मोरबी (गुजरात)। रविवार रात क्षमता से पांच गुना लोगों की भीड़ होने से यहां पैदल यात्रियों के लिए बना सस्पेंशन ब्रिज टूट गया और उस पर मौजूद करीब 500 लोग करीब 100 फुट नीचे नदी में जा गिरे। इनमें से 190 की अब तक मौत हो चुकी है। मृतकों में महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। इस हादसे से नगर पालिका प्रशासन और इसका रखरखाव कर रही कंपनी के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी पुल टूटने पर दुख जताया है और केजरीवाल ने गुजरात में अपना रोड शो रद्द कर दिया है। कांग्रेस ने इस हादसे के लिये भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है।
हालांकि पुल टूटने के समय ब्रिज की केबल-जाली थामे रहे 200 लोगों को बचा लिया गया। गौरतलब है कि मोरबी की पहचान कहा जाने वाला यह ब्रिज 143 साल पुराना था। इसकी चौड़ाई 1.25 मीटर (4.6 फीट) है। यानी करीब इतनी ही कि दो लोग आमने-सामने से गुजर सकें। इसकी लंबाई 233 मीटर (765 फीट) थी। इतनी कि अगर 500 लोग एक साथ पुल पर खड़े हों तो हर कोई लगभग एक दूसरे से टच करता हुआ ही दिखाई देगा। पैदल यात्रियों के लिए बना यह पुल मोरबी के लखधीर जी इंजीनियरिंग कॉलेज को दरबारगढ़ महल से जोड़ता था। हादसे के बाद कई सवाल उठे, जो दिखाते हैं कि जिम्मेदारों की अनदेखी से एक साथ सैकड़ों लोगों की जान ले ली।
मोरबी का केबल सस्पेंशन ब्रिज 20 फरवरी 1879 को शुरू किया गया था। 143 साल पुराना होने से इसकी कई बार मरम्मत हो चुकी है। हाल ही में 2 करोड़ रुपए की लागत से 6 महीने तक ब्रिज का रेनोवेशन हुआ था। गुजराती नववर्ष यानी 26 अक्टूबर को ही यह पुल दोबारा खोल दिया गया था। गुजरात विधानसभा चुनाव की घोषणा एक-दो दिन में ही होने वाली है। कांग्रेस का आरोप है कि चुनावी फायदा लेने के लिए इसे बिना टेस्टिंग अफरातफरी में शुरू कर दिया गया। नया पुल हो या किसी पुल का रिनोवेशन किया गया हो, इसको शुरू करने से पहले जरूरी होता है कि उसकी मजबूती को विशेषज्ञ जांचते हैं। ये परखते हैं कि इस पर कितना भार दिया जा सकता है।
मोरबी के नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह झाला ने कहा कि ओरेवा ने प्रशासन को सूचना दिए बिना ही लोगों को पुल पर जाने की इजाजत दे दी। कंपनी ने न तो पुल खोलने से पहले नगरपालिका के इंजीनियरों से उनका वेरिफिकेशन कराया और न ही फिटनेस स्पेसिफिकेशन सर्टिफिकेट लिया। अब बड़ा सवाल ये कि 26 अक्टूबर को ओरेवा कंपनी के एमडी जयसुख पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुल को चालू करने की घोषणा की थी, तब नगर पालिका ने इसे क्यों नहीं रोका?
झाला ने माना कि मरम्मत के दौरान कंपनी के कामकाज की निगरानी के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं थी। यानी पूरी तरह से कंपनी के ऊपर छोड़ दिया गया कि वह पुल को कैसे और किससे बनवाती है और कब चालू करती है? ओरेवा कंपनी से अगले 15 साल यानी 2037 तक के लिए पुल की मरम्मत, रखरखाव और ऑपरेशन का समझौता किया गया था। पुल पर कंपनी के नाम का बोर्ड तो मौजूद था, लेकिन क्षमता को लेकर दोनों छोरों पर कोई सूचना या चेतावनी नहीं लिखी गई थी।
जानकारी मिली है कि पुल पर जाने के लिए बड़ों से 17 और बच्चों से 12 रुपए का टिकट वसूला जा रहा था। ओरेवा कंपनी ही टिकट के पैसे वसूल रही थी, लेकिन ज्यादा टिकट बेचने के चक्कर में लोगों की संख्या को चेक नहीं किया। यह ब्रिज पिकनिक स्पॉट के तौर पर मशहूर था। दिवाली बाद के वीकेंड में लोग घूमने निकले हुए थे। ब्रिज 6 महीने बाद खुलने की वजह से भी इसको लेकर लोगों में आकर्षण था। इस वजह से इतने ज्यादा लोग एक साथ पर घूमने पहुंच गए। लोगों को रोका नहीं गया तो टिकट खरीदकर करीब 400 लोग एक साथ ब्रिज पर जा पहुंचे।
फोटो और वीडियो देखकर सस्पेंशन ब्रिज बीच में से ही टूटा दिखाई दे रहा है, लेकिन ब्रिज के टूटने की शुरुआत कहां से हुई इसकी पुख्ता जानकारी अभी मिलनी बाकी है। गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने आज सोमवार सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ब्रिज कहां से टूटा और इसकी वजह क्या थी, यह जानकारी एफएसएल रिपोर्ट से ही मिल सकेगी। मोरबी का यह ऐतिहासिक पुल शहर की नगर पालिका के अधिकार में था। नगर पालिका ने इसकी मरम्मत की जिम्मेदारी अजंता ओरेवा ग्रुप ऑफ कंपनीज को सौंपी थी। यह इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों, कैलकुलेटर, घरेलू उपकरणों और एलईडी बल्ब बनाने वाली कंपनी है। ओरेवा ने ही देश में सबसे पहले एक साल की वारंटी के साथ एलईडी बल्ब बेचने की शुरुआत की थी।