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उत्तराखंड के 500 ‘भूतिया गांवों’ में फिर लौटी जिंदगी!

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के प्रयास ला रहे रंग

  • पलायन के चलते खाली हुए 1700 गांवों को घोषित किया गया था भूतिया गांव
  • दूसरे राज्यों और शहरों में काम की तलाश मे चले गए थे इन गांवों के लोग
  • लॉकडाउन के बाद नौकरियां खत्म होने से इन गांवों में  फिर लौटने लगी है रौनक

देहरादून। लॉकडाउन से पहले तक उत्तराखंड के लगभग 1700 गांव ऐसे थे जिन्हें पलायन आयोग ने भूतिया गांव घोषित किया था। इनके अलावा 1000 गांव ऐसे थे जहां 100 से भी कम लोग बचे थे। पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि आयोग अब सर्वे करा रहा है। प्रारंभिक सर्वे में पता चला है कि लगभग 550 गांवों में लोगों की रेकॉर्ड वापसी हुई है।
इन गांवों में ही डिफेंस स्टाफ के चीफ बिपिन रावत का गांव भी शामिल है। पौड़ी गढ़वाल के सैना गांव में सिर्फ दो परिवार ही बचे थे। पिछले महीने गांव में तीसरे घर में रोशनी नजर आई। इस घर में रहने वाले हरि नंदन सिंह हाल ही में शहर से अपने गांव लौट आए हैं।
पलायन आयोग ने बलूनी गांव को भूतिया गांव घोषित कर दिया था। इस गांव से पूरी तरह पलायन होने के बाद यहां कोई नहीं बचा था। अब इस गांव में भी रौनक लौटने लगी है। अब तक आठ परिवार अपने गांव लौट आए हैं।

दिल्ली से अपने घर लौटे विजय कुमार बहुत खुश हैं। उन्होंने बताया, ‘वह 20 साल बाद अपने गांव आए हैं। वह दिल्ली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे। लॉकडाउन के बाद नौकरी चली गई तो वापस लौटना ही एक रास्ता बचा। अब मैं अपने गांव में ही रुककर संभावनाएं तलाश करूंगा।’ बोरा गांव की प्रधान अंजलि देवी ने कहा कि उनके गांव की रौनक लौट आई है। अब गांव में बच्चे खेलते हुए नजर आते हैं। यहां त्योहार जैसा माहौल हो गया है। लोग खेतों पर काम करते नजर आने लगे हैं। गांव में अब महिलाएं और पुरुष पेड़ों के नीचे बैठकर बातें करते हैं। उन्हें उम्मीद है कि अभी गांव में और लोग लौटकर आएंगे।

अल्मोड़ा जिले के कई गांवों में जहां 80 फीसदा आबादी पलायन कर गई थी, वहीं अब फिर से लोग लौट रहे हैं। नैनी खैरी गांव में लौटकर आए राम सिंह ने बताया कि वह दस साल बाद अपने गांव आए हैं। वह दिल्ली में नौकरी करते थे। उनके साथ परिवार के 9 और लोग लौटकर आए हैं। उन्होंने बताया कि वह एक होटल में काम करते थे। अब वह गांव में ही रहकर खेती करेंगे।

लोगों ने बताया कि यहां पर अधिकांश लोग आमदनी और सुविधाएं न होने के कारण पलायन कर गए थे। इन गांवों का हाल यह है कि यहां पर कोई सड़कें नहीं हैं। लोगों के पैदल चलने से जो ट्रैक बन गए हैं, उसी से आना जाना होता है। उन पर बाइक तक नहीं चल सकती।
पूनाकोट गांव में अब तक छह परिवार लौटकर आ चुके हैं। लोगों ने कहा कि अब इन लोगों का पलायन न हो इसलिए सरकार को उनके लिए योजनाएं बनानी होंगी। हालांकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लॉकडाउन होते ही प्रवासियों के घर लौटने और रोजगार की समस्या को देखते हुए ठोस प्रयास शुरू कर दिये थे। जो अब रंग दिखाने लगे हैं। इसी क्रम प्रवासियों और अन्य बेरोजगार लोगों से विकल्प मांगे जा रहे हैं कि वे किस क्षेत्र और किस तरह का रोजगार करना चाहेंगे ताकि उन्हें उनके क्षेत्र विशेष के लिये आर्थिक मदद के साथ अन्य तकनीकी सहायता भी उपलब्ध कराई जा सके। मुख्यमंत्री का लक्ष्य अब रिवर्स पलायन के साथ ही इस बात पर है कि उत्तराखंड के प्रवासियों का अनुभव का लाभ यहां के स्थानीय युवाओं को भी मिल जाये जिससे भविष्य में भी उन्हें जमीन से कटने और पलायन जैसी परिस्थितियों का सामना न करना पड़े।

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