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हरदा का दर्द : अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत!

वक्त करेगा इंसाफ

  • हरीश ने सीएम रहते हुए अपने फैसलों को मूर्तरूप न होने का मलाल सोशल मीडिया पर किया साझा
  • बोले, कुछ अहम फैसले तो विरोध के चलते पड़े रोकने और कई पर अफसरशाही ने ही मारी कुंडली

देहरादून। कांग्रेस के दिग्गज नेता, राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत आजकल सोशल मीडिया में खासे सक्रिय रहते हैं। कुछ दिनों पहले उन्होंने बताया था कि आखिर उन पर ‘उत्तराखंड विरोधी’ होने का ठप्पा क्यों चस्पा हो गया। अब हरदा ने अपने ‘दर्द’ की परतें उधेड़ते हुए अपने उन कई अहम फैसलों का जिक्र किया है, जो उन्होंने बतौर सीएम किये,  जनहित के फैसले होने के बावजूद वह उन्हें लागू नहीं करवा सके।
पहाड़ के खांटी नेता हरदा लिखते हैं…आप सरकार में होते हैं तो बहुत सारे निर्णय आप लेते हैं और कुछ निर्णय आप अपने ही कार्यकाल में आगे नहीं बढ़ा पाते हैं। कई चाहे अनचाहे कारणों से उन पर अमल रोकना पड़ता है या आपको उस आइडिया/ सच को छोड़ देना पड़ता है। मेरे कार्यकाल में भी करीब लगभग आधा दर्जन फैसले मुझे छोड़ने पड़े। ये फैसले जनता और राज्य के हित में थे। उन फैसलों का या तो विरोध हो गया या वो फैसले गति नहीं पकड़ पाए।
हरदा लिखते हैं कि पूर्वी यूरोप, पूर्वी एशिया के देशों में बड़े-बड़े राजमार्गा, बड़ी सड़कों में ग्राम सरायें होती हैं। जहां स्थानीय उत्पाद पर्यटकों को अच्छे दामों पर मिल जाते हैं। मैंने वर्ष 2015 में निर्णय लिया कि राज्य के सभी प्रमुख मार्गों पर सराय विकसित किये जाएं। सचिव पर्यटन ने शुरू में बड़ा जोश दिखाया। फिर कतिपय कारणों से योजना आगे नहीं बढ़ पाई।।
पूर्व सीएम ने लिखा… हिमालय हमारा गौरव भी है और इसका सौन्दर्य हमारी संपदा भी है। लेकिन बन सपदा की तरह यह भी राज्य के आर्थिक स्रोत बढ़ाने में प्रत्यक्ष तौर पर काम नहीं आ रही है। हमारी सरकार ने भविष्य में आपदा की स्थिति को ठीक से निपटने व राज्य के अन्दर कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये तीनों आतरिक एयर स्ट्रिप का विकास किया। राज्य में दो हैलीड्रम व 22 हैलीपैड बनाकर हिमालय दर्शन योजना शुरू की। इसमें टिहरी व नैनी झील में सौन्दर्य के दर्शन करना भी सम्मिलित था। किराया भी व्यावहारिक रखवाया। कुछ दिन चलाने के बाद पर्यटकों की रुचि न देखकर योजना स्वतः बंद हो गई।
वह लिखते हैं… बतौर सीएम मेरा लक्ष्य या उत्तराखंड में उत्पादित मौसमी सब्जियों व कम ग्रेड वाले फलों के उपयोग की योजना बने। मैंने एक योजना के तहत मंडी परिषद को शराब के एफएल-टू का काम सौंपा। उनके साथ घाटे में चल रहे कुमाऊ और गढ़वाल मंडल विकास निगमों को जोड़ा मकसद था कि मंडी की आय से गढ़वाल व कुमांऊ में दो प्रोसेसिंग प्लांट लगाए। ताकि चौलाई आदि की प्रोसेसिंग हो सके और चार फ्रूट वाईनरीज लगाए। जिनका राजनीतिक विरोध होने के कारण यह योजना ठप हो गई।
हरदा ने लिखा… स्मार्ट सिटी के बारे में मैंने तय किया था कि एक काउंटर मैनेटिक सिटी न्यू देहरादून खड़ा करेंगे क्योंकि देहरादून शहर में ही इसका काम करने से कंजक्शन बढ़ेगा। हमने एक नई अपार्चुनिटी क्षेत्रों की तलाश की और सब घूम फिरकर हम लोग टी गार्डन एरिया पर पहुंचे। एक्सपर्ट से सर्वे के बाद लगा कि यह आइडिया देहरादून व राज्य के लिये बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। हमने ये प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा। मगर केंद्र से ज्यादा उस मामले में विरोध दो पक्षों से आया। एक राजनीतिक पक्ष से आया और दूसरा कुछ जो ‘बैलमीनिंग’ लोग हैं। यह बात बड़े जोर शोर से उठने लगी कि न्यू स्मार्ट देहरादून सिटी बनाने से टी-गार्डन एरिया खत्म होंगे और उससे देहरादून के जो फेफड़े हैं, जहां से आक्सीजन आ रही है, वो कमजोर होंगे। मेरे और सरकारी अधिकारियों के तर्क, प्रबुद्ध वर्ग को संतुष्ट नहीं कर पाए। इसने मुझे बाध्य कर दिया कि मैं अपने प्रस्ताव को वहीं पर छोड़ दूं। आज मैं देख रहा हूँ कि स्मार्ट सिटी के नाम पर कोई बुनियादी चेंज नहीं आ रहा है। अब मुझे लगता है कि कहीं मैंने प्रस्ताव को वहीं पर छोड़कर गलती तो नहीं कर दी।
हरदा लिखते हैं… चीड़ के वनों का बहुत प्रसार उत्तराखंड की इकोलॉजी और फॉरेस्ट की केमिस्ट्री को गड़बड़ा पहुंचा रहा है। बतौर सीएम मैंने चीड़ को लेकर तीन निर्णय लिए। चीड़ की पत्तियां बटोर करके जो भी महिलाएं लाती है, उनको मनरेगा वर्कर माना जाएगा, अब चीड़ का कोई प्लांटेशन नहीं लगाया जाए और न ही पौध तैयार की जाए। प्रत्येक रेंज में कुछ हिस्से को एक वेदर वर्किंग प्लान के तहत चीड़ मुक्त किया जाए। जब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास गया तो 1000 फीट से ऊपर कोई हरा वृक्ष न काटने का नियम आड़े आ गया। इसे बदलवाने की कोशिश की गई तो मेरी और मेरी सरकार आलोचना लंदन और अमेरिका के समाचार पत्रों तक में हुई। इस पर उन्होंने अफसरों से कहा कि आप इस इरादे को सुला दें। ऐसे ही उन्होंने अपने दिल में कसक रहे कई दर्द बयां किये हैं।

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