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…तो हिमाचल की तर्ज पर होंगे उत्तराखंड के भू-कानून!

 देहरादून। उत्तराखंड में भू-कानून के अध्ययन व परीक्षण के लिए गठित समिति ने आज सोमवार को अपनी जिन 23 संस्तुतियों समेत जो रिपोर्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंपी है, अगर उसको कतिपय संशोधनों से लागू कर दिया गया तो कमोबेश उत्तराखंड में भी हिमाचल प्रदेश की तरह बाहरी व्यक्ति मनचाहे उपयोग के लिये जमीन नहीं खरीद पायेंगे। हालांकि समिति ने प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित क्रय-विक्रय के बीच संतुलन बनाये रखने का प्रयास किया है।

समिति ने गहन विचार-विमर्श कर लगभग 80 पृष्ठों में अपनी रिपोर्ट की संस्तुतियों में ऐसे बिंदुओं को सम्मिलित किया है जिससे राज्य में विकास के लिए निवेश बढ़े और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो। साथ ही भूमि का अनावश्यक दुरूपयोग रोकने की भी अनुशंसा की है। साथ ही जन भावनाओं के अनुरूप हिमाचल प्रदेश की तरह कतिपय प्रावधानों की संस्तुति की है।
समिति ने अपनी प्रमुख संस्तुतियों में कहा है कि वर्तमान में जिलाधिकारी द्वारा कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है। कतिपय प्रकरणों में ऐसी अनुमति का उपयोग कृषि/औद्यानिक प्रयोजन न करके रिसोर्ट/ निजी बंगले बनाकर दुरुपयोग हो रहा है। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग भूमिहीन  हो रहें और रोजगार सृजन भी नहीं हो रहा है। समिति ने संस्तुति की है कि ऐसी अनुमतियां जिलाधिकारी स्तर से ना दी जाऐं। शासन से ही अनुमति का प्रावधान हो।  
वर्तमान में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों हेतु भूमि क्रय करने की अनुमति जिलाधिकारी द्वारा प्रदान की जा रही है। हिमांचल प्रदेश की भांति ही ये अनुमतियाँ, शासन स्तर से न्यूनतम भूमि की आवश्यकता के आधार पर, प्राप्त की जाएं। वर्तमान में राज्य सरकार पर्वतीय एवं मैदानी में औद्योगिक प्रयोजनों, आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, उद्यान एवं विभिन्न प्रसंस्करण, पर्यटन, कृषि के लिए 12.5 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक संस्था/फर्म/ कम्पनी/ व्यक्ति को उसके आवेदन पर दे सकती है। उपरोक्त प्रचलित व्यवस्था को समाप्त करते हुए हिमाचल प्रदेश की भांति न्यूनतम भूमि आवश्यकता के आधार पर दिया जाना उचित होगा।
केवल बड़े उद्योगों के अतिरिक्त 4-5 सितारा होटल/ रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वोकेशनल/प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट आदि को ही भूमि क्रय करने की अनुमति शासन स्तर से दी जाए। अन्य प्रयोजनों हेतु लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था लाने की समिति संस्तुति करती है।
वर्तमान में, गैर कृषि प्रयोजन हेतु खरीदी गई भूमि को 10 दिन में धारा-143 के अंतर्गत गैर कृषि घोषित करते हुए खतौनी में दर्ज करेगा। परन्तु क्रय अनुमति आदेश में 2 वर्ष में भूमि का उपयोग निर्धारित प्रयोजन में करने की शर्त रहती है। यदि निर्धारित अवधि में उपयोग न करने पर या किसी अन्य उपयोग में लाने, विक्रय करने पर राज्य सरकार में भूमि निहित की जाएगी, यह भी शर्त में उल्लेखित रहता है। यदि 10 दिन में गैर कृषि प्रयोजन हेतु क्रय की गई कृषि भूमि को “गैर कृषि“ घोषित कर दिया जाता है, तो फिर यह धारा-167 के अंतर्गत राज्य सरकार में (उल्लंघन की स्थिति में) निहित नहीं की जा सकती है। अतः नई उपधारा जोङते हुए उक्त भूमि को पुनः कृषि भूमि घोषित करना होगा। तत्पश्चात उसे राज्य सरकार में निहित किया जा सकता है।
