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देश में डॉक्टरों के लिए लागू होगा ‘वन नेशन, वन रजिस्ट्रेशन’ प्रोजेक्ट, चिकित्सा आयोग ने तैयार किया खाका

नई दिल्ली। भारत में डॉक्टरों के लिए ‘वन नेशन, वन रजिस्ट्रेशन’ यानी एक राष्ट्र, एक पंजीयन की तैयारी की जा रही है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने इसका पूरा खाका तैयार किया है, जिसे आगामी छह महीने में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया जाएगा। इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर यह नियम लागू हो जाएगा।

क्या है वन नेशन, वन रजिट्रेशन प्रोजेक्ट…

वन नेशन, वन रजिस्ट्रेशन के तहत देश के हर डॉक्टर को एक यूनिक आईडी दी जाएगी। इस यूनिक आईडी के जरिए डॉक्टर की पहचान होगी। इसमें डॉक्टर से संबंधित सभी डॉक्युमेंट्स, कोर्स की ट्रेनिंग और उनके लाइसेंस के बारे में जानकारी मौजूद होगी। इस यूनिक आईडी को नेशनल हेल्थ कमीशन आईटी प्लेटफॉर्म से लिंक करेगा।

दो बार आईडी जारी…

इस प्रक्रिया के तहत डॉक्टर को दो बार आईडी जारी की जाएगी। पहली बार जब वह एमबीबीएस कोर्स में दाखिला लेगा तो उसे अस्थायी नंबर दिया जाएगा। पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे स्थायी नंबर दिया जाएगा। वहीं, दूसरी ओर जो वर्तमान में प्रैक्टिस कर रहे हैं उन्हें सीधे तौर पर स्थायी आईडी जारी की जाएगी।

डॉक्टरों की यूनिक आईडी से मरीजों को क्या लाभ…

डॉक्टर मलिक के मुताबिक, एक नाम के कई डॉक्टर हो सकते हैं, लेकिन यूनिक आईडी से सभी की पहचान अलग हो सकेगी। इससे मरीज भी अपने डॉक्टर की शिक्षा, प्रैक्टिस, अनुभव के बारे में जान सकेंगे। इसके अलावा, इस यूनिक आईडी से डॉक्टरों को भी लाभ होने का दावा किया जा रहा है। इसके मुताबिक, उन्हें अपने दस्तावेजों के वेरिफिकेशन के लिए बार-बार मेडिकल कॉलेज या फिर सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने होंगे। यूनिक आईडी मिलने के बाद कोई भी डॉक्टर देश के किसी भी राज्य में प्रैक्टिस के लिए संबंधित राज्य मेडिकल काउंसिल से रजिस्ट्रेशन करा सकता है।

लाइसेंस के साथ मिलता है पंजीयन…

नेशनल हेल्थ कमीशन के मुताबिक, वर्तमान में लाइसेंस लेने के दौरान ही डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन हो जाता है। राज्य मेडिकल काउंसिल प्रक्रिया पूरी करने के बाद नेशनल हेल्थ कमीशन तक पूरी जानकारी उपलब्ध कराता है। वर्तमान में देश में करीब 14 लाख रजिस्टर्ड डॉक्टर मरीजों की सेवा में जुटे हैं। इनके अलावा, देश में 200 से भी ज्यादा मेडिकल कॉलेजों में 1.08 लाख से अधिक MBBS सीटें हैं। WHO के मुताबिक, प्रति एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर का होना जरूरी है और नेशनल हेल्थ कमीशन का कहना है कि भारत इस मानक को काफी समय पहले ही पार कर चुका है।

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