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देवभूमि में नियुक्तियों की ‘गंगा‘ में सभी नेताओं ने खूब धोये हाथ!

उत्तराखंड में बांटी गई असली ‘रेवड़ियां‘

  • यूकेएसएसएससी की तमाम परीक्षाओं के आयोजन में सामने आ रही धांधली से उठे सवाल
  • विधानसभा में अपने कार्यकाल में दी गई नौकरियों को जायज बताने पर तुले आरोपी स्पीकर
  • कार्यकाल पूरा होने के अंत में कम लगा स्टाफ, किसी के भी प्रमाणपत्र की नहीं हुई जांच

देहरादून। मीडिया में आजकल ‘रेवड़ियां‘ शब्द छाया हुआ है। और तो और सुप्रीम कोर्ट भी असली और नकली रेवड़ियों पर सुनवाई कर रहा है, लेकिन जनाब असली रेवड़ियां तो अपनी देवभूमि में बांटी गई हैं। आरोप प्रत्यारोप में उलझी तमाम पार्टियां और उनके बड़े नेता सब ‘हमाम में नंगे‘ दिख रहे हैं। जैसे जैसे अपनी पोल खुलती जा रही है, वैसे वैसे शक के दायरे में आये नेता दूसरे नेताओं की भी सरेआम पोल खोलते नजर आने लगे हैं। यूकेएसएसएससी की तमाम परीक्षाओं के आयोजन में सामने आ रही धांधजी से सवाल उठ रहे हैं कि उत्तराखंड के बेरोजगार और प्रतिभाशाली युवाओं के साथ कितना बड़ा धोखा होता रहा है। उनको समझ में नहीं आ रहा कि वे इस पर हंसे या रोये। नया राज्य बनाने और अपने सपने पूरे होने की मृग मरीचिका में फंसे युवाओं को समझ में आने लगा है कि जिन ‘हाथियों‘ को उन्होंने पाला पोसा है, उनके ‘दांत दिखाने के और हैं, खाने के और।‘
दूसरी ओर अपने-अपने समय में मनमानी भर्तियां करने वाले पूर्व स्पीकरों का दावा है कि जरूरत के आधार पर ऐसा किया गया है। जबकि यह वो भी बखूबी जानते हैं कि यह पूरी तरह से कुतर्क ही है। इसके पीछे हकीकत यह है कि तमाम स्पीकरों ने ये भर्तियां अपना कार्यकाल समाप्त होने से ऐन पहले की हैं। दिलचस्प बात यह है कि क्या पांच साल तक उन्हें यह पता ही नहीं चला कि विधानसभा में स्टाफ कम है। दूसरी ओर एक अहम बात यह भी है कि भर्ती होने वालों के प्रमाणपत्रों की जांच तक नहीं करवाई गईं।
मनमानी नियुक्तियों को लेकर सवालों के घेरे में आए पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल अब यह कहते फिर रहे हैं कि उनके समय में विधानसभा में स्टाफ की जरूरत थी। लिहाजा उन्होंने ये भर्तियां कीं हैं। जबकि दोनों ने ये भर्तियां अपना-अपना कार्यकाल समाप्त होने से ऐन पहले की हैं। उनको पांच साल में यह पता ही नहीं चल पाया कि उनके पास स्टाफ कम है और कामकाज प्रभावित हो रहा है। चुनाव आचार संहिता लागू होने से ऐन पहले ही की ये मनमानी नियुक्तियां सवालों के घेरे में आना स्वाभाविक ही है। मजे की बात यह है कि किसी भी पार्टी के नेता ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि विधानसभा में थोक के भाव में इतनी नियुक्तियां कर दी गई कि विधानसभा में इतनी जगह ही नहीं है कि जो वे तमाम कर्मचारी वहां आकर बैठ भी सकें। यह उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं के साथ शर्मनाक मजाक नहीं है कि एक तरफ आयोग की तमाम भर्तियों में पैसे का खेल हुआ है और एक भी भर्ती ऐसी नहीं जिस पर सवाल न उठे हों। दूसरी तरफ जिन युवाओं ने अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर मेरिट में जगह पाई थी, अब उनका भी भविष्य अंधकारमय होता दिख रहा है। उनकी सब मेहनत और समय बर्बादी के कगार पर है और उनकी भगवान के अलावा कोई सुनने वाला नहीं है।
दूसरी ओर विधानसभा में नेताओं के करीबियों और परिजनों को बैक डोर से भर्ती की गंगा में सभी ने खूब हाथ धोये हैं। ऐसा उत्तराखंड में ही देखने को मिल रहा है कि खुद ‘शीशे के घरों‘ में रहने वाले नेता अब एक दूसरे के घरों में पत्थर फेंकने में लगे हैं। इस खेल में एक बड़ी बात यह भी सामने आ रही है कि कृपा पात्रों को नौकरी तो एक सादे आवेदन पर दे दी गई, लेकिन इनके प्रमाणपत्रों की सत्यता जानने का कोई भी प्रयास नहीं किया गया। ऐसे में आशंका इस बात की भी है कि अगर जांच की गई तो अध्यापकों की तरह ही कइयों के अभिलेख फर्जी पाए जाएंगे। इनके अलावा अगर तमाम महकमों की भी बात की जाये तो कमोबेश हर विभाग में सिफारिश पर नौकरी पाने वालों की लंबी फेहरिस्त तैयार हो जाएगी। बेशर्मी की हद देखिये कि कई मंत्रियों ने अपने लेटर पैड पर बाकायदा पत्र लिखकर अपने विभागीय सचिव को फरमान जारी किये हैं कि मेरे इन करीबियों को कहीं न कहीं अवश्य समायोजित किया जाए। इस खेल में नौकरशाहों ने भी जमकर चांदी काटी है। उन्होंने मंत्री के तो एक करीबी को नौकरी दी, लेकिन अपने 10 लोगों को भी एडजस्ट कर दिया। उत्तराखंड की विडंबना देखिये कि सभी विभागों में स्टाफ सरप्लस है तो आम बेरोजगार युवा को कैसे नौकरी मिल जाएगी। ‘मेरो उत्तराखंड‘ के अधिकतर युवाओं का ‘दोष‘ या कमी सिर्फ इतनी है कि उनकी किसी मंत्री या नेता से जान पहचान नहीं है, नहीं तो वे भी किसी सरकारी महकमे में ऐश कर रहे होते।
विधानसभा में मनचाही नियुक्तियों को लेकर सियासत का बाजार गर्म है। जबकि इस मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी भी पीछे नहीं रहे। प्रेमचंद के कार्यकाल में विधानसभा में हुई 72 भर्तियों में ऐसे कई चेहरे हैं जो आरएसएस के पदाधिकारियों के करीबी रहे हैं या उनका सीधा ताल्लुक आरएसएस से रहा है. सबसे पहला नाम आरएसएस के प्रांत प्रचारक युद्धवीर का है। उनके भांजे दीपक यादव को नियुक्ति देने की बात कही गई है. संघ के विभाग प्रचारक भगवती प्रसाद के भाई बद्री प्रसाद, संघ के सह प्रांत प्रचारक देवेंद्र की बहन को भी नौकरी मिली है। प्रांत प्रचारक के ड्राइवर रहे विजय सुंद्रियाल भी आसानी से नौकरी पा गए। सूची के अनुसार संघ के महानगर सह कार्यवाह सत्येंद्र पवार तो खुद ही नौकरी पर लग गए। इन सबसे हटकर सबसे बड़ी बात यह है कि अब महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी  के भाई की बेटी छाया कोश्यारी को भी विधानसभा में नौकरी मिल गई।

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