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यूपी में मोदी मैजिक के आगे फीके पड़ गये पीके……….!

‘कहा जाता था प्रशांत किशोर सबको चुनाव जिता देते हैं। वैसे ही जैसे रामगोपाल वर्मा सड़क चलते किसी ऐरे-गैरे को भी स्टार बना देते हैं।’

प्रशांत किशोर का नाम पहली बार बिहार चुनाव के बाद लोगों ने सुना। हो सकता है राजनीति के गलियारों में प्रशांत किशोर उर्फ पीके को लोग पहले से जानते रहे हों, लेकिन ‘जनता’ ने उन्हें बिहार के बाद जाना। बिहार चुनाव के बाद ही यह बताया गया कि पीके ने 2014 के चुनावों में मोदी को जिताने में बड़ी भूमिका निभाई थी।

फिर क्या था, पीके का मतलब हुआ चुनावों में जीत की गारंटी। कोई भी चुनाव हो और कैसा भी चुनाव हो प्रशांत किशोर सबको जितवा देते हैं। आप उन्हें हायर कर लीजिए बाकी का काम पीके खुद ही कर देंगे।

यूपी में किसी भी तरह से वापसी की कोशिशों में लगी कांग्रेस खुद तो अपने सभी पैंतरे प्रयोग कर चुकी थी, उसे पीके के रुप में वापसी की राह नजर आई। पीके ‘भारी बहुमत’ से कांग्रेस के लिए चुन लिए गए।

प्रदेश अध्यक्ष भले ही राज बब्बर बने लेकिन यह चुनाव कांग्रेस पीके के नेतृत्व में ही लड़ रही थी। पीके ने कांग्रेस को दुरूस्त करने की अपनी क्लासरुम कोशिशें कीं। बड़े नेताओं को प्लानिंग में शामिल तो किया गया लेकिन उनसे पूछकर नहीं बल्कि उन्हें बताकर। लंबी-लंबी मीटिंग होती थीं, जाहिर है कि उनमें यूपी कांग्रेस के नेता शामिल नहीं किए जाते थे।

प्रशांत किशोर यूपी के क्षेत्रीय नेताओं को उपेक्षित करते रहे। कांग्रेस आलाकमान की तरफ से उनको फ्री हैंड था। दबी जुबान कुछ नेता पीके की इस शैली से खफा थे लेकिन यह असंतोष सतह पर नहीं आया।

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