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शांति का संदेश और मानवता की राह दिखाने वाली भारतीय संस्कृति, दुनिया के लिए प्रेरणा: केरल राज्यपाल

  • चार सत्रों में हिमालयी विकास पर हुई चर्चा
  • गंगधारा कार्यक्रम में आरिफ मोहम्मद खान थे मुख्य वक्ता
  • उत्तराखंड के राज्यपाल ने कहा-हम विश्व गुरू जरूर बनेंगे

देहरादून। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने रविवार को कहा कि वर्तमान वैश्विक अशांति के दौर में, शांति का संदेश देने की क्षमता केवल भारत के पास है। उन्होंने भारतीय संस्कृति को विशिष्ट और मानव कल्याण पर आधारित बताया। दून विश्वविद्यालय में आयोजित गंगधारा – विचारों का अविरल प्रवाह कार्यक्रम के समापन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए, उन्होंने भारतीय संस्कृति की गहराई और उसकी अहिंसात्मक प्रकृति को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा, “दुनिया में तनाव और युद्ध की स्थिति है। छोटे से छोटे देश के पास भी विनाशकारी हथियार हैं। लेकिन भारतीय संस्कृति आत्मा और मानवता की रक्षा की बात करती है। यही कारण है कि भारत ने कभी आक्रामकता नहीं दिखाई।”
कार्यक्रम में उन्होंने वेद, पुराण, महाभारत और रामायण के प्रसंगों का उदाहरण देते हुए भारतीय दर्शन की श्रेष्ठता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “धर्म केवल चर्चा का विषय नहीं, बल्कि आचरण का आधार होना चाहिए।”

उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने भारत के 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि गंगा की तरह यह व्याख्यान माला भी ज्ञान और विचारों के प्रवाह को बढ़ाकर समाज की समस्याओं के समाधान में योगदान देगी। साथ ही, उन्होंने तकनीकी नवाचारों और एआई को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने भ्रष्टाचार और नशे के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि इन बुराइयों को खत्म किए बिना प्रगति असंभव है। उन्होंने सभी नागरिकों से ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करने का आग्रह किया। पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए इसे भविष्य में भी जारी रखने का आह्वान किया। उन्होंने देवभूमि विकास संस्थान और दून विश्वविद्यालय के प्रयासों को प्रोत्साहित किया।

इस अवसर पर दधीचि देहदान समिति के सदस्यों को सम्मानित किया गया। राज्यपाल ने अंगदान और देहदान के लिए संकल्प लेने वाले दानदाताओं को भी सम्मानित किया।

कार्यक्रम में शिक्षाविद, शोधकर्ता, छात्र और समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कार्यक्रम की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सभी का आभार प्रकट किया। यह आयोजन न केवल विचारों के प्रवाह का माध्यम बना, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक चुनौतियों के समाधान का संदेश भी विश्व को देने में सफल रहा।

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