मनरेगा से बदल रहे तस्वीर
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 450 करोड़ रुपये वाली इस योजना से अब तक सात लाख श्रमिक जुड़े
- एक लाख आठ हजार प्रवासियों को इसमेेें दिया काम, पूरे प्रदेश में 55 हजार अलग-अलग काम जारी
- योजना का प्रस्ताव तैयार कर स्थानीय स्तर पर बनेगी कमेटियां, हर घर नल योजना को मिलेगा फायदा
देहरादून। अब त्रिवेंद्र सरकार ने प्रदेशभर में पांच हजार से ज्यादा जल स्रोतों के पुनर्जीवित करने की तैयारी कर ली है। पुनर्जीवित किए गए जल स्रोतों की दो साल तक निगरानी भी होगी। इसका प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है।
अब मनरेगा के तहत 5000 चाल-खाल, नौले, धारे आदि को पुनर्जीवित करने का काम किया जाएगा। मनरेगा के तहत ऐसे पांच हजार जल स्रोत चिह्नित भी किए जा चुके हैं। इनमें निर्माण, श्रम आदि का भुगतान मनरेगा से होगा। मनरेगा के नोडल अधिकारी मोहम्मद असलम के मुताबिक एसओपी तैयार कर शासन को भेजी जा चुकी है। इस योजना की खास बात यह है कि इसमें हर योजना के लिए स्थानीय स्तर पर कमेटी बनेगी। यह कमेटी चयनित स्रोत के पुनर्जीवन का खाका तैयार करेगी और दो साल तक स्रोत की लगातार निगरानी करेगी। स्रोत का हर तीन माह में परीक्षण किया जाएगा और देखा जाएगा कि जल प्रवाह इसमें बढ़ रहा है या कम हो रहा है।
जल स्रोत के पुनर्जीवन के लिए चाल खाल बनाने से लेकर पौधरोपण तक के कार्य किये जाएंगे। स्टेट ऑफ इनवायरमेंट रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में करीब 12 हजार जल स्रोत सूख चुके हैं। हैस्को ने बार्क मुंबई की मदद से 16 जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने का काम किया था। उधर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 450 करोड़ रुपये वाली मनरेगा योजना से अब तक सात लाख श्रमिक जुड़ चुके हैं। इनमें करीब एक लाख आठ हजार प्रवासियों को काम दिया जा चुका है। इसमें 55 हजार अलग-अलग काम पूरे प्रदेश में किए जा रहे हैं। अधिकारियों के मुताबिक मनरेगा से कोसी पुनर्जीवन योजना के तहत व्यापक स्तर पर पौधरोपण किया गया और जल स्रोतों को सुधारा गया। इसके हाल में सामने आए परिणाम को देखते हुए ही अन्य जल स्रोतों के लिए यह योजना बनाई गई है। इस पूरी योजना में राहतभरी बात यह भी है कि जल स्रोतों के पुनर्जीवन के काम में स्थानीय लोग भी बढ़ चढ़कर मदद करते हैं।