- मजबूत भाजपा के अनुभवी त्रिवेंद्र के सामने बौने पड़े कांग्रेस के विरेंद्र
- भाजपा के हाथ आया परिवारवाद का मुद्दा, घिरेगी कांग्रेस
देहरादून: एक तरफ, भाजपा का मजबूत संगठन, दूसरी तरफ, कांग्रेस की लचर स्थिति। एक तरफ, भाजपा का त्रिवेंद्र सिंह रावत जैसा अनुभवी चेहरा, दूसरी तरफ, कांग्रेस का विरेंद्र रावत जैसा अनजान और अनुभवहीन चेहरा। एक तरफ, मोदी लहर, तो दूसरी तरफ, बिखरा-बिखरा पस्त विपक्ष। उत्तराखंड की प्रतिष्ठित हरिद्वार लोकसभा सीट पर अपने बेटे विरेंद्र रावत को टिकट दिलाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का दबाव कांग्रेस पर बहुत भारी पड़ना तय है। भाजपा के हाथ में परिवारवाद का मुद्दा भी आ गया है, जिसे वह आने वाले दिनों में कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल जरूर करेगी।
लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस का हरिद्वार सीट पर चेहरा घोषित तो हो गया है, लेकिन यह कांग्रेसियों में उत्साह जगाने वाला नहीं है। एक तो विरेंद्र रावत न तो कांग्रेस संगठन के भीतर और न ही हरिद्वार क्षेत्र में कभी सक्रिय रहे हैं, दूसरा, कांग्रेस के इस कदम ने भाजपा को पार्टी के परिवारवाद पर और आक्रामक होने का मौका दे दिया है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव की बात छोड़ दें, जबकि हरीश रावत खुद ही इस सीट से चुनाव लड़कर सांसद बने थे, बाकी दो मौकों पर उन्होंने अपने परिजनों को ही टिकट के मामले में आगे बढ़ाया है। वर्ष 2014 मेें हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत कोे इस सीट से कांग्रेस ने टिकट दिया था। हालांकि वह भाजपा प्रत्याशी डा रमेश पोखरियाल निशंक से हार गई थीं। इसके बाद, वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत ने हरिद्वार ग्रामीण सीट से अपनी बेटी अनुपमा रावत को टिकट दिलाया था, जो विजयी रही थीं। अबकी बार हरीश रावत के साथ ही डा हरक सिंह रावत, करण माहरा इस सीट पर पार्टी टिकट के लिए संभावित दावेदार थे, लेकिन हरीश रावत अपने बेटे विरेंद्र रावत को टिकट दिलाने में कामयाब हो गए।
एक तो राजनीति, उस पर चुनावी राजनीति के लिहाज से देखें, तो विरेंद्र रावत का कोई अनुभव नहीं है। पहली बार उन्हें किसी चुनाव में पार्टी ने टिकट दिया है। पार्टी चाहती थी कि हरीश रावत या फिर किसी कद्दावर नेता को मैदान में उतारकर चुनाव को कांटे का बनाया जाए, मगर हरीश रावत के दबाव के चलते ऐसा नहीं हो पाया। विरेंद्र रावत का मुकाबला भाजपा के उन अनुभवी त्रिवेंद्र सिंह रावत से है, जो कि पूर्व मुख्यमंत्री, राज्य सरकार में दो बार के मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा, भाजपा के गढ़वाल मंडल के संगठन मंत्री जैसे दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। दो बार के सांसद रह चुके पूर्व मुख्यमंत्री डा रमेश पोखरियाल निशंक की जगह त्रिवेंद्र सिंह रावत को टिकट देकर भाजपा एंटी इनकमबेंसी की आशंका से पहले ही खुद को अलग कर चुकी है।