नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। इस मामले में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सभी निजी संपत्ति समुदाय के भौतिक संसाधन नहीं, कुछ निजी संपत्ति समुदाय के भौतिक संसाधन हो सकती हैं। ये 9 जजों के संविधान पीठ का फैसला है, जिसने 1978 से लेकर अभी तक के सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले पलट दिये हैं।
पीठ ने कहा कि सभी निजी संपत्तियों को राज्य द्वारा अपने अधीन नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 8 -1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि सभी निजी संपत्तियों को सार्वजनिक फिजिकल रिसोर्स के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, जिन्हें राज्य संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के तहत समान रूप से पुनर्वितरित करने के लिए बाध्य है।
अनुच्छेद 31सी को चुनौती
बता दें कि मामले से जुड़ी याचिका में अनुच्छेद 31सी को चुनौती दी गई थी, जो अनुच्छेद 39(बी) और (सी) के तहत बनाए गए कानून की रक्षा करता है। यह राज्य को सार्वजनिक हित के लिए वितरण के लिए निजी संपत्तियों सहित समुदाय के फिजिकल रिसोर्स को अपने नियंत्रण में लेने का अधिकार देता है।
42वें संशोधन के दो प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किया
इतना ही नहीं अदालत ने 1980 के मिनर्वा मिल्स मामले में 42वें संशोधन के दो प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किया था, जो किसी भी संवैधानिक संशोधन को किसी भी आधार पर किसी भी अदालत में प्रश्नगत किए जाने से रोकता था और व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों पर राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को वरीयता देता था।
1 मई को फैसला रक्षा था सुरक्षित
पीठ ने इस साल 1 मई को सुनवाई के बाद निजी संपत्ति मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिय था। उस समय कोर्ट1 ने टिप्पणी की थी कि अगर सभी निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत समुदाय के फिजिकल रिसोर्स माना जा सकता है और परिणामस्वरूप, राज्य जनरल वेलफेयर के लिए उन्हें अपने अधीन ले सकता है, तो भविष्य की पीठ के लिए कुछ भी नहीं बचेगा।