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भाजपा की उलझन : गर हारे धामी-मौर्य को फिर दी कमान तो…!

देहरादून। उत्तराखंड और यूपी की सत्ता में वापसी से खुश भाजपा अपने दो दिग्गजों के चुनाव हार जाने से उलझन में है। इनमें से एक उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी हैं और दूसरे यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य। दोनों की अहमियत समझते हुए उन्हें सरकार में लाने के लिए हाईकमान स्तर पर चर्चा चल रही है। हालांकि इनकी वापसी आसान नहीं है। उनकी वापसी से पार्टी के भीतर सवाल भी उठेंगे और असंतोष भी बढ़ने का खतरा है।
उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर पार्टी सत्ता में तो पहुंच गई, लेकिन धामी खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए। अब पार्टी के भीतर धामी पर सहमति बनाने को लेकर कशमकश चल रही है। विरोधी खेमा धामी को किसी भी सूरत में फिर से सीएम बनाए जाने के पक्ष में नहीं है। उनका तर्क है कि धामी को फिर से सीएम बनाया गया तो सवाल उठेगा कि 2017 में हिमाचल के विधानसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत हुई थी, लेकिन सीएम पद के प्रत्याशी प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए थे। इसके बाद धूमल को क्यों सीएम नहीं बनाया गया? जीते हुए विधायकों में से ही सीएम का चुनाव हुआ था।
हालांकि धामी के समर्थकों की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि धामी ने हारी हुई बाजी को जीत में बदल दिया है। हिमाचल और उत्तराखंड के हालात की तुलना नहीं की जा सकती है। यह भी एक तथ्य है कि 2014 में पंजाब से लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद अरुण जेटली को केंद्रीय वित्त मंत्री बनाया गया था। बीते मंगलवार को धामी दिल्ली में राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मिले, लेकिन क्या बात हुई, यह बाहर नहीं आई। बाद में धामी बलूनी से उनके आवास पर भी मिले। कहा जा रहा है कि उत्तराखंड के सीएम को लेकर मोदी होली के बाद ही अंतिम फैसला लेंगे।
इसी तरह से भाजपा में सबसे बड़ा संग्राम डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को लेकर चल रहा है। एक धड़ा यह चाह रहा है कि मौर्य को फिर से डिप्टी सीएम बनाया जाए ताकि ओबीसी वर्ग में यह संदेश जाए कि उनके नेता को हारने के बावजूद पार्टी ने तवज्जो दी। विरोधी खेमे की ओर से इस पर ऐतराज किया जा रहा है। उनका तर्क है कि अगर मौर्य को फिर से डिप्टी सीएम बनाया गया तो जो हारे हुए 11 मंत्री हैं, उनका क्या होगा? पार्टी उन्हें कहां एडजस्ट करेगी। राज्य स्तर पर इससे एक नई परम्परा शुरू हो जाएगी। इससे भविष्य में भाजपा के भीतर टकराव बढ़ने की आशंका रहेगी। अब देखना यह है कि पार्टी आलाकमान इस उलझन को किस प्रकार सुलझाता है?

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