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संत समाज को साधने के लिये देवस्थानम बोर्ड भंग करेंगे मोदी!

  • केदारनाथ दौरे पर चार धाम सहित 51 मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त करने का ऐलान कर सकते हैं प्रधानमंत्री

नई दिल्ली/देहरादून। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल शुक्रवार को यानी 5 नवंबर को केदारनाथ धाम जाएंगे, लेकिन उससे पहले मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को केदारनाथ की यात्रा पर जाना पड़ा। वहां के पुरोहित समाज ने चेतावनी दी थी कि वे एकजुट होकर प्रधानमंत्री के दौरे का विरोध करेंगे। पुरोहित समाज राज्य के मंदिरों को सरकारी कब्जे में लेने के लिए बने चार धाम देवस्थानम बोर्ड से नाराज है और करीब 4 महीने से इसका विरोध कर रहा है। पंडे-पुरोहितों की नाराजगी से घबराए पुष्कर धामी को खुद पुरोहित समाज से बात करने के लिए जाना पड़ा।सूत्रों के अनुसार पुरोहितों के साथ हुई बंद कमरे में मीटिंग में धामी ने आश्वासन दिया है कि पुरोहित समाज के हक में ही फैसला आएगा। उन्होंने देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की बात मोदी से करने का आश्वासन भी दिया है। हालांकि उन्होंने खुलकर यह नहीं कहा है कि चारधाम देवस्थानम बोर्ड भंग किया जाएगा, लेकिन सूत्रों की मानें तो पुरोहितों की नाराजगी को देखते हुए पीएम के दौरे के तीन दिन पहले सीएम का केदारनाथ के दौरे का फैसला दिल्ली में भाजपा के नेतृत्व से बातचीत के बाद ही लिया गया है। बातचीत में तय हुआ है कि PM के दौरे में बोर्ड को भंग करने का भरोसा पुरोहितों को दिलाया जाएगा। बोर्ड भंग होने की औपचारिक घोषणा का वक्त भी लगभग तय हो गया है। 30 नवंबर तक बोर्ड को भंग कर दिया जाएगा।गौरतलब है कि 15 जनवरी, 2020 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री समेत प्रदेश के 51 मंदिरों का प्रबंधन हाथ में लेने के लिए ‘चार धाम देवस्थानम बोर्ड’ बनाया था। मंदिरों के पुरोहितों ने मंदिरों के सरकारीकरण का विरोध किया। उत्तराखंड सरकार के इस कदम को हिन्दुओं की आस्था में दखल करार देते हुए साधु-संत और पुरोहितों समाज एकजुट हो गया।करीब सवा साल से लगातार इस फैसले के खिलाफ उत्तराखंड में आंदोलन जारी है।चारधाम तीर्थ पुरोहित हक हकूकधारी महापंचायत के अध्यक्ष के कोटियाल के मुताबिक यह बोर्ड एक तरह से हिन्दू धर्मस्थल मंदिरों में सरकारी कब्जे की कोशिश है। बोर्ड बनने से पहले तक इन मंदिरों की देखभाल पुरोहितों के जिम्मे थी, मंदिर पर चढ़ने वाले चढ़ावे को पुरोहित ही संभालते थे। बोर्ड बनने के बाद पुरोहित मंदिरों की जिम्मेदारी तो उठा रहे हैं, लेकिन उन पर चढ़ने वाले चढ़ावे का ब्योरा सरकार रखती है।पुरोहितों की चिंता यह भी है कि यह बोर्ड मंदिर की संपत्ति और जमीन पर सरकारी कब्जे की कोशिश है। कोटियाल कहते हैं कि सरकार ने इतना बड़ा कानून बनाने से पहले इस मामले के मूल पक्षकारों यानी पुरोहित समाज से चर्चा तक नहीं की। राज्य के 51 प्राचीन मंदिरों पर बोर्ड का कब्जा है। इसमें गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ और केदारनाथ शामिल हैं। इन मंदिरों में बोर्ड नियामक बॉडी की तरह काम करता है।पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने 9 अप्रैल 2021 यानी अपने जन्मदिन के मौके पर संत समाज को आश्वासन दिया था दी कि वह देवास्थानम बोर्ड भंग करेंगे। इस घोषणा के करीब तीन महीने बाद 4 जुलाई को तीरथ सिंह रावत की सीएम पद से विदाई हो गई, लेकिन इन तीन महीनों में रावत संतों से किया अपना वादा नहीं पूरा कर सके।मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को मुख्यमंत्री बने करीब चार महीने से ऊपर का समय हो गया है, लेकिन सूत्रों की मानें तो उनकी कैबिनेट में एक बार भी इस मामले को लेकर चर्चा नहीं हुई। अब जबकि चुनाव करीब हैं। संत समाज ने चेतावनी दी थी कि वह पीएम के दौरे का विरोध करेंगे। हालांकि धामी की पुरोहितों के साथ हुई बंद कमरे में बैठक के बाद विरोध पर आमादा संत समाज थोड़ा नरम दिखाई पड़ रहा है।मोदी केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की समाधि का शिलान्यास करेंगे और उनकी प्रतिमा का अनावरण करेंगे। कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल के मुताबिक प्रधानमंत्री वहां 150 करोड़ की लागत के कई प्रोजेक्ट का शिलान्यास करेंगे। साथ ही वह उत्तराखंड में करीब 250 करोड़ से बनकर तैयार हुए अलग-अलग बुनियादी ढांचों का भी उद्घाटन करेंगे।

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