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आख़िर स्टिंगबाज ने क्यों पहना समाजसेवी का नकाब, क्या राज है इसके पीछे ?

देहरादून : सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज…. आजकल यह कहावत उत्तराखंड के पत्रकारों पर सटीक बैठ रही है। चंद पत्रकारों के साथ ही कुछ मुद्दों को भुनाकर लोगों में एक मसीहा बनने की चाहत है। लेकिन क्या करे जनाब, इनके कुकर्म ही इनका पीछा नही छोड़ पा रहे हैं। अकसर लोग पूछते है कि पत्रकार क्या होता है? कैसे काम करता है? तो मेरे मन में यह आता है कि हम इन सरल शब्दों का कैसे जवाब दे। हमारे मन में मेहनत और ईमानदारी से जीवन यापन करने वाले पत्रकारों की जीवनशैली आती है। तो वही स्टिंगबाज लोग जो स्टिंग के बदले पैसों का लेनदेन करते हैं। उनकी भी छवि उभरती है। बरहाल आज यह मुद्दा जीवंत है।

पत्रकारिता का एक जीवंत पहलू है कि हम जिन संस्थाओं और व्यक्ति की न्यूज़ आदि प्रकाशित या प्रसारित करते हैं उनसे विज्ञापन मांगकर जीवनयापन करते हैं। दैनिक अखबार हो या न्यूज़ चैनल सब जगह यही परंपरा देखने को मिली है। लेकिन स्टिंगबाजों का क्या? जो स्टिंग करके अपने महल बना रहे हैं ? ऐसे लोग स्टिंग सिर्फ अपने हितों के लिए करते हैं। यकीन ना हो तो उत्तराखंड के इतिहास में नजर डालना शुरु करते हैं।

राज्य गठन के बाद से ही इस राज्य में राजनीतिक स्थिरता का माहौल रहा है। यह माहौल राजनीति पार्टियों ने बनाया लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसमें स्टिंगबाज पत्रकारों की भूमिका भी रही है। एक स्टिंगबाज तो आजकल फेसबुक में पागल हो गया है। त्रिवेन्द्र सरकार कैसे निष्कलंक तीन साल पार गई इसके दिलों में सांप लोट रहे हैं। अन्य सरकारों में उत्तराखंड से मोटा माल समेटने में सफल रहे जनाब के हाल तो देखिए… कैसे उत्तराखंड के सीधे और सरल लोगों को बरगला रहा है।

कभी पत्रकारों को मिले विज्ञापनों को लेकर, तो कभी अन्य मुद्दों को लेकर… कभी इन महोदय से किसी ने पूछा कि पिछली सरकारों से कितना माल कमाया।
किसके कहने पर स्टिंग करते थे और किनका करते थे? उस पैसे को कैसे ठिकाने लगाते थे। आपके पैसा कमाने से अन्य पत्रकारों का क्या भला हुआ और जनता का क्या भला हुआ ? पिछली सरकारों में खनन नीति किसने प्रभावित की ? आपके कहने पर सरकार के दलाल जो आपके मित्र रहे कैसे खनन के पट्टे दिला दिया करते थे। क्यों आईएएस और आईपीएस आपके ईशारों पर नागिन डांस करते थे ? उत्तराखंड का दोहन करने वाले स्टिंगबाज आज अचानक जनता के हितों की बात करेगे तो उनका पिछला इतिहास तो जरुर पूछा जायेगा। ठीक उसी तरह जिस तरह चुनाव में उतरने वाले व्यक्ति की सात पुश्तों का लेखाजोखा जनता निकाल लाती है।

राज्य गठन के समय एक अटैची लेकर उत्तराखंड राज्य आने वाला व्यक्ति आज करोड़ों रुपये का मालिक कैसे बन गया है ? राज्य से कमाई गयी उन अकूत सम्पत्तियों का हिसाब भी देना होगा ? कभी दो दर्जन पुलिस सुरक्षा लेकर चलने वाला स्टिंगबाज को यह भी बताना होगा कि तूझे इतनी लंबी चौड़ी सुरक्षा की जरुरत क्यों आन पड़ी ? यह भी बताना होगा कि किस तरह तुमने अपने साथी के साथ धोखाधड़ी करके आलीशान करोड़ो रुपये का स्टूडियो और सेटअप अपने नाम कराया था ? फिर तुमने कैसे करोड़ों रुपये की कंपनी का चूना लगाया। अपने से पिण्ड छुड़ाने के लिए कंपनी से तुमने क्या डील की ?

जब तक चैनल चलाता रहा तुमने कौन सा पत्रकारिता धर्म निभाया? अगर दम है तो इस पर फेसबुक पर सीरीज निकालकर बताना शुरु कर। बहुत बड़ा पत्रकार है ना… असल में जिस व्यक्ति को सरकार से ब्लैकमेल करके अच्छा नोट कमाने की आदत हो उसे त्रिवेन्द्र सरकार पूछ नहीं रही और न उसे घास ही डाल रही है। इस लिए सरकार के साथ ही कुछ चंद पत्रकारों को भी निशाना बनाया जा रहा है। याद है कि नहीं भूल गया जब एक पूर्व मुख्यमंत्री ने दिल्ली में आयोजित शादी समारोह में मंच पर तेरे साथ फोटो खिचवाने पर आपत्ति जताई थी, जिस पर कमांडो ने कोहनी मारकर मंच से धक्का दे दिया था। अभी एक केन्द्रीय मंत्री के यहां दो घंटे तक बैठने के बाद भी उन्होंने अंदर नहीं आने दिया। यह है तेरे कुकर्म… जो अब धीरे-धीरे ही सही पर अब सब समझ रहे हैं।

अब तेरे जैसे के स्टिंगबाज के झांसे में नही आऐंगे पहाड़ के लोग। पहले तू उन्हे बरगलाता है फिर उन्ही का स्टिंग करके नोट कमाता है… आगे भी तेरी पोल खोलूंगा। याद रख मैं ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहा हूँ लेकिन अब तेरा जवाब देना जरुरी समझता हूँ ।

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