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पहाड़ी क्षेत्रों में कब मिलेगी गर्भवतियों को सुविधाएं

  • प्रसूता को डोली में 10 किमी पैदल चलकर पहुंचा अस्पताल पहाड़ों में सड़क और अस्पतालों को सुविधाओं को अभाव
  • साइंटिस्ट के अनुसार प्रसव के दौरान होता है 57 डेल दर्द

देहरादून। देश और दुनिया के लिए पहाड़ पिकनिक और मनोरंजन है। लेकिन, यहां के लोगों का जीवन पहाड़ से भी कठिन है। खासकर प्रसूता महिलाओं का जीवन खतरे से खाली नहीं है। यहां सड़क और अस्पताल जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव बदस्तूर जारी है। पहाड़ों पर सड़कों की हालत इतनी दयनीय है कि गर्भवती स्त्रियों को बेहद कष्ट और पीड़ा सहन करनी पड़ती है। प्रसव पीड़ा के दौरान डोली पर उन लोगों को दूर अस्पताल तक ले जाना पड़ता है। पिथौरागढ़ जिले के सीमांत गांव नामिक में गत दिनों सड़क न होने के कारण पैदल डोली के सहारे 10 किलोमीटर पैदल चलकर बागेश्वर जिले पहुंचाया। इसके बाद 35 किलोमीटर दूर वाहन से कपकोट अस्पताल ले जाया गया जहां पर महिला का प्रसव करवाया गया। जानकारी के अनसुार हाल ही में गांव के निवासी गोपाल सिंह की 27 वर्षीय गर्भवती पत्नी गीता को मंगलवार को तेज प्रसव पीड़ा हुई इसके बाद ग्रामीणों ने महिला को डोली से अस्पताल पहुंचा।
डॉक्टर्स और साइंटिस्ट के अनुसार एक बच्चे को जन्म देते समय महिला को बीस हड्डियों के एक साथ टूटने जितना दर्द होता है। महिलाओं को 57 डेल (दर्द नापने की इकाई) होने वाले इस दर्द की तुलना में पुरुषों की सिर्फ 45 डेल तक दर्द सहने की क्षमता है। इससे ज्यादा दर्द होने पर पुरुष की मौत संभव है।

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