देहरादून। उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम-2016 संशोधन विधेयक के पास होने के बाद त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद बस्ता (पंचायत रिकार्ड) न सौंपने पर पंचायत प्रतिनिधियों को सजा नहीं होगी जबकि जुर्माने के प्रावधान को बरकरार रखा गया है।
ऐसे में पंचायत रिकार्ड न सौंपने पर उनके कार्यकाल में हुए कार्यों का सटीक आकलन कैसे हो पाएगा, यह सवाल खड़ा हो गया है। जब रिकार्ड ही नहीं होगा तो किस विकास कार्य में कितना बजट खपाया गया, उसके वास्तविक आंकड़े कभी सामने ही नहीं आ पाएंगे। भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था का दावा करने वाली धामी सरकार ने पंचायत रिकार्ड न सौंपने पर पंचायत प्रतिनिधियों को जेल जाने से छूट देकर उनके मनोबल को बढ़ाया है जो बस्ता न सौंपकर अपने काले कारनामों को उजागर नहीं करने देना चाहते हैं। सवाल यह भी है कि किस दबाव के चलते यह उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम-2016 संशोधन विधेयक लाया गया है और इसके लाने के पीछे औचित्य क्या है?
उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम-2016 संशोधन विधेयक सदन के पटल पर रखा गया। इसके तहत विभिन्न धाराओं में ‘लघु उल्लंघनों’ पर कारावास की सजा दिए जाने संबंधी व्यवस्था में संशोधन किया गया है। इसके तहत अर्थदंड का प्रावधान यथावत रखा गया है, जबकि जेल भेजे जाने का प्रावधान हटा दिया गया है। यह क्यों हटाया गया है, इसके पीछे के कारणों के बारे में सभी चुप्पी साधे हुए हैं। इस
विधेयक के पास होने के बाद त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद बस्ता (पंचायत रिकार्ड) नहीं सौंपने पर पंचायत प्रतिनिधियों को सजा नहीं होगी जबकि जुर्माने प्रावधान को बरकरार रखा गया है। जुर्माने की राशि 10 हजार से 50 हजार तक रहेगी। उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम (संशोधन) विधेयक-2022 विधानसभा में पारित होने के बाद कानून का रूप ले लगेगा।
इसके अलावा उत्तराखंड जिला योजना समिति अधिनियम 2007 की धारा 6 में संशोधन का विधेयक भी सदन के पटल पर रखा गया है। विधेयक के पास हो जाने के बाद क्षेत्र पंचायत प्रमुख अपने जिले की जिला योजना समिति की बैठकों में नियमित रूप से प्रतिभाग कर सकेंगे। अभी तक उत्तराखंड जिला योजना समिति अधिनियम-2007 की धारा-6 की उपधारा (4) में क्षेत्र पंचायत प्रमुखों को अपने जिले की जिला योजना समिति में प्रतिभाग किए जाने की रोस्टर व्यवस्था है।
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