Friday , March 29 2024
Breaking News
Home / उत्तराखण्ड / जैसे-जैसे हो रहा पहाड़ का ‘विकास‘, वैसे-वैसे बढ़ते जा रहे लैंडस्लाइड जोन!

जैसे-जैसे हो रहा पहाड़ का ‘विकास‘, वैसे-वैसे बढ़ते जा रहे लैंडस्लाइड जोन!

देहरादून। उत्तराखंड में पहली बार भूस्खलन वाले क्षेत्रों को लेकर किए गए सर्वे में कुछ ऐसे आंकड़े सामने आए हैं, जिसने वैज्ञानिकों को भी हैरत में डाल दिया है। दरअसल एक स्टडी के दौरान राज्य में 6 हजार से ज्यादा भूस्खलन जोन चिन्हित किए गए हैं। चैंकाने वाली बात यह है कि अब ऐसे भूस्खलन क्षेत्रों की संख्या बढ़ती जा रही है। सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 6300 भूस्खलन जोन चिन्हित किए गए हैं।दिलचस्प बात यह है कि यह आकलन उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग की रिसर्च के बाद किया गया है। उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग और विश्व बैंक साल 2018 से एक खास प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। इसके तहत पूरे प्रदेश में लैंडस्लाइड क्षेत्रों को चिन्हित किया गया और 6300 भूस्खलन क्षेत्रों का आंकड़ा सामने आया, तो विश्व बैंक के अधिकारियों के साथ ही आपदा प्रबंधन विभाग के वैज्ञानिक भी हैरत में पड़ गए। उनका मानना है कि प्रदेश में ‘विकास‘ कार्यों के चलते इनकी संख्या बढ़ती जा रही है।गौरतलब है कि इस समय उत्तराखंड में हजारों करोड़ के बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इन बड़े प्रोजेक्टों का असर पहाड़ों के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर भी पड़ रहा है। जिससे नए भूस्खलन जोन तैयार हो रहे हैं। यहां ऑलवेदर रोड के अलावा ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन और कई छोटी-बड़ी जल विद्युत परियोजना तैयार की जा रही हैं। जबकि हिमालय को वैज्ञानिक नई पर्वत श्रृंखला के रूप में बताते हैं। जिसमें तेजी से प्राकृतिक बदलाव हो रहा है। इसलिये बड़े स्तर पर हो रहे निर्माण कार्यों केचलते कच्चे पहाड़ भरभरा कर गिर रहे हैं और नए भूस्खलन जोन तैयार हो रहे हैं।गढ़वाल जोन में ज्यादा सक्रिय लैंडस्लाइड जोन रिकॉर्ड किए गए हैं। ऋषिकेश के पास ही कौड़ियाला से भूस्खलन के जोन मिलने लगते हैं। इसके बाद तोताघाटी, तीनधारा और देवप्रयाग तक कई बड़े भूस्खलन क्षेत्र हैं। उधर कुमाऊं में भी लैंडस्लाइड के जोन बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड में मानवीय गतिविधियों के साथ ही बारिश के पैटर्न में हुए भारी बदलाव ने भी भूस्खलन जोन को बढ़ाने का काम किया है। जिस तरह बारिश के स्वरूप ने कुछ क्षेत्रों में सूखा तो कुछ क्षेत्रों में अचानक भारी से अति भारी बारिश होने का पैटर्न अपनाया है, वह बेहद खतरनाक संकेत दे रहा है।पर्यावरणविदों का कहना है कि कुछ क्षेत्रों में अचानक बारिश का बेहद ज्यादा होना रिकॉर्ड किया जा रहा है। यह पर्यावरण के लिहाज से खतरनाक है क्योंकि इस पैटर्न से एक तरफ कई क्षेत्रों में बारिश न होने की स्थिति पैदा हो रही है तो दूसरी तरफ जिस क्षेत्र में अचानक भारी बारिश होती है, वहां पर नुकसान भी ज्यादा होता है। इससे पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन जैसी घटनाओं की संख्या मं इजाफा होता जा रहा है। जिस तरह भूस्खलन जोनों की संख्या बढ़ने से स्थानीय लोगों की परेशानियां बढ़ने के साथ पहाड़ों पर जाने वाले पर्यटकों के लिए भी खतरा बढ़ गया है।

About team HNI

Check Also

सेना में अग्निवीर भर्ती के लिए आवेदन शुरू, पद नाम और चयन प्रक्रिया बदली, जानिए

Agniveer Bharti 2024 : भारतीय सेना में अग्निवीर भर्ती 2014 के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया …

Leave a Reply