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पर्यावरणविद् डॉ. अनिल प्रकाश जोशी को मिला ‘उत्तराखंड गौरव सम्मान’

देहरादून। राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द द्वारा पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात हिमालयी पर्यावरणविद् डॉ. अनिल प्रकाश जोशी को लखनऊ में ‘उत्तराखंड गौरव सम्मान’ से सम्मानित किया गया। खंड महापरिषद की ओर से लखनऊ में आयोजित 10 दिवसीय उत्तराखंड महोत्सव में बुधवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पर्यावरणविद डॉ.अनिल प्रकाश जोशी को पर्यावरण और समाज हित में किए गए महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उत्तराखंड गौरव सम्मान देकर सम्मानित किया। उत्तराखंड महापरिषद की ओर से प्रतिवर्ष कार्यक्रम का आयोजन कर साहित्य, संस्कृति, कला, पर्यावरण, विज्ञान आदि क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों को सम्मानित किया जाता है।

कौन हैं डॉ. अनिल प्रकाश जोशी

डॉ. अनिल प्रकाश जोशी पर्यावरण की बेहतरी को किए गए अपने कार्यों और प्रयासों के लिए देश-विदेश में जाने जाते हैं। डॉ. अनिल जोशी पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। डॉक्टर जोशी ने हिमालयन पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संस्थान (हेस्को) की स्थापना की है। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2006 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें पद्मश्री सम्मान प्रदान किया था। उन्हें जमनालाल बजाज अवॉर्ड भी मिला है। इसके अलावा उन्हें अशोका फेलोशिप, द वीक मैन ऑफ द एयर और आईएससी जवाहर लाल नेहरू अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।

पर्यावरणविद् डॉ. अनिल प्रकाश जोशी मुख्य रूप से पारिस्थितिकी तंत्र के विकास और संरक्षण के लिए पारिस्थितिकी समावेशी अर्थव्यवस्था के विचार को लेकर आए। करीब 71 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से पार पाने के लिए डॉ. जोशी वर्ष 2010 से विभिन्न मंचों से राज्य में सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) के आकलन की पैरवी करते रहे हैं। जीईपी के महत्व को समझते हुए इसी वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर सरकार ने निर्णय लिया कि राज्य में अब जीडीपी की तर्ज पर जीईपी का आकलन किया जाएगा। इससे पता चल पाएगा कि राज्य से मिल रही पर्यावरणीय सेवाओं का मूल्य क्या हैं। इनमें किस तरह की बढ़ोतरी या कमी दर्ज की जा रही है। इसके अलावा हिमालय दिवस पर वृहद स्तर पर आयोजन कर डॉ. जोशी लगातार हिमालय संरक्षण की बात को उठाते रहे हैं। उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि हिमालयी राज्यों की सरकारें, विभिन्न महत्वपूर्ण संस्थाएं व विश्वविद्यालय इस ओर गंभीरता से काम कर रहे हैं

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