Tuesday , March 26 2024
Breaking News
Home / उत्तराखण्ड / दागी अफसरों की ‘अनिवार्य सेवानिवृत्ति’ पर धामी सरकार ‘मौन’!

दागी अफसरों की ‘अनिवार्य सेवानिवृत्ति’ पर धामी सरकार ‘मौन’!

देहरादून। भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड का दावा करने वाली धामी सरकार खुद दागी अफसरों पर कार्रवाई के बारे में ‘मौन’ है। वन विभाग से जुड़े तीन आईएफएस अफसरों के कारनामे सवालों के घेरे में हैं। इनमें से दो पर कॉर्बेट नेशनल पार्क में अनियमितताओं और अवैध रूप से पेड़ काटने के आरोपों की पुष्टि हो चुकी है और एक आईएफएस अधिकारी पर बिना केंद्र की अनुमति के उत्तराखंड के हाथियों को गुजरात भेजने का मामला है।
कॉर्बेट नेशनल पार्क में अनियमितता से जुड़े मामले को लेकर वन महकमे की तरफ से मुख्यमंत्री कार्यालय को इनमें से दागी दो आईएफएस अधिकारियों को लेकर ‘अनिवार्य सेवानिवृत्ति’ की फाइल भेजी गई थी। हालांकि इस मामले में दोनों ही आईएफएस अधिकारियों को निलंबित कर मामले में लीपापोती कर दी गई, लेकिन अनिवार्य सेवानिवृत्ति के मामले पर सीएम कार्यालय में उनकी फाइल दबा दी गई और अनिवार्य सेवानिवृत्ति को ेकर कोई कदम नहीं उठाया जा सका।
दूसरा मामला उत्तराखंड के हाथियों को गुजरात भेजने का है। जिसमें तत्कालीन चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन पर केंद्र की अनुमति के बिना नियम विरुद्ध काम करने का आरोप लगा है। सूत्र बताते हैं कि वन विभाग ने मुख्यमंत्री कार्यालय को इस अधिकारी पर कार्रवाई को लेकर फाइल भेज दी है, लेकिन इस पर भी अब तक कोई भी अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका है। कांग्रेस ने भी धामी सरकार के गड़बड़ी के मामले में कार्रवाई के दावे पर सवाल खड़े किए हैं। विभागीय मंत्री सुबोध उनियाल की स्वीकृति के बाद भी मुख्यमंत्री कार्यालय इन मामलों में कोई रुचि नहीं दिखा रहा है।
उधर हाथियों के गुजरात भेजने के मामले को लेकर जहां पहले ही अधिकारी पर कार्रवाई के सवाल पर वन विभाग चुप्पी साधे हुए हैं। विभागीय मंत्री से जब बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने भी साफ तौर पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि इस मामले में जल्द ही कार्रवाई की जाएगी, जिसके लिए सीएम कार्यालय को फाइल भेजी जा चुकी है।
इस मामले में लीपापोती करते हुए कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग में अवैध निर्माण और पाखरो में पेड़ों के अवैध कटान मामले में शासन ने दो आईएफएस अधिकारियों को निलंबित कर दिया है। इनमें तत्कालीन मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक और वर्तमान में सीईओ कैंपा की जिम्मेदारी देख रहे जेएस सुहाग और कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग के तत्कालीन डीएफओ किशन चंद शामिल है।सीटीआर के निदेशक राहुल को भी वन विभाग के मुखिया के कार्यालय से संबद्ध कर दिया गया है।
दिलचस्प बात यह है कि कार्बेट नेशनल पार्क में नियमों को ताक पर रखकर किए गए अवैध निर्माण और अतिक्रमण के लिए वन विभाग के शीर्ष अधिकारी एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वन विभाग के मुखिया पद से हटाए गए आईएफएस व वर्तमान जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष राजीव भरतरी ने तो हाई कोर्ट में सरकार की ओर से दाखिल शपथपत्र के जवाब में प्रति शपथपत्र दे दिया था। हाई कोर्ट में भरतरी की याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से जवाब दाखिल कर बताया गया था कि कार्बेट नेशनल पार्क में अवैध निर्माण व अतिक्रमण पर कार्रवाई को लेकर निदेशक राहुल की ओर से भरतरी को चार पत्र भेजे गए, लेकिन उन्होंने पत्रों का कोई संज्ञान नहीं लिया और कार्रवाई नहीं की। जबकि भरतरी की ओर से इसका प्रति उत्तर दाखिल कर बताया गया कि उन्होंने कार्रवाई के लिए निदेशक को 20 पत्र भेजे थे, लेकिन निदेशक ने कार्रवाई नहीं की।
देहरादून की अनु पंत की जनहित याचिका में कहा गया था कि जिस अधिकारी किशन चंद को उत्तर प्रदेश शासन ने 1999 में विजिलेंस की रिपोर्ट में दोषी पाया था। जिस पर जंगली जानवरों की खाल की खरीद-फरोख्त जैसे गंभीर अपराधों की पुष्टि हुई। यह स्पष्ट निर्णय लिया गया था कि ऐसे अधिकारी को किसी भी संवेदनशील जगह पर तैनाती नहीं दी जाएगी। मगर इस अधिकारी को कालागढ़ (कार्बेट टाइगर रिजर्व) जैसे अति संवेदनशील स्थान पर तैनाती दे दी गई। जब पार्क में अवैध निर्माण की गतिविधियां शुरू हुई और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की ओर से जांच रिपोर्ट दायर की गई तो उसमें भी किशन चंद को इस पूरे अवैध निर्माण के लिए दोषी पाया गया। इसके बाद हाई कोर्ट के निर्देश पर उच्च स्तरीय समिति गठित हुई। जांच में किशन चंद को सभी गड़बड़ी के पीछे दोषी पाया गया।
दिलचस्प बात यह है कि तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग ने किशन पर कोई कार्रवाई नहीं की। कार्बेट नेशनल पार्क के कालागढ़ टाइगर रिजर्व में विविध निर्माण मामले में डीएफओ किशन चंद के विरुद्ध बीते वर्ष दो नवंबर को तत्कालीन पीसीसीएफ राजीव भरतरी ने नोटिस जारी किया था। जबकि अक्टूबर में ही सीटीआर के पाखरो रेंज में निर्माण के मामले में चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को नोटिस जारी किया था। इस मामले में एक रेंजर को निलंबित भी किया गया था। कुल मिलाकर इस मामले में कार्रवाई तय थी।
उधर निदेशक राहुल ने भी तत्कालीन पीसीसीएफ भरतरी पर कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया। इस मामले में कानूनी पेंच यह है कि कार्बेट नेशनल पार्क के निदेशक को जांच करने व कार्रवाई के आदेश देने का अधिकार चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को है, न कि पीसीसीएफ को। अब शासन द्वारा पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ रहे जेएस सुहाग व सीटीआर के कालागढ़ में तैनात तत्कालीन डीएफओ किशन चंद के निलंबन, कार्बेट नेशनल पार्क के निदेशक राहुल को संबद्ध किए जाने से वन महकमे में खलबली है। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के 29 अप्रैल को तय बैठक से पहले हुई इस कार्रवाई को विभाग के जवाब के रूप में भी देखा जा रहा है। अब देखना यह है कि धामी सरकार उनकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति की फाइल पर कब कार्रवाई करती है।

About team HNI

Check Also

सेना में अग्निवीर भर्ती के लिए आवेदन शुरू, पद नाम और चयन प्रक्रिया बदली, जानिए

Agniveer Bharti 2024 : भारतीय सेना में अग्निवीर भर्ती 2014 के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया …

Leave a Reply