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देहरादून : आपदा की भेंट चढ़े पुल की नहीं ली सुध, 100 मीटर दूरी बनी पांच किमी!

सात साल से झेल रहे ग्रामीण

  • वर्ष 2014 की आपदा में ध्वस्त हुआ था पुल, दो-दो सीएम पहुंचे, लेकिन ग्रामीणों की समस्या जस की तस
  • मालदेवता से आगे सीतापुर स्थित देहरादून और टिहरी को जोड़ने वाला पुल न बनने से 10 गांव प्रभावित

देहरादून। मालदेवता से छह किमी आगे बांदल घाटी में वर्ष 2014 में बादल फटने की घटना के बाद से अभी तक यहां के लोगों का जनजीवन सामान्य नहीं हो पाया है। आपदा के दौरान क्षतिग्रस्त हुए पुल के कारण यहां लोग मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए 100 मीटर की दूरी के लिए अब पांच किमी का पैदल चक्कर लगाने को मजबूर हैं। प्रभावित गांवों में लुहारखा, घिना, धनचूला, ग्वाड, सिल्ला, ताछिला, धांतिला सहित इनसे लगे आसपास के गांव शामिल हैं 
हालांकि आपदा के बाद दो-दो मुख्यमंत्रियों ने इस क्षेत्र का भ्रमण किया, लेकिन जनजीवन को पटरी पर लाने के लिए कोई काम नहीं हुआ। गांव वाले सबसे अधिक अपना सामान मंडी तक पहुंचाने की समस्या से जूझ रहे हैं। टिहरी और देहरादून को जोड़ने वाला पुल ध्वस्त होने से यहां लगभग दस गांव प्रभावित हैं। दरअसल, बांदल घाटी के कुछ गांव देहरादून जबकि कुछ गांव टिहरी क्षेत्र में पड़ते हैं। टिहरी क्षेत्र में पड़ने वाले गांव पुल टूटने के कारण अलग पड़ गए है। इन गांवों का बाजार सरखेत, मालदेवता, देहरादून पड़ता है और यहां तक पहुंचने के लिए इन ग्रामीणों को पांच किमी का फेर लगाना पड़ रहा है। जबकि पुल से होकर यह दूरी मात्र 100 मीटर ही है। 
दिलचस्प बात यह है कि इस गांव की स्थिति देखने के लिए दो-दो मुख्यमंत्री अपने-अपने कार्यकाल में पहुंचे और बड़े बड़े दावे किये, लेकिन ग्रामीणों की परेशानियों का समाधान किसी ने नहीं किया। विधायक ने भी क्षेत्र की समस्या के समाधान में दिलचस्पी नहीं ली। इसके कारण आज भी यह गांव इसी स्थिति में जीवन यापन करने को मजबूर हैं। पुल बनाने के लिए कई बार प्रस्ताव भेजे गए। प्रधान ने भी अपनी तरफ से कई बार पहल की, लेकिन कोई सकारात्मक कदम किसी भी स्तर पर नहीं उठाया गया। इतने सालों में भी पुल नहीं बनने से अब ग्रामीणों में आक्रोश है।
सीतापुर की पूर्व प्रधान नमनी देवी का कहना है कि ग्रामीणों की परेशानियों से विधायक, मंत्री और जनप्रतिनिधियों को कोई मतलब नहीं है। वर्ष 2014 से आज तक एक पुल नहीं बन सका है। ग्रामीण अपना सामान मंडी तक पहुंचाने से लेकर अन्य कामों में कितनी परेशानी झेल रहे हैं, इससे नेताओं को कोई मतलब नहीं है। आपदा के दौरान भी यहां कई मकान क्षतिग्रस्त हुए, लेकिन सरकार या विधायक किसी ने सुध नहीं ली।

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