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14 बरसों से धूल फांक रही ग्लेशियरों पर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट!

  • वर्ष 2006 में ग्लेशियरों और झीलों का अध्ययन कराकर विशेषज्ञों की सिफारिशें रद्दी की टोकरी में डाली

देहरादून। उत्तराखंड में ग्लेशियरों और झीलों से बाढ़ के खतरे को लेकर की गई सिफारिशें सरकारी तंत्र की अनदेखी की भेंट चढ़ गईं। करीब  14 साल पहले ग्लेशियरों व झीलों पर एक विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, लेकिन अब तक सत्ता पर काबिज रहीं सभी सरकारों ने इन सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाले रखा।
चमोली जिले के रैणी गांव की ऋषिगंगा में आई भीषण बाढ़ से हुए जानमाल के भारी नुकसान के बाद शासन ने अब फिर एक विशेषज्ञ समिति बनाई है। इस समिति की कमान आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला को सौंपी है। यह भी एक संयोग है कि वर्ष 2006 में जो विशेषज्ञ समिति बनी थी, पीयूष रौतेला उसके सदस्य सचिव थे। ऋषिगंगा की जलप्रलय के बाद 14 साल से सरकारी फाइलों में धूल फांक रही विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें और प्रासंगिक हो गई हैं।
ऋषिगंगा में आई बाढ़ के बाद नीति नियंताओं से लेकर विशेषज्ञ और विज्ञानी ग्लेशियरों के अध्ययन और निगरानी की जो वकालत कर रहे हैं, ये सारी बातें 14 साल पहले ही कह दी गई थीं। लेकिन सरकारी सिस्टम की भूलभुलैया में खो गई समिति की सिफारिशें कहीं खो गई हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2006 में तत्कालीन प्रमुख सचिव एनएस नपल्च्याल ने वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियालॉजी के उस समय के अध्यक्ष डॉ. बीआर अरोड़ा की अध्यक्षता में समिति गठित की थी। समिति में कई विशेषज्ञ शामिल थे। 

वे अहम सिफारिशें जिनसे सरकारों ने मुंह फेरा
1. ग्लेशियरों से पैदा होने वाले खतरों से प्रभावित होने की आशंका वाले आबाद गांवों का चिह्नीकरण होना था।
2. ग्लेशियरों के पीछे खिसकने के जल विज्ञान और जलवायु विज्ञान संबंधी आंकड़े तैयार किए जाने थे।
3. इन आंकड़ों के आधार पर आने वाली बाढ़ और ग्लेशियरों से पानी के बहाव की निगरानी होनी थी।
4. प्रदेश में स्थापित होने वालीं जल विद्युत परियोजनाओं के लिए नदियों के उद्गम क्षेत्र में मौसम केंद्र स्थापित होने थे। मौसम संबंधी आंकड़ों का निरंतर विश्लेषण होना था।
5. भागीरथी घाटी की केदार गंगा और केदार बामक के आसपास की ग्लेशियल झीलों व उससे आने वाले पानी पर लगातार निगरानी होनी थी।
6. स्कूल व कॉलेज में ग्लेशियरों से जुड़ीं आपदाओं व दुर्घटनाओं के प्रति बच्चों व स्थानीय लोगों को जागरूक करना था।
7. कक्षा नौ से लेकर 12 तक की पाठ्य पुस्तकों में ग्लेशियरों या अन्य कारणों से आने वालीं आपदाओं की जानकारी की शिक्षा देनी थी।
8. गंगोत्री व सतोपंथ ग्लेशियर में मानव आवाजाही पर रोक हो, इसके लिए पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के प्रावधान की मदद ली जाए।
9. नियमित ग्लेशियल बुलेटिन को ऑडियो या वीडियो मीडिया के जरिये जारी करने कोशिश की जाए।

विशेषज्ञ समिति की दीर्घकालीन अहम सिफारिशें

1. ग्लेशियरों व ग्लेशियल झीलों को मानचित्रों के साथ सूचीबद्ध किया जाए, ताकि उनकी पहचान स्पष्ट हो।
2. ग्लेशियरों की स्नो कवर मैपिंग हो और शीत ऋतु में स्नो कवर पैटर्न का आकलन हो।
3. मॉनीटरिंग सिस्टम मजबूत हो। पर्यावरण और बर्फ, ग्लेशियल झीलों, उनके बनने और संभावित बाढ़ की मॉनीटरिंग हो। 
4. बर्फ के गलने और मलबे के भार का आकलन हो।
5. ग्लेशियरों के सिकुड़ने, उनके मास वॉल्यूम में हो रहे बदलाव और स्नोलाइन की मॉनीटरिंग हो, ताकि पर्यावरण की बेहतर समझ पैदा हो सके।
6. ग्लेशियरों की वजह से बांधों, उनके जलाशयों और जल विद्युत परियोजनाओं की सुरक्षा को पैदा होने वाले खतरों का पहले से आंकलन कर लिया जाए।
7. प्रभावी योजना व प्रबंधन के लिए सभी हिमालयी ग्लेशियरों की जानकारी को भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) से जुटाया जाए।
8. ग्लेशियरों से आने वाली बाढ़ के अध्ययन के लिए विशेषज्ञों के पांच अध्ययन समूह गठित हों।
9. इन समूहों में दूर संवेदी व भौगोलिक सूचना आकलन समूह, ग्लेशियर का मैपिंग समूह, ग्लेशियल निगरानी समूह, जल विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान समूह, सामाजिक और आर्थिक अध्ययन समूह बनाया जाए।
10. अध्ययन रिपोर्ट लागू करने के लिए सरकार एक कार्ययोजना तैयार करे।

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