सियासत की शतरंज
- पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का एक नया सियासी अंदाज सामने आने से मची हलचल
- पूर्व सीएम ने इतने दिनों तक इंतजार करने के बाद खुद को हटाने का हाईकमान से चाहा जवाब
- बोले, कोई हटाया जाए तो सवाल खड़ा होना लाजिमी, लीडरशिप को देना चाहिए इस सवाल का उत्तर
- बोले, मैंने उत्तराखंड को दी भ्रष्टाचार मुक्त सरकार और कोरी बयानबाजी से किया परहेज
देहरादून। आमतौर पर शांत दिखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का एक नया सियासी अंदाज सामने आने से सियासी हलकों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। खासतौर पर भाजपा में इसके कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। अपने शांत स्वभाव के विपरीत पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आलाकमान को कठघरे में खड़ा करते हुए नये तेवर दिखाये हैं। उनका कहा कि जब कोई सीएम हटाया जाता है तो सवाल खड़े होना लाजिमी है। अब ये पार्टी लीडरशिप की जिम्मेदारी है तो अवाम को इस सवाल का जवाब दे। उनके इस बयान से देहरादून से दिल्ली तक हलचल मची हुई है।
गौरतलब है कि भाजपा हाईकमान ने मार्च माह में त्रिवेंद्र सिंह रावत को अचानक मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिया था। हालात यहां तक बने कि त्रिवेंद्र को चार सालाना जश्न मनाने तक का मौका नहीं दिया गया। उस सियासी उठापटक के बाद कुछ समय तो त्रिवेंद्र शांत रहे और फिर जनसेवा से जुड़े कार्यों जैसे रक्त दान, पौधरोपण जैसे अभियान चलाकर पूरे प्रदेश का दौरा किया और पहले तो अपने कई अहम फैसलों को बदलने पर सवाल खड़े किए। फिर प्रदेशभर में दौरा करके भांपा कि कितना समर्थन उन्हें मिल रहा है।
अब त्रिवेंद्र एक नए अंदाज में सामने आए हैं। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार त्रिवेंद्र का कहना है कि जब कोई मुख्यमंत्री हटाया जाता है तो सवाल तो खड़े होते हैं। ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं को फैसले का सम्मान करना चाहिए, लेकिन जब हटाए जाने पर सवाल खड़े हो रहे हों तो इनका जवाब देने की जिम्मेदारी पार्टी लीडरशिप की है। त्रिवेंद्र ने एक बार फिर दोहराया, ‘मैंने शपथ लेते ही कहा था कि भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देंगे। मैंने इस पर केवल बयानबाजी ही नहीं की, बल्कि दिल से काम लिया। और भ्रष्टाचार विरोधी फैसले किए।’
उल्लेखनीय है कि एक तरफ भाजपा चुनावी की तैयारियों की ओर बढ़ रही है तो दूसरी ओर त्रिवेंद्र का पार्टी लीडरशिप के बारे में इस तरह बातें करना तमाम सवाल खड़े कर रहा है। सियासी गलियारों में इस तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है कि क्या इस बयान के पीछे त्रिवेंद्र के कुछ गहरे सियासी निहितार्थ छिपे हैं और अनुशासित होने का दावा करने वाली भाजपा में कहीं सियासी बवंडर की आहट तो नहीं है!