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कांग्रेस नेता मनोज रावत ने भू-कानून की संस्तुतियों पर दागी ‘मिसाइल‘!

  • केदारनाथ से पूर्व विधायक ने उत्तराखंड में भू-कानून में सुधार के लिए बनाई गई उच्च अधिकार प्राप्त समिति की संस्तुतियों पर सवाल उठाते हुए धामी सरकार से मांगा जवाब

देहरादून। कांग्रेस के केदारनाथ से पूर्व विधायक मनोज रावत ने उत्तराखंड में भू-कानून में सुधार के लिए बनाई गई उच्च अधिकार प्राप्त समिति की संस्तुतियों पर सवाल उठाते हुए धामी सरकार से जवाब मांगा है। उन्होंने कहा है कि  भाजपा सरकार ने बड़े-बड़े दावे कर उत्तराखंड में भू-कानून में सुधार के लिए उच्च अधिकार प्राप्त समिति बनाई, लेकिन समितियों की संस्तुतियों को देखकर लगता है कि जैसे यह समिति उत्तराखंड की जमीन बचाने के बजाय जमीन लुटाने के नए तरीके खोजने के लिए बनाई गई हो। इसलिये समिति की जिन संस्तुतियों पर सवालिया निशान लगा जा रहे हैं, उनका स्पष्टीकरण सरकार को देना चाहिये। उन्होंने सरकार से इन संस्तुतियों पर जवाब मांगा है….
1- क्या भाजपा सरकार ‘उच्च अधिकार प्राप्त समिति‘ के गठन के समय से लेकर रिपोर्ट पेश करने तक समिति के नाम पर जनता और मीडिया का ध्यान प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों से भटकाने की कोशिश नहीं कर रही है ?
2- क्या ये सच नहीं है कि भाजपा सरकार ने पिछले 4 सालों से विभिन्न प्रयोजनों के लिए जमीन खरीदने की अनुमति देकर अपने खास लोगों को उत्तराखंड की बहुमूल्य भूमि की नीलामी की है ।
3- क्या उत्तराखंड में जमीन की खुली नीलामी की छूट की संभावना और भूमि का अनियंत्रित क्रय-विक्रय, 6 दिसंबर 2018 के बाद तब शुरू हुआ था जब पिछली भाजपा सरकार ने उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 143 (क) और 154 (2) में संशोधन कर उत्तराखंड में औद्योगिकीकरण ( उद्योग, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य ), कृषि और उद्यानिकी के नाम पर किसी को भी, कहीं भी, कितनी ही मात्रा में जमीन खरीदने की छूट दे दी थी?
4- क्या इन नियमों में बदलाव करने के बाद पिछले 4 सालों में भाजपा सरकार ने अपने चहेते उद्योगपतियों , धार्मिक और सामाजिक संगठनों को अरबों की जमीन खरीदने की अनुमति दी है?
5- क्या उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने राज्य के सभी जिलाधिकारियों से जिलेवार विभिन्न उद्योगपतियों , सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को भूमि खरीदने की स्वीकृतियों का ब्योरा भी मांगा था?
6- यदि हां, तो राज्य की जनता को भी यह जानने का हक है कि 6 दिसंबर 2018 को उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की दो धाराओं में परिवर्तन के बाद उनकी सरकार या अधिकारियों ने किस- किसको कितनी जमीन खरीदने की अनुमति प्रदान की है?
7- क्या पारदर्शिता का दावा करने वाली सरकार इस बीच अपने चहेतों को दी गयी राज्य की बहुमूल्य भूमि का विवरण देगी?
8- सरकार जनता को ये भी बताए कि पिछले 4 सालों में इन लोगों को भारी मात्रा में उत्तराखंड की बहुमूल्य जमीन उपहार में देने के बाद राज्य में कितना निवेश आया और कितने लोगों को इन निवेशों द्वारा रोजगार मिला?
9- हिमाचल में हिमाचल टेनेंसी एक्ट की धारा-118 लागू है। वहां कोई भी बाहरी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता है। निवेश करने वाला व्यक्ति भले ही पार्टनर बन जाये परंतु भूमि हिमाचल के मूल निवासी के ही नाम रहती है। सरकार को बताना चाहिए क्या समिति ने उत्तराखंड में भी ऐसा कोई प्रावधान करने की संस्तुति की है?
