सदन में खुली सिस्टम की ‘कलई’
- कोरोना से मृत्यु दर देशभर में सबसे ज्यादा
- सेहत पर प्रति व्यक्ति पांच रुपये रोज ही खर्च
- बच्चों की कमी से बंद हो रहे सरकारी स्कूल
- सैकड़ों प्राथमिक स्कूल जीर्ण शीर्ण हालत में
- 10 संस्कृत कालेजों से छिना कॉलेज का दर्जा
- स्थानीय भाषाओं को पढ़ाने का नहीं विचार
- उत्तराखंड में सूख रहे हैं प्राकृतिक जल स्रोत
देहरादून। भाजपा की सरकार पिछले साढ़े चार सालों ने विकास के तमाम दावे कर रही है, लेकिन विधानसभा में विधायकों के सवालों पर सरकार की ओर से आए जवाब यह बताने को काफी है कि सिस्टम किस तरह से काम कर रहा है। अहम बात यह भी है कि तमाम विकास कार्यों के लिए सरकार वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता की बात करके पल्ला झाड़ रही है।
स्वास्थ्य विषयक एक सवाल पर विभागीय मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने सदन को बताया कि वर्ष 2021 में इस मद में 16.65 अरब रुपये खर्च किए हैं। उन्होंने कहा कि इस लिहाज से राज्य में प्रति व्यक्ति रोजाना 5.06 रुपये खर्च किए जा रहे हैं। एक अन्य सवाल पर उन्होंने स्वीकारा कि उत्तराखंड में कोरोना से मृत्यु दर देशभर में सबसे ज्यादा 2.15 फीसद रही है। भगवानपुर मेडिकल कॉलेज निर्माण पर बताया कि यह वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर है।
उन्होंने माना कि एनएचएम संविदा कर्मियों के आंदोलन की वजह से कोरोना सैंपलिंग और टीकाकरण का काम प्रभावित हो रहा है। मंत्री ने स्वीकार किया कि ओखलकांडा क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं। आयुष मंत्री ने बताया कि आयुष में डिप्लोमा और डिग्री धारकों को आउटसोर्सिंग पर भर्ती का कोई विचार नहीं है।
एक सवाल पर शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने स्वीकारा कि सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं की कमी हो रही है। इस वजह से कई स्कूल बंद करने पड़ रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने सदन को बताया कि राज्य में एनसीईआरटी और सीबीएसई पाठ्यक्रमों से पढ़ाई हो रही है। लिहाजा गढ़वाली, जौनसारी और कुमाऊंनी भाषाओं को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया जा सकता।
शिक्षा मंत्री ने स्वीकारा कि कोविड की वजह से कई निजी स्कूलों को हटाने की जानकारी है। इन पर जिला स्तर से एक्शन हो रहा है। उन्होंने यह भी स्वीकारा कि मानक पूरा न करने की वजह से 10 संस्कृत कालेजों से महाविद्यालय का दर्ज छिन गया है। एक सवाल पर शिक्षा मंत्री ने स्वीकारा कि राज्य में 172 माध्यमिक और 1116 प्राथमिक स्कूल भवन या तो जीर्णशीर्ण या फिर मरम्मत के योग्य हैं।
सरकार ने सदन को बताया कि हर घर नल-हर घर जल योजना में अब तक 360 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। सरकार की ओर से बताया कि कोविड में नौकरी खोने की वजह से युवाओं में तनाव की स्थिति पैदा होने के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। सरकार ने सदन को बताया कि कोरोना से मरने वालों के परिजनों को दो लाख रुपये देने का कोई भी प्रावधान नहीं है। एक सवाल पर सरकार की ओर से बताया गया कि उत्तराखंड में ई-विलेज बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
ऐसे में अब सवाल यह उठ रहा है कि इन तमाम खामियों के लिये क्या केवल सरकार ही दोषी है। क्या कार्य़पालिका (सिस्टम) इसके लिए दोषी नहीं है। कोई भी काम सिस्टम ही करता है। मंत्री या विधायक खुद तो यह काम करते नहीं हैं। अलबत्ता मानीटरिंग की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही है। विडंबना यह है कि यह कथित ‘मॉनीटरिंग’ भी सफेद हाथी बने नौकरशाहों की ‘बेशकीमती’ सलाह के चश्मे से ही की जाती रही है। इसका तोड़ किसी के पास नहीं है।