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सुभाष चंद्र बोस को ‘देश का बेटा’ घोषित करने की मांग वाली याचिका खारिज, SC ने बताई ये वजह

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को ‘देश का बेटा’ घोषित करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस अमर हैं और उनकी महानता दर्शाने के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत नहीं है।

‘देश का बेटा’ घोषित करने की मांग:- दरअसल, कटक के निवासी पिनाक पानी मोहंती ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। इस याचिका में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट इस बात की घोषणा करे कि ब्रिटिश शासन से आजादी नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज ने दिलाई। साथ ही याचिका में कांग्रेस पर आरोप लगाया गया कि नेताजी के देश की आजादी में योगदान को कमतर किया गया। साथ ही कांग्रेस ने नेताजी के गायब/मृत्यु से संबंधित फाइलों को गोपनीय रखा और सच्चाई नहीं बताई। याचिका में ये भी मांग की गई कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिन 23 जनवीर को राष्ट्रीय दिवस घोषित किया जाए और नेताजी को ‘देश का बेटा’ भी घोषित किया जाए।

कोर्ट के आदेश की जरूरत नहीं:- सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया और याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारे में कौन नहीं जानता? इस देश में सभी लोग उन्हें और उनके योगदान के बारे में जानते हैं। उनकी महानता बताने के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत नहीं है। उनके जैसे नेता अमर हैं।’ पीठ ने कहा वो महान लोग हैं और पूरा देश उनका सम्मान करता है। उनके जैसे नेता को कोर्ट से किसी पहचान की जरूरत नहीं है।

पहले भी दायर हुई थी एक ऐसी ही PIL:- सुप्रीम कोर्ट में पहले भी एक ऐसी ही जनहित याचिका दायर हुई थी, जिसमें मांग की गई थी कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी पर सार्वजनिक छुट्टी का एलान किया जाए। साथ ही याचिका में मांग की गई थी कि नेताजी के सम्मान में दिल्ली और सभी राज्यों की राजधानियों में एक मेमोरियल हॉल और म्यूजियम का निर्माण कराया जाए।

इस याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर खारिज कर दिया था कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती मनाने का सबसे अच्छा तरीका उस दिन और ज्यादा मेहनत से काम करना होना चाहिए, जैसे कि देश की आजादी के लिए नेताजी ने खुद मेहनत की थी। कोर्ट ने कहा था कि इस संबंध में फैसला लेने का अधिकार कार्यपालिका का है।

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