- गायन के साथ-साथ 7 से अधिक वाद्ययंत्र बचाने में माहिर
- प्रतिभाशाली बच्चों के लिए उत्तराखंड में एक म्यूजिक स्कूल खोलने की मंशा
- भारत सहित 13 देशों में कर चुके हैं 1200 शोज
गजे सिंह बिष्ट
ग्वालदम। आप आला दर्जे के कुंदन हो। ऐसा कुंदन जो दुनिया के किसी सोने की खान में भी नहीं मिल सकता। आज आपने उत्तराखंड वासियों का मस्तक श्वेत हिमालय की तरह ऊंचा कर दिया है। जी हां यहां बात हो रही इंडियन आइडल के विजेता पवनदीप राजन की। फक्र की बात यह है कि वह उत्तराखंड के चंपावत जिला के एक छोटे सी जगह के रहने वाले हैं। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी आवाज का जादू दिखा चुके हैं। इंडियन आइडल 11 सीजन के बाद 12वें सीजन में पहली बार उत्तराखंड के नाम यह चमचमाती ट्राॅफी नसीब हुई है। गायन के साथ-साथ तबले पर थिरकती अंगुलियां, ड्रम पर उछलते- कूदते हाथ। हार्मोनियम, गिटार, पियानो, ढोलक, कीबोर्ड जैसे कई म्यूजिकल इंस्ट्रमेंट बजा लेते हैं। ऐसी अकूत नेमत मां सरस्वती ने आप पर ही बरसायी है। इंडियन आइडल के मंच पर ही नहीं अपितु अन्य बड़े मंचों पर भी बिंदास होकर गायन के साथ वादन करने वाले गायक बिरले ही होते हैं। यूं तो आपकी नानी कबूतरी देवी उत्तराखंड की पहली गायिका रही हैं। उनके पिता सुरेश राजन कुमाऊं के प्रसिद्ध गायक हैं। भले ही उनको संगीत की बारिकियां विरासत मिली हो। लेकिन, ऐसा विलक्षण, ऐसा असाधारण, ऐसा विरल सरस्वती का वरद पुत्र को परमात्मा ने कोई कमी नहीं छोड़ी। पवनदीप अब उत्तराखंड में एक म्यूजिक स्कूल भी खोलना चाहते हैं, ताकि प्रतिभाशाली बच्चों को उचित मार्गदर्शन मिल सके।
पवनदीप राजन न सिर्फ एक अच्छे सिंगर ही नहीं हैं, बल्कि कंपोजर और म्यूजिक डायरेक्टर भी हैं। ढाई साल की उम्र में सीख लिया था तबला वाहन। वह कई मराठी और पहाड़ी फिल्मों में भी वह म्यूजिक दे चुके हैं। इतना ही नहीं अब तक पवनदीप ने इंडिया ही नहीं बल्कि विदेश में भी कई म्यूजिक कॉन्सर्ट में परफॉर्म किया है। अब तक वह 13 देशों और भारत के 14 राज्यों में करीब 1200 शोज कर चुके हैं।