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उत्तराखंड : अब शिलासमुद्र ग्लेशियर में दरारें और होल बने खतरे की घंटी!

  • किसी प्राकृतिक आपदा में अगर शिलासमुद्र फटा तो सितेल, कनोल, घाट, नंदप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक कई शहरों का मिट सकता है नामोनिशान

कर्णप्रयाग। बीते रविवार को चमोली जिले में फटे ग्लेशियर के हादसे के बाद अब विशेषज्ञों की निगाह  नंदाकिनी नदी के किनारे शिलासमुद्र ग्लेशियर पर टिक गई हैं जो दरारें आने और उसकी तलहटी में होल बने खतरे की जद में आ गया है। विशेषज्ञों के अनुसार शिलासमुद्र के ठीक नीचे ग्लेशियर की तलहटी पर बने दो छेद और उसके आसपास आई दरारें कभी भी कहर बरपा सकती हैं। उनका कहना है कि भविष्य में कभी बड़ा भूकंप आने की दशा में अगर शिलासमुद्र ग्लेशियर फटता है तो सितेल, कनोल, घाट, नंदप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक कई शहरों का नामोनिशान मिट सकता है।
गौरतलब है कि शिलासमुद्र ग्लेशियर नंदा राजजात का 16वां पड़ाव है। धार्मिक महत्ता का प्रतीक होने के साथ पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां पर दुर्लभ प्रकार के जीव जंतु पाए जाते हैं, जो गढ़वाल हिमालय के ईकोलॉजी सिस्टम में भी खास भागीदारी निभाते हैं। शिलासमुद्र ग्लेशियर लगभग आठ किलोमीटर परिक्षेत्र में फैला है। इस ग्लेशियर के ऊपरी भाग में सैकड़ों टनों के हजारों पत्थरों की भरमार है और इसकी तलहटी पर पिछले कुछ सालों से एक बड़ा गोलाकर छेद बन रहा है। वर्ष 2000 और 2014 की राजजात में गए तीर्थयात्रियों के अनुसार पहले ग्लेशियर की तलहटी में बना यह छेद काफी छोटा था। वर्तमान में इसका आकार बड़ा होता जा रहा है। जो पूरे क्षेत्र के लिये खतरे की आहट है।
विशेषज्ञों के अनुसार पहले इस ग्लेशियर के नीचे सिर्फ एक छेद बना था, लेकिन अब पहले वाले छेद के अंदर कुछ दूरी पर दूसरा छेद भी बन गया है। इन छेदों के ऊपर और आसपास बड़ी-बड़ी दरारें पड़ी हैं। इससे भविष्य में आने वाले खतरे की आहट से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण के जानकार इसे खतरे की घंटी बता रहे हैं। उनका कहना है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हल्के भूकंप भी ग्लेशियरों के लिए खतरनाक बन सकते हैं। एचएनबी गढ़वाल विवि श्रीनगर में भूगोल विभाग के प्रो. मोहन पंवार का कहना है कि
गढ़वाल हिमालय अभी बाल्यावस्था में है और इसकी सतहें कमजोर हैं। गंगोत्री, पिंडर, नंदाकिनी और मंदाकिनी ग्लेशियरों के पिघलने में कुछ दशकों से तेजी आई है। इसका मुख्य कारण तापमान में बढ़ोतरी होना है। समय रहते हमने यदि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना और वनों का अनियोजित दोहन करना बंद नहीं किया तो परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।

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