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उत्तराखंड : सीएम ने छह गुना बढ़ाया वनाग्नि बुझाने के दौरान जान गंवाने वाले वनकर्मियों का मुआवजा

वनाग्नि प्रबंधन के लिए जल्द इन्टीग्रेटेड फायर कमांड एण्ड कन्ट्रोल सेंटर की स्थापना की जायेगी : सीएम

देहरादून। दावानल पर काबू करने के दौरान जान गंवाने वाले वन कर्मियों के मुआवजे में भारी बढ़ोतरी की गई है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उक्त राशि को 2.50 लाख रुपए से बढ़ाकर 15 लाख करने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने आज शुक्रवार को यह घोषणा करते हुए कहा कि वनाग्नि पर नियंत्रण के लिए देश के पहला इंट्रीग्रेटेड फारेस्ट फायर कंट्रोल सेंटर की स्थापना देहरादून में होगी।

मुख्यमंत्री ने वन मुख्यालय में वनाग्नि प्रबंधन एवं सुरक्षा की बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिये कि वन मुख्यालय पर तत्काल इन्टीग्रेटेड फायर कमांड एण्ड कन्ट्रोल सेंटर की स्थापना की जाये। वनाग्नि प्रबंधन के लिए यह देश का पहला सेंटर होगा। इस सेंटर के माध्यम से सैटेलाईट से सीधे फायर संबंधित सूचनाओं को एकत्रित कर फील्ड लेबल तक पहुंचाने की व्यवस्था की जायेगी। इसमें फॉरेस्ट टोल फ्री नम्बर 1926 की व्यवस्था के साथ ही अन्य आधुनिक व्यवस्थाएं की जायेंगी। 15 फरवरी से 15 जून तक फायर सीजन के दृष्टिगत सभी व्यवस्थाएं तैयार रखी जाये। वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करना सबका दायित्व है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कैम्पा मद से प्राप्त बाईकों को हरी झण्डी दिखाई एवं स्टेट फायर प्लान प्रति का अनावरण भी किया।

त्रिवेन्द्र ने कहा कि वनाग्नि को बुझाने में जान गंवाने वाले फ्रंटलाईन फॉरेस्ट स्टॉफ के आश्रितों को दी जाने वाली धनराशि 2.5 लाख से बढ़कार 15 लाख रूपये की जायेगी। गढ़वाल वन प्रभाग, पौड़ी के वनकर्मी हरिमोहन सिंह एवं फॉरेस्टर दिनेश लाल को वनाग्नि बुझाते समय कार्यों के निर्वहन के दौरान अपनी जान गंवानी पड़ी। बैठक शुरू होने से पूर्व इन दोनों कार्मिको के निधन पर दो मिनट का मौन रखा गया।
त्रिवेन्द्र ने निर्देश दिये कि वनाग्नि प्रबंधन के लिए एक अपर प्रमुख वन संरक्षक स्तर के अधिकारी को जिम्मेदारी दी जाये। राज्य में वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए इनके द्वारा मॉनिटरिंग की जायेगी। वनाग्नि प्रबंधन हेतु समय कंट्रोल बर्निंग (पहाड़ के टॉप से नीचे की ओर) तथा फॉरेस्ट फायर लाइंस के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दिया जाय। इसमें आ रही बाधाओं का जल्द निराकरण किया जाये। फ्रंटलाईन फॉरेस्ट स्टॉफ वन सुरक्षा एवं प्रबंधन की महत्वपूर्ण कड़ी है। उनके लिए आवासीय फॉरेस्ट लाईन्स का निर्माण किया जाये।  

मुख्यमंत्री प्रमुख सचिव वन एवं प्रमुख वन संरक्षक को निर्देश दिये कि एक सप्ताह में कैंपा परियोजना से संबंधित कार्ययोजना तैयार कर उसका प्रस्तुतीकरण दिया जाये। टोंगिया ग्रामों का प्रस्ताव भी एक सप्ताह में दिया जाये। वन्य जीवों से सुरक्षा के लिए सुरक्षा दीवार के बजाय सोलर फेंसिंग पर अधिक ध्यान दिया जाये। यह कम लागत पर अधिक परिणामकारी है। वनाग्नि को रोकने के लिए लगातार प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं जागरूकता के कार्यक्रम किये जाए। स्थानीय लोगों को भी वनाग्नि को रोकने के लिए भागीदार बनाया जाये। वन पंचायतो को सक्रिय रखा जाये।
मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से जुड़े सभी जिलाधिकारियों एवं डीएफओ को निर्देश दिये कि वनाग्नि प्रबंधन के लिए सभी व्यवस्थाएं तैयार रखी जाये। आवश्यक उपकरणों की पूर्ण व्यवस्था के साथ ही एसडीआरएफ मद से भी उपकरण ले सकते हैं। वनाग्नि को रोकने के लिए पिरूल एकत्रीकरण की व्यवस्था की जाए एवं समय-समय पर जिलाधिकारी के स्तर पर बैठकें आयोजित की जाये। यह सुनिश्चित किया जाये कि  वनाग्नि में जान गंवाने वालों को शीघ्र मानकों के अनुसार मुआवजा मिल जाये। उन्होंने जिलाधिकारियों को निर्देश दिये कि फायर सीजन के दौरान वन विभाग के नियंत्रणाधीन वाहनों को अधिग्रहण न किया जाये।

गौरतलब है कि इस बार सर्दियों में भी जंगल के आग के कई मामले सामने आए हैं। बेमौसम की इस आग से वन महकमा खासे दबाव में भी है। आज शुक्रवार को वन विभाग के अधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री ने वनाग्नि रोकने की योजना की समीक्षा की। उन्होंने कहा कि वनाग्नि प्रबंधन में बेहतर काम करने वाली वन पंचायतों को वन विभाग सम्मानित करेगा। पहला पुरस्कार पाने वाली वन पंचायत को पांच लाख रुपये दिए जाएंगे। इसी के साथ वन पंचायतों के चुनाव कराने की तैयारी भी सरकार ने शुरू कर दी है। 
प्रदेश में करीब 15 हजार वन पंचायतें हैं। इनमें से करीब चार हजार वन पंचायतें खासी सक्रिय भी हैं। ये वन पंचायतें हैं जिनकी प्रबंध समितियों के चुनाव हुए हैं। इन वन पंचायतों के अपने जंगल हैं और इन जंगलों की देखरेख की सारी जिम्मेदारी भी इनकी है। इसके साथ ही वन उपज का उपयोग भी वन पंचायतें कर पाती है। 

उधर प्रदेश में 15 फरवरी से फायर सीजन भी शुरू हो रहा है। वन पंचायतों के अधीन प्रदेश के कुल वन क्षेत्र में से करीब 14 प्रतिशत वन क्षेत्र हैं। अधिकतर वन क्षेत्र इनको सिविल सोयम से मिला है। बड़ा वन क्षेत्र वन पंचायतों के अधीन होने के कारण अब वन विभाग ने वनाग्नि को रोकने में वन पंचायतों का सहयोग लेने का फैसला किया है।
जंगल पर अधिकार के संघर्ष के कारण उपजी वन पंचायतों को लेकर ब्रिटिश राज में 1931 में वन पंचायत कानून बनाया गया था। राज्य गठन के बाद 2001 में वन पंचायत कानून बनाया गया और 2012 में इसमें संशोधन किया गया। प्रदेश में करीब 15 हजार वन पंचायतों के अधीन 5.23 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र है। 

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