कोई व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम बिना अनुमति के अपने जीवनकाल में अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि आवासीय प्रयोजन हेतु खरीद सकता है। समिति की संस्तुति है कि परिवार के सभी सदस्यों के नाम से अलग अलग भूमि खरीद पर रोक लगाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेख से लिंक कर दिया जाए।
राज्य सरकार ’भूमिहीन’ को अधिनियम में परिभाषित करे। समिति का सुझाव है कि पर्वतीय क्षेत्र में न्यूनतम 5 नाली एवं मैदानी क्षेत्र में 0.5 एकड़ न्यूनतम भूमि मानक भूमिहीन’ की परिभाषा हेतु औचित्यपूर्ण होगा। भूमि जिस प्रयोजन के लिए क्रय की गई, उसका उललंघन रोकने के लिए एक जिला, मण्डल, शासन स्तर पर एक टास्क फोर्स बनायीं जाए। ताकि ऐसी भूमि को राज्य सरकार में निहित किया जा सके। सरकारी विभाग अपनी खाली पड़ी भूमि पर साइनबोर्ड लगाएं।
कतिपय प्रकरणों में कुछ व्यक्तियों द्वारा एक साथ भूमि क्रय कर ली जाती है तथा भूमि के बीच में किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पड़ती है तो उसका रास्ता रोक दिया जाता है। इसे रोकने के लिए व्यवस्था हो। विभिन्न प्रयोजनों हेतु जो भूमि खरीदी जायेगी उसमें समूह ग व समूह ’घ’ श्रेणियों में स्थानीय लोगों को 70 प्रतिशत रोजगार आरक्षण सुनिश्चित हो। उच्चतर पदों पर योग्यता अनुसार वरीयता दी जाए। विभिन्न अधिसूचित प्रयोजनों हेतु प्रदान की गयी अनुमतियों के सापेक्ष आवेदक इकाइयों/ संस्थाओं द्वारा कितने स्थानीय लोगों को रोजगार दिए गए, इसकी सूचना अनिवार्य रूप से शासन को उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो  
वर्तमान में भूमि क्रय करने के पश्चात भूमि का सदुपयोग करने के लिए दो वर्ष की अवधि निर्धारित है और राज्य सरकार को अपने विवेक के अनुसार इसे बढ़ाने का अधिकार दिया गया है। इसमें संशोधन कर विशेष परिस्थितयों में यह अवधि तीन वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।  
पारदर्शिता हेतु क्रय- विक्रय, भूमि हस्तांतरण एवं स्वामित्व संबंधी समस्त प्रक्रिया पारदर्शी हो। समस्त प्रक्रिया एक वेबसाइट के माध्यम से पब्लिक डोमेन में हो। प्राथमिकता के आधार पर सिडकुल/ औद्योगिक आस्थानों में खाली पड़े औौद्योगिक प्लाट्स या बंद पड़ी फैक्ट्रियों की भूमि का आबंटन औद्योगिक प्रयोजन हेतु किया जाए।
प्रदेश में वर्ष बन्दोबस्त हुआ है। जनहित/ राज्य हित में भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए। भूमि क्रय की अनुमतियों का जनपद एवं शासन स्तर पर नियमित अंकन एवं इन अभिलेखों का रखरखाव हो। धार्मिक प्रयोजन हेतु कोई भूमि क्रय या निर्माण किया जाता है तो अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाए।
राज्य में भूमि व्यवस्था को लेकर जब भी कोई नया अधिनियम/ नीति/ भूमि सुधार कार्यक्रम चलाये जायें तो राज्य हितबद्ध पक्षकारों/ राज्य की जनता से  सुझाव अवश्य प्राप्त कर लिए जाएँ। इसके साथ ही नदी- नालों, वन क्षेत्रों, चारागाहों, सार्वजनिक भूमि आदि पर अतिक्रमण कर अवैध कब्जे/निर्माण या धार्मिक स्थल बनाने वालों के विरुद्ध कठोर दंड का प्रावधान हो। इससे संबंधित विभागों के अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई का प्रावधान हो। ऐसे अवैध कब्जों के विरुद्ध प्रदेशव्यापी अभियान चलाया जाए।

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