापूर्वक लैंडिंग से इतिहास रच दिया। इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का लक्ष्य अब आदित्य एल-वन मिशन को सूरज तक भेजने की तैयारी तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चंद्रयान-तीन की सफलता पर वैज्ञानिकों व देशवासियों को बधाई देते हुए कहा कि जल्द ही इसरो सूर्य के विस्तृत अध्ययन के लिए आदित्य एल-वन मिशन लांच करने जा रहा है। इसके बाद शुक्र ग्रह भी इसरो के लक्ष्यों में से एक है।

चंद्रयान के अभियान में सफलता के बाद अंतरिक्ष विज्ञानियों के हौसले बुलंद हैं और अब उनकी निगाहें सूर्य के अध्ययन के लिए भेजे जाने वाले आदित्य एल 1 मिशन पर हैं जो मात्र दो सप्ताह के अंदर रवाना होने वाला है। चंद्र मिशन की सबसे बड़ी सफलताओं में एक यह रही है कि इसके लिए भारत ने स्वदेशी तकनीक का प्रयोग किया था जबकि दूसरी बड़ी उपलब्धि यह रहने वाली है कि इसके दक्षिणी ध्रुव में पानी होने या न होने की पहली बार पुष्टि होगी।

हालांकि इस अध्ययन के लिए इसके रोवर को चांद के केवल एक दिन का समय ही मिल पाएगा। गत लंबे समय से पूरे देश की नजरें चंद्रयान पर लगी थीं जबकि इसी दौरान भारत के दूसरे अत्यंत महत्वपूर्ण सूर्य मिशन की लांचिंग का समय भी आ चुका है और अगले दो सप्ताह के भीतर इसकी भी लांचिंग हो जाएगी। सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का यह पहला मिशन होगा। लगभग पांच साल तक लगातार सूर्य का अध्ययन करेगा। इस अंतरिक्ष यान में सात तरह के वैज्ञानिक पेलोड्स लगाए गए हैं जो सूर्य के अध्ययन में सहायक होंगे। इन पेलोड्स से सूर्य के फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और उसकी बाहरी परत कोरोना का अध्ययन किया जाएगा।

भारत का महत्वाकांक्षी सौर मिशन आदित्य एल 1 सौर कोरोना की बनावट और इसके तपने की प्रक्रिया, कोरोना के तापमान, सौर विस्फोट और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।

आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डाॅ. शशि भूषण पांडे ने बताया कि इस यान को पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर लो अर्थ ऑर्बिट, लियो में स्थापित किया जाएगा। यह जगह बिना किसी बाधा के सूर्य के अध्ययन के लिए उपयुक्त मानी गई है।

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