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उत्तराखंड के 6000 आयुष छात्रों को ‘सुप्रीम’ राहत!

निजी कॉलेजों का लगा ‘सुप्रीम’ झटका  

  • फीस बढ़ोतरी पर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कॉलेज प्रबंधन की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने निपटाया
  • पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर भी प्रतिबंध लगाने से आयुष छात्रों के चेहरों की आई रौनक

देहरादून। उत्तराखंड लंबे समय से निजी आयुर्वेदिक कॉलेजों द्वारा फीस बढ़ोतरी के विरुद्ध आंदोलन कर रहे छात्र छात्राओं को आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। इसे आयुष छात्रों को ‘सुप्रीम’ राहत और निजी कॉलजों को ‘सुप्रीम’ झटके के रूप में देखा जा रहा है।
मिली जानकारी के अनुसार उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्णय के विरुद्ध दायर की गई हिमालयन आयुर्वेदिक कॉलेज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार को सुनवाई पूरी कर ली। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने नैनीताल उच्च न्यायालय के निर्णय को उचित ठहराते हुए याचिका निस्तारित कर दी। इतना ही नहीं खंडपीठ ने कॉलेज प्रबंधन पर निर्णय के लागू करने से पूर्व किसी अन्य पुनर्विचार याचिका दायर करने पर भी रोक लगा दी। उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय से प्रदेश के 6000 आयुष छात्रों को भारी राहत मिली है।
गौरतलब है कि निजी कॉलेजों की फीस को लेकर मनमानी के खिलाफ छात्र लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। इस लड़ाई में छात्रों की हरसंभव मदद करने वाले सोशल एक्टिविस्ट ज्ञानेंद्र सक्सेना बतातें हैं कि यह प्रकरण 2016 से उच्च न्यायालय और उत्तराखंड शासन के बीच उलझा हुआ था। उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2016 में बिना शुल्क निर्धारण समिति गठित किए निजी आयुर्वेदिक कॉलेजों को फीस बढ़ाने की अनुमति दे दी थी। प्रदेश सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध छात्र नेता ललित तिवारी ने नैनीताल उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इस पर उच्च न्यायालय ने सरकार के विरुद्ध निर्णय दिया, इसके बावजूद कॉलेजों ने मनमाने तरीके से फीस वृद्धि जारी रखी।
पीड़ित छात्रों ने शासन से लेकर राज्यपाल तक विभिन्न स्तरों पर अपना पक्ष रखा, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। ज्ञानेंद्र बताते हैं कि इस दौरान  उच्च न्यायालय नैनीताल के दो अन्य निर्णय भी छात्रों के पक्ष में रहे, लेकिन निजी कॉलेजों ने हाईकोर्ट के निर्णय का पालन भी नहीं किया। इसके बाद अगस्त 2019 में छात्रों ने देहरादून में अनशन शुरू कर दिया। नवंबर 2019 में राज्य सरकार ने निजी कॉलेजों को सख्ती से उच्च न्यायालय के आदेशों के पालन करने को कहा, लेकिन कॉलेज प्रबंधन पर ने पालन नहीं किया और सुप्रीम कोर्ट चले गए। आखिरकार आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने छात्रों को सुप्रीम राहत देते हुए निजी कॉलजों को सुप्रीम झटका दे ही दिया।

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