उत्तराखंड के जंगलो में लगती हुई भीषण आग तेज़ी से बढ़ रही हैं जिसका प्रभाव जंगली जानवरों व जंगल की मिट्टी पर पढ़ रहा है | पिछले दस सालों से हर साल औसतान तीन हज़ार हेक्टेयर वन जले हैं | जंगलों में आग लगने के कारण वन अधिकारीयों को कई तरह के संकटों का करना पढ़ रहा सामना |
हवाओं के तेज़ परवाह के चलते जंगलों में विकराल रूप से फैल रही है आग जिसके कारण कई दर्दनाक घटनाये सुन ने में आ रही हैं | जंगलों के पास रहने वाले कई लोग भी इन लपटों का शिकार बन सकते हैं | इन घटनाओ को देखते हुए भी वन विभाग के लोग नहीं ले रहे हैं सबक, यहां मार्च से लेकर जून के आखरी हफ्ते तक लगती हे आग, जिसे वनाग्नि काल भी कहा जाता हैं, जिसमे वन विभाग के अधिकारी आग लगने के कारणों व बुझाने के उपायों और जिम्मेदारी तय करने के आरोप-प्रत्यारोप करने में ही बीता देते हैं | इस साल भी अभी तक आग लगने की कई घटनाये सामने आ चुकी हैं | लेकिन अभी तक कोई भी ठोस रणनीति सरकार या विभाग द्वारा नहीं बनाई गयी है | जंगलों की आग के लिए सिर्फ सरकार या वन विभाग को ही जिम्मेदार नहीं ठराया जा सकता है, इसमें आम लोगो की भी उतनी ही जिम्मेदरी है ऐसे भी कई मामले सामने आये है जिनमे आग लगने का कारण स्थानीय लोग ही होते है | एक जो सबसे बड़ा कारण सुनने को मिलता है जो कि हास्यास्पद लगता है
कि बल कोई बीड़ी पी रा था और आग लग गयी