सियासत के मोहरे
- मध्य प्रदेश में आज हुए चौहान कैबिनेट के विस्तार में सबसे ज्यादा फायदा सिंधिया के समर्थकों को
- भाजपा के पुराने मठाधीशों को कैबिनेट से दूर रखकर सिंधिया के समर्थकों को किया गया एडजस्ट
- आज 28 नए मंत्रियों ने और सिंधिया खेमे के 9 पूर्व विधायकों ने ली शपथ, भाजपा के पुराने नेता हुए बाहर
भोपाल। आखिरकार लंबे इंतजार के बाद मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट का आज गुरुवार को विस्तार तो किया गया, लेकिन नए मंत्रियों की सूची को देखकर लगता है कि भाजपा का सबसे ज्यादा ध्यान प्रदेश में होने वाले उपचुनावों पर है।
उपचुनावों में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की रणनीति के तहत ज्योतिरादित्य सिंधिया को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। जबकि भाजपा के अपने पुराने नेताओं को कैबिनेट में कम भागीदारी से संतोष करना पड़ा है।शिवराज कैबिनेट में आज जिन 28 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई, उनमें से 9 ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं। तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह पहले से ही मंत्री हैं। इस तरह सिंधिया-समर्थक 11 पूर्व विधायकों को मंत्री बनाया गया है। सिंधिया के साथ कुल 22 पूर्व विधायकों ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा था। अब इनमें से आधे मंत्री बन चुके हैं। बाकियों में से भी कुछ को निगम-मंडलों में एडजस्ट किए जाने की चर्चा है।
सिंधिया-समर्थकों को एडजस्ट करने की कोशिश में भाजपा के पुराने नेताओं को मंत्री पद से वंचित रहना पड़ा है। राजेंद्र शुक्ला, रामपाल सिंह, गौरी शंकर बिसेन जैसे वरिष्ठ नेता कैबिनेट का हिस्सा नहीं बन पाए। ये सभी नेता सीएम शिवराज के करीबी माने जाते हैं और पहले उनकी कैबिनेट का हिस्सा रह चुके हैं। इस बार भी इनकी दावेदारी मजबूत थी, लेकिन अंतिम लिस्ट में इनके नाम शामिल नहीं किए गए।
सीएम शिवराज ने इन नेताओं को मंत्री बनाने के लिए हरसंभव कोशिश की, लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने अड़ंगा लगा दिया। शिवराज ही नहीं, प्रदेश भाजपा के अन्य क्षत्रपों को भी यही हालत है। नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा जैसे कद्दावर नेताओं को भी कैबिनेट विस्तार में कम से संतोष करना पड़ा है।
भाजपा नेताओं ने प्रदेश स्तर पर नए मंत्रियों की जो संभावित लिस्ट बनाई थी, उसमें सभी बड़े नेताओं के नाम शामिल थे। इसमें पार्टी के अलग-अलग गुटों का भी पूरा ध्यान रखा गया था, लेकिन दिल्ली में पार्टी आलाकमान के साथ बैठक में नई लिस्ट बनाई गई। पार्टी के केंद्रीय नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि सिंधिया-समर्थकों को दिए गए आश्वासनों के साथ कोई समझौता नहीं होगा। इस रणनीति पर चलते हुए मंत्रियों के नाम फाइनल किए गए तो भाजपा के कई मठाधीश खेत रहे जबकि करीब चार माह पहले भाजपा में आए सिंधिया और उनके समर्थक मंत्री बनने में सफल रहे।
भाजपा आलाकमान ने पार्टी के पुराने नेताओं को दरकिनार कर नए चेहरों को मौका तो दे दिया है, लेकिन इससे पार्टी के पुराने नेताओं में असंतोष से इंकार नहीं किया जा सकता। विंध्य क्षेत्र में राजेंद्र शुक्ला के इलेक्शन मैनेजमेंट से बीजेपी की झोली में सीटें गिरी थीं जबकि ग्वालियर-चंबल इलाके में तोमर के समर्थकों ने मेहनत की थी। मालवा-निमाड़ क्षेत्र में कैलाश विजयवर्गीय पार्टी का चुनाव मैनेजमेंट संभालते हैं, लेकिन कैबिनेट विस्तार में उनके समर्थकों को ज्यादा जगह नहीं मिल पाई है।