10- क्या समिति ने भूमि खरीदने की अनुमति देने के माध्यम को बदल कर जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश मात्र नहीं की है? वर्तमान में उत्तराखंड में प्रचलित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) में जन भावनाओं के अनुरूप हिमाचल प्रदेश की तरह परिवर्तन करने की बात करती है जबकि रिपोर्ट के विभिन्न बिंदुओं से साफ पता चलता है कि बड़े और प्रभावशाली लोगों को जो भूमि खरीदने की अनुमति पहले जिला अधिकारी देते थे अब वह अनुमति शासन देगा।
11- समिति की रिपोर्ट में स्वीकारा गया है कि अभी तक जिलाधिकारी द्वारा कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है। कतिपय प्रकरणों में ऐसी अनुमति का उपयोग कृषि/औद्यानिक प्रयोजन न करके रिसोर्ट/निजी बंगले बनाकर दुरुपयोग हो रहा है। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग भूमिहीन हो रहें और रोजगार सृजन भी नहीं हो रहा है।
12- यदि सरकार द्वारा गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति जो स्वयं स्वीकार कर रही है कि जमीन खरीदने की अनुमतियों का दुरुपयोग हुआ है तो क्या सरकार को अनुमतियों के दुरुपयोग करने पर उन जमीनों को कानूनन राज्य सरकार में निहित नहीं करना चाहिए था?
13- जब जिलाधिकारी द्वारा दी गयी अनुमति के दुरुपयोग की बात सरकार स्वीकार रही है तो अब क्या गारंटी होगी कि ऐसी अनुमति जिलाधिकारी स्तर के बजाय शासन से अनुमति देने का प्रावधान करने के बाद उन अनुमति का दुरुपयोग नहीं होगा?
14- समिति के एक सदस्य जो श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष भी हैं, विधानसभा चुनाव से पहले और बाद  भी राज्य के धार्मिक स्थानों और जिलों में एक धर्म विशेष के लोगों द्वारा धार्मिक और व्यक्तिगत प्रयोग के लिए भारी मात्रा में जमीन खरीदने का दावा करते रहे हैं। अभी तक इस तरह की जमीन जिला अधिकारी की अनुमति के बाद ही खरीदी जाती हैं। समिति ने अब  बिभिन्न जिलों और मुख्यतः चार धाम और धार्मिक महत्व के जिलों में  धार्मिक प्रयोजन के लिए विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों द्वारा अनुमति के बाद ली गयी भूमि का ब्यौरा भी समिति ने मंगवाया है। क्या अब सरकार को यह भी सार्वजनिक करना चाहिए कि उसके अधिकारियों ने किस-किस धर्म और संप्रदाय को किन जगहों पर धार्मिक प्रयोगों हेतु जमीन खरीदने की अनुमति दी है ?
15- प्रदेश में 60-65 सालों से भू- बंदोबस्त नहीं हुआ है समिति ने इसकी संस्तुति की है। राज्य सरकार कब तक इस संस्तुति को मानते हुए शीघ्र भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया शुरू करेगी ?
16- समिति का सुझाव है कि पर्वतीय क्षेत्र में न्यूनतम 5 नाली एवं मैदानी क्षेत्र में 0.5 एकड़ न्यूनतम भूमि मानक भूमिहीन’ की परिभाषा हेतु औचित्यपूर्ण होगा। क्या ये  मानक पर्वतीय क्षेत्र में कम से कम 15 नाली एवं मैदानी क्षेत्र में 1.5 एकड़ न्यूनतम के नही होने चाहिए थे ?
17- आज तक सरकार राज्य में लगे उद्योगों में बड़े पदों पर दूर  समूह ग व समूह ‘घ’ के पदों पर भी स्थानीय निवासियों को 70 प्रतिशत रोजगार सुनिश्चित नही कर पायी है तो समिति की शिफारिश के अनुसार फिर विभिन्न प्रयोजनों हेतु जो भूमि खरीदी जायेगी उसमें समूह ग व समूह ‘घ’ श्रेणीयो में स्थानीय लोगो को 70ः रोजगार आरक्षण सुनिश्चित करने का दावा कैसे कर रही है ?  
18- क्या वर्तमान में भूमि क्रय करने के पश्चात भूमि का सदुपयोग करने के लिए दो वर्ष की अवधि बड़ा कर 3 साल करने की अनुशंसा अपने चहेते उद्योगपति और अन्य मित्रों को मदद करने के लिए की है ?
19-  समिति की रिपोर्ट में नया कुछ भी नहीं है । क्या सरकार की नियत उत्तराखंड की जमीन बचाने की नहीं है? क्या बाहरी और बड़े लोगों द्वारा जमीन खरीदने की अनुमति देने के स्तर को केवल जिले से बदल कर शासन कर सरकार बड़े बदलाव का दावा कर रही है?

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