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हाल ए उत्तराखंड : 22 सालों में 4 हजार करोड़ का कर्ज हुआ लाख करोड़!

कड़वा सच

  • कर्जे का ब्याज चुकाने के लिए भी लोन ले रही है राज्य सरकार  
  • कर्मचारियों को तनख्वाह देने के भी सरकार को पड़ने लगे हैं लाले  
  • खाली तिजोरी पर देनदारी भारी, वित्तीय हालात चिंताजनक

देहरादून। उत्तराखंड की बदहाल वित्तीय स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार कर्जे का ब्याज चुकाने के लिए भी लोन ले रही है। उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद से गत 22 सालों में 4 हजार करोड़ का कर्जा अब एक लाख करोड़ होने जा रहा है। कर्मचारियों को तनख्वाह देने के भी सरकार को लाले पड़ने लगे हैं।
आगामी 7 जून को अपने दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश धामी सरकार पेश करने जा रही है। सबकी नजरें सरकार के बजट पर है। वर्तमान में राज्य में वित्तीय हालत बेहद गड़बड़ाए हुए हैं और सरकार के फैसले राज्य के भविष्य को नई दिशा देने के लिए अहम साबित हो सकते हैं। हालांकि प्रदेश के मौजूदा वित्तीय हालात पर नजर दौड़ाएं तो फिलहाल सरकार के पास इस दिशा में करने के लिए बहुत कुछ नहीं दिखाई दे रहा है।
अब तक की सरकार राज्य में राजस्व बढ़ोतरी को लेकर कुछ खास फैसले नहीं कर पाई और अब उत्तराखंड पूरी तरह केंद्र सरकार की वित्तीय मदद पर टकटकी लगाये हुए है। इसलिये धामी सरकार के लिए यह बजट बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि सरकार के पहले बजट सत्र में युवाओं को रोजगार से लेकर तमाम विकास की योजनाओं पर कुछ बड़े फैसले की दरकार है।
गत वित्तीय वर्ष 2021-22 में 57,400 करोड़ का पेश बजट हुआ था, लेकिन इस बार यह बजट करीब 67 हजार करोड़ का हो सकता है, जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में 18.5 फीसद, स्वास्थ्य के क्षेत्र में 6.5, कृषि के लिए 6.7, ग्रामीण विकास के लिए 6.5 फीसद और पुलिस महकमे के लिए 4.2 फीसद बजट रखा गया है। इसमें निर्माण क्षेत्र में 3.6 प्रतिशत का प्रावधान किया गया है, जिसमें सड़क निर्माण और पुल निर्माण शामिल हैं।
इस तरह मूलभूत सुविधाओं के तहत अनिवार्य खर्च के लिये करीब 28,991 करोड़ रखे गए हैं।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में 44,173 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होता है। जबकि कुल बजट में से करीब दो तिहाई यानी 65 फीसद से ज्यादा तनख्वाह पेंशन और लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने में खर्च हो जाता है। यह रकम करीब 30 हजार करोड़ रुपए होती है। गत वर्ष के बजट में ही करीब 13 सौ करोड़ का घाटा प्राप्त राजस्व के मुकाबले हुआ था।
राज्य को सेल्स टैक्स और वैट से राज्य को करीब 2004 करोड़, स्टेट एक्साइज से 3200 करोड़ और स्टांप ड्यूटी से करीब 1200 करोड़ रुपए राजस्व के रूप में मिलते हैं, जबकि रोड टैक्स से 1050 करोड़ रुपए की आमदनी होती है। जमीनों और बिजली से जुड़े टैक्सों से 517 करोड़ रुपए की आमदनी होती है। अगर केंद्र से मिलने वाले रेवेन्यू को हटा दिया जाए तो राज्य अपने बल पर महज 14,944 करोड़ रुपए का ही राजस्व इकट्ठा कर पाता है।
इन हालात और आंकड़ों को देखकर आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को राजस्व बढ़ाने से जुड़े फैसले लेने चाहिए थे। इसमें खासतौर पर सर्विस सेक्टर में राजस्व बढ़ाए जाने की काफी संभावनाएं हैं। वैसे अभी जो हालात हैं, वे राज्य के लिए बेहद खराब होते हुए दिखाई दे रहे हैं। लगातार सरकार की तरफ से ओवरड्राफ्ट भी किया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि अब तक राजस्व बढ़ाने के लिए ऐसे ठोस प्रयास नहीं हुए, जिससे प्रदेश अपने पांव पर खड़ा हो पाता। अब हालात यह हैं कि सरकारी कर्मचारियों को तनख्वाह देने के भी लाले पड़ने लगे हैं। अधिकतर निगम घाटे की तरफ हैं और कई निगमों में तो महीनों तक तनख्वाह भी कर्मचारियों को नहीं मिल पा रही है। इससे सरकार के दावों और हकीकत में जमीन आसमान का अंतर नजर आ रहा है। अब देखना यह होगा कि सरकार बजट में ऐसी क्या जादूगरी करती है जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार आये।

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