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उपनल कर्मचारियों से जुड़े मामले में राज्य सरकार को SC से झटका, एसएलपी खारिज

देहरादून। प्रदेश के उपनल कर्मचारियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में प्रदेश सरकार को झटका लगा है। उत्तराखंड के 25000 कर्मचारियों से जुड़ा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की एसएलपी खारिज कर दी है। उपनल कर्मचारियों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 की सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जो हाईकोर्ट के नियमितीकरण को लेकर दिए गए आदेश के खिलाफ लगाई गई थी। उधर सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का परीक्षण कराए जाने की तैयारी कर रही है।

उत्तराखंड में साल 2018 के दौरान एजेंसी के माध्यम से राज्य सरकार के एक विभाग में काम करने वाले कुंदन सिंह की चिट्ठी का नैनीताल हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया था और इसे याचिका में तब्दील करते हुए कुंदन सिंह बनाम राज्य सरकार के रूप में पूरे प्रकरण को सुनने के बाद उपनल कर्मचारियों के हक में फैसला सुनाया था।

नैनीताल हाईकोर्ट ने उस समय एक साल के भीतर उपनल कर्मचारी को नियमित करने की पॉलिसी तैयार करने और 6 महीने के भीतर सामान काम के बदले सामान वेतन व्यवस्था को लागू करने के निर्देश दिए थे। साल 2018 में दिए गए इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला साल 2019 में आया और इसके बाद कुंदन सिंह समेत तमाम उपनल कर्मचारी संगठन भी इसमें सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को जोड़ते हुए इस पूरे मामले को सुना और इस पर आज 15 अक्टूबर को अपना फैसला सुनाया।

उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कवि ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है और अब सरकार को इस पर निर्णय लेना है। उन्होंने कहा कि सरकार के पास अब उत्तराखंड के कई सालों से सरकारी विभागों में काम कर रहे इन कर्मचारियों को न्याय देने का बड़ा मौका है। प्रदेश में हजारों उपनल कर्मचारी हैं, जिन्हें अब इस आदेश के बाद सरकार नियमितीकरण को लेकर लाभ दे सकती है।

धामी सरकार ने हाल ही में रेगुलाइजेशन पॉलिसी 2024 लाने के संकेत दिए हैं, हालांकि अप्रैल में कर्मचारी इस बात को लेकर सरकार से खफा थे कि इस पॉलिसी में केवल संविदा कर्मचारियों को ही शामिल किया जा रहा है और उपनल कर्मचारियों की अनदेखी की जा रही है।

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