सियासत की शतरंज
- कांग्रेसी शासनकाल में 2011 में विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह ने शुरू किया था विधानसभा में अपने चहेतों की नियुक्ति का खेल
- कुंजवाल ने अपने बेटे और बहू के साथ दी थी 158 लोगों को नौकरी, लेकिन प्रेमचंद 72 लोगों की नियुक्ति में आये निशाने पर
देहरादून। विधानसभा में आजकल 2011 से लेकर 2021 तक बैक डोर से की गई भर्तियों को लेकर बेरोजगार युवा सड़कों पर हैं और इसमें कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के नेताओं की भी खूब किरकिरी हो रही है। अब सबको जांच कर रही एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है, ताकि इसमें दोषी राजनेताओं की पोल खुल सके और गलत तरीके से भर्ती किए गए लोगों को हटाकर स्वच्छ और पारदर्शी तरीके से पात्र लोगों की नियुक्ति की जा सके।
हालांकि विधानसभा में अपने चहेतों की भर्ती का मामला वैसे तो कांग्रेसी शासनकाल में 2011 में शुरू हो गया था, जब कांग्रेस की सरकार में विधानसभा अध्यक्ष के पद पर गोविंद सिंह कुंजवाल काबिज थे। कुंजवाल ने उस वक्त अपने परिवार के रिश्तेदारों, परिचितों और आसपास के लोगों को भर्ती किया था, तो इससे नाराज कुछ लोग कोर्ट में चले गए थे। कोर्ट में नियुक्ति लिस्ट जमा होने के बाद जब लिस्ट आउट हुई तो पता चला कि कांग्रेस के समय में भी अपने चहेतों को नौकरी पर लगाया था।
मामले में जांच शुरू होते ही कुंजवाल ने कहा था, ‘मेरा बेटा और मेरी बहू बेरोजगार थे, दोनों पढ़े-लिखे थे. अगर डेढ़ सौ से अधिक लोगों में मैंने अपने परिवार के दो लोगों को नौकरी दे दी तो कौन सा पाप किया। मेरे कार्यकाल में कुल 158 लोगों को विधानसभा में तदर्थ नियुक्ति दी गई थी। इनमें से 8 पद पहले से खाली थे और 150 पदों की स्वीकृति मैंने तत्कालीन सरकार से लेकर की थी. मैंने कोई भी काम नियम विरुद्ध नहीं किया है।
फिर 2021 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल में जो भर्तियां हुई थीं, उन पर भी सवाल उठाये गये। जब नियुक्ति से संबंधित पेपरों को विधानसभा के अंदर से ही कुछ अधिकारियों ने बाहर मीडिया में लीक किया तो यह खबर प्रदेश में आग की तरह फैल गयी। इसके बाद बाकायदा एक एक नियुक्ति को लेकर संबंधित नेताओं, अधिकारियों, मीडियाकर्मियों व अन्य लोगों के कनेक्शन भी लिखकर दीवारों पर चस्पा किए गए।
उसके बाद यह बखेड़ा शुरू हो गया। हालांकि कई नेताओं ने अपने कनेक्शन को नकार दिया तो कई लोगों ने पात्रता के आधार पर नियुक्ति की बात कही। वहीं कुछ लोगों ने नाम बदनाम करने के आरोप में खबरें छापने वालों के खिलाफ कोर्ट भी जाने की धमकी दी। हालांकि इस मामले में कुछ दिनों तक सीना तान कर कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल कहते रहे कि सभी नियुक्तियां विधानसभा के अधिकारियों के संज्ञान में हैं और सब कुछ नियमों के अधीन हुआ है और उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है।
इस पूरे मामले को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल रहे हैं, जो मौजूदा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और वह इस वक्त शहरी विकास मंत्रालय का कामकाज संभाल रहे हैं। इससे पहले वह त्रिवेंद्र सरकार में विधानसभा अध्यक्ष थे, जब ये नियुक्तियां हुईं थीं। सबसे ज्यादा सवाल उन्हीं पर खड़े हो रहे हैं कि उन्होंने ही विधानसभा सचिव की नियुक्ति की थी और वित्तमंत्री और शहरी विकास मंत्रालय संभालते ही तुरंत 72 लोगों के वेतन रिलीज करवा दिए। ये सभी लोग उन्हीं के कार्यकाल में भर्ती हुए थे।
कहा जाता है कि सबसे पहले उनकी 5 महीने का वेतन एक साथ रिलीज किया था। यह मामला तब सामने आ गया जब नियुक्त किए गए लोगों के नाम लीक हुए। दीवारों पर चस्पा की गई लिस्ट के आधार पर जांच भले ही हो रही है, लेकिन वह वायरल जानकारी सही है या गलत, इसके बारे में कोई खुलकर नहीं बोलता है और सरकारी अफसर जांच का हवाला देकर मामले को टाल देते हैं। जबकि इसमें शामिल अधिकांश नाम सही हैं. इनकी तैनाती भी हुई है, लेकिन क्यों व कैसे हुई है, इस पर कोई अपना मुंह नहीं खोलना चाहता है।
विधानसभा में भर्ती में धांधली के बाद प्रेमचंद पर सवाल खडे उठ रहें हैं. लेकिन भाजपा ने इस मामले से पल्ला झाड़ते हुए साफ कर दिया हैं कि विधानसभा में भर्ती से सरकार का कोई लेना देना नहीं हैं। यानी इस कांड का सारा ठीकरा प्रेमचंद पर फोड़ने की योजना बना रखी है। अब भाजपा नेताओं ने भी कहना शुरू कर दिया है कि गलत को गलत ही कहा जाएगा और किसी ने गलत किया हो तो उसे बख्शा नहीं जाएगा।
सत्ता के गलियारों की चर्चा के अनुसार जिस तरह से प्रेमचंद के विभाग और एक एक काम के ऊपर सीएम पुष्कर सिंह धामी नजर बनाए हुए हैं, उससे यह साफ दिखता है कि प्रेमचंद का फीडबैक फिलहाल सरकार के पास ठीक नहीं है और आने वाले दिन उनके लिए अच्छे नहीं है। सूत्रों के अनुसार इस पूरे मामले में प्रेमचंद की कुर्सी जाना तय है। फिलहाल भाजपा सरकार के ऊपर कार्रवाई का बहुत प्रेशर है। ऐसे में माना जा रहा है कि प्रेमचंद अग्रवाल के साथ साथ भाजपा संगठन व आरएसएस से जुड़े नेताओं व कार्यकर्ताओं पर भी गाज गिर सकती है। अब देखना यह है कि धामी सरकार क्या कदम उठाती है?