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मुख्यमंत्री के तेवरों से बाबूओं के पैरों तले खिसकी जमीन!

ये तो आगाज है, अंजाम…

  • सत्ता और हनक का केंद्र बने सचिवालय से शुरू की परंपरागत जड़ता को तोड़ने की कवायद
  • फाइल दबाने में एक्सपर्ट लोनिवि अनुभाग में नीचे से लेकर ऊपर तक के अफसरों को बदल डाला
  • सफेद हाथी बने कई निगमों के कायाकल्प को भी की जा रही आईएएस अफसरों की ताजपोशी

देहरादून। अब नौकरशाहों और अन्य बाबूओं की अब समझ में आने लगा है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी पसंद के नौकरशाह को शासन का मुखिया क्यों बनाया है। मुख्यमंत्री ने फाइल दबाने में एक्सपर्ट बताये जा रहे लोनिवि अनुभाग के नीचे से लेकर ऊपर तक के तमाम अफसरों को एक साथ बदलने का फरमान सुनाया तो मुख्य सचिव ने उसे पूरा करने में देरी नहीं लगाई और ‘घर’ के सब बदल डाले। उत्तराखंड के इतिहास में शायद इससे बड़ा उखाड़ पछाड़ आज तक नहीं दिखा। इससे उन तमाम नौकरशाहों और बाबुओं को अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती नजर आ रही है जो फाइलों पर कुंडली मारे बैठे रहते हैं। उन्हें अब तक जरूरतमंदों का सुख चैन छीनकर अपनी मेजों पर लगे फाइलों के अंबार से ‘सुकून’ मिलता रहा है। मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने भी उनकी आंखों पर चढ़े चश्मों को उतारते हुए साफ कहा कि ये अघोषित चेतावनी है, सुधर जाएं, वरना कार्रवाई से बच नहीं सकेंगे। सीएम के इस एक ही ‘वार’ से सचिवालय में परंपरागत जड़ता अब टूटती दिख रही है और सचिवालय में हड़कंप मचा है।
मुख्यमंत्री के इस एक कदम से उन्हें ‘हम नहीं सुधरेंगे’ के मुगालते से बाहर निकलने की चेतावनी मिल चुकी है। साथ ही उन्हें समझ में आ गया है कि अब निजाम की तस्वीर बदलने की दिशा में काम हो रहा है और मुख्यमंत्री ने इस ‘बदलाव’ की शुरुआत सचिवालय से ही की है।
इस माह की शुरूआत में ही शासन के नए मुखिया के तौर पर आईएएस अफसर ओमप्रकाश ने कार्यभार संभाला है। नए मुख्य सचिव को सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत का नजदीकी माना जाता है। पिछले दिनों कुछ ऐसे आदेश सामने आए हैं, जो इस बात का इशारा कर रहे हैं कि निजाम की तस्वीर बदलने की कोशिशें शुरू हो रही है। इसकी शुरुआत सचिवालय से ही गई है। सबसे पहले तो लोक निर्माण विभाग में नीचे से लेकर ऊपर तक के अफसरों को एक साथ बदल दिया गया।बताया जा रहा है कि इस महकमे में फाइलों को दबाने का खेल चल रहा था।
इसके अलावा मुख्यमंत्री के निर्देश पर सचिवालय प्रशासन विभाग को आदेश जारी कर दिए गए हैं कि सभी विभागों का परीक्षण किया जाए और लंबे समय से एक ही विभाग में जमे लोगों को तत्काल स्थानांतरित किया जाए। सरकार और शासन के मुखिया की जुगलबंदी का असर विगत दिवस सचिवालय में हुए आईएएस अफसरों के फेरबदल में भी दिखा। जिन अफसरों के पास ज्यादा विभाग थे, उनसे वापस लेकर अन्य अफसरों को दिए गए हैं। इस बदलाव में अफसरों को मिली जिम्मेदारी भी इस बात का संकेत दे रही है कि मुख्य सचिव को सिस्टम अपने हिसाब से बनाना चाहते हैं। अहम बात यह भी है कि पिछले मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह भी मुख्यमंत्री के खास थे। लेकिन कहीं न कहीं वे कड़े फैसले लेने को आगे नहीं आ पा रहे थे।
सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री के इस बड़े फैसले से सबसे ज्यादा हड़कंप समाज कल्याण अनुभाग में मचा है। गौरतलब है कि अरबों की छात्रवृत्ति का घोटाला सामने आने के बाद से समाज कल्याण विभाग भी खासी चर्चा में है। इस विभाग का दबंगता का आलम यह है कि सचिवालय के नौकरशाह घोटाले में निलंबित एक अफसर को अपने स्तर से ही बहाल कर देते हैं और विभागीय मंत्री तक को इसकी भनक नहीं लगने देते। इस मामले में मुख्यमंत्री ने आदेश दिए थे कि अधिकारी कैसे और किस अफसर ने बहाल किया, इसकी जांच की जाए, लेकिन इस विभाग के अफसरों के मुख्यमंत्री के इस आदेश को भी रद्दी की टोकरी में फेंक दिया। सूत्रों के अनुसार सीएम ने इसे गंभीरता से लिया है और उनके आदेश को ठेंगा दिखाने वाले नौकरशाह निशाने पर आ गये हैं। घोटाला खोलने वाले लोगों को भी अब इस बात की आस जगने लगी है कि  शासन के नए मुखिया ओमप्रकाश इस विभाग के उद्दंड बाबुओं की जल्द ही ‘खैर खबर’ लेने वाले हैं।
इसके साथ ही सफेद हाथी बने और चर्चाओं में रहने वाले सरकारी निगमों पर भी आईएएस अफसरों की ताजपोशी की जा रही है। ताकि उनका भी कायाकल्प किया जा सके। त्रिवेंद्र सरकार का ध्यान अब सरकारी निगमों की ओर भी गया है। आए दिन चर्चाओं में रहने वाले उत्तराखंड ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक को सरकार ने सेवा विस्तार नहीं दिया और इस पद पर मुख्यमंत्री की खास पसंद के अफसर डॉ. नीरज खैरवाल को तैनात किया गया है। इसी तरह पिटकुल के प्रबंध निदेशक का दायित्व भी डॉ. खैरवाल को ही दिया गया है। गौरतलब है कि इन दोनों निगमों में जल्द ही बड़ी संख्या में नियुक्तियां होने वाली हैं। नियुक्तियों के मामले में भी ऊर्जा निगम खासी चर्चाओं में रहा है।

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