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उत्तराखंड की नियति : 5 साल में 7000 हादसे और 5000 मौतें!

सिस्टम पर सवाल

  • देवभूमि में केवल पिछले 4 महीने में हुए 500 एक्सीडेंट और 300 लोगों की मौत
  • लाखों की संख्या में यात्रियों को लाने ले जाने में लगे ड्राइवरों को नहीं मिल पाती पूरी नींद
  • मई और जून में चरम पर होता है श्रद्धालुओं का सैलाब, कमाई के चक्कर में लगाते हैं ज्यादा फेरे

देहरादून। देवभूमि में खासतौर पर चारधाम की यात्रा करना हर हिंदू श्रद्धालु का सपना होता है। उत्तराखंड में मई और जून दो महीने ऐसे होते हैं जब श्रद्धालुओं का सैलाब चरम पर होता है और उनको लाने ले जाने में लगे ड्राइवरों को नींद नसीब नहीं हो पाती है। वे दिन-रात सड़कों पर यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह छोड़ने में व्यस्त रहते हैं। क्योंकि चारधाम यात्रा की वजह से इन दो महीनों में लाखों की संख्या में सैलानी उत्तराखंड पहुंचते हैं। ऐसे में ड्राइवर अधिक पैसा कमाने के चक्कर में अपनी नींद से समझौता करते हैं और अधिक से अधिक यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह छोड़ने के चक्कर में हादसों का शिकार हो जाते हैं। जबकि परिवहन विभाग की भारी भरकम फौज चेकिंग के नाम पर लीपापोती में लगी रहती है और हादसों के समय बगलें झांकती नजर आती है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक रिखाड़ू खड्ड के पास जहां 26 यात्री मौत के मुंह में समा गये, उसके पीछे भी प्रथम दृष्टया ड्राइवर की नींद पूरी न होने की बात सामने आ रही है। जिस जगह पर यह बस दुर्घटनाग्रस्त हुई, वहां सड़क काफी चौड़ी है। ऐसे में वाहन यहां पर तेज रफ्तार से चला करते हैं। उन्होंने बताया कि तीर्थयात्रियों से भरी यह बस भी तेज गति में थी। इसी दौरान सामने से आ रहे वाहन को पास देते समय चालक बस पर नियंत्रण खो बैठा। बस की रफ्तार काफी तेज होने के बाद वह सड़क से बाहर निकलकर गहरी खाई में जा गिरी।
उत्तराखंड के पहाड़ों में गाड़ी चलाना हर किसी के बस की बात नहीं है। यहां इस साल जनवरी से अप्रैल तक यानि शुरुआती 4 महीनों में ही 500 से ज्यादा सड़क हादसों के मामले सामने आए हैं। इन हादसों में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जबकि 450 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इन हादसों के पीछे रैश ड्राइविंग, ओवर स्पीडिंग से लेकर गलत ड्राइविंग के 80 प्रतिशत से ज्यादा केस हैं।
चारधाम यात्रियों को डेंजर जोन, ब्लैक स्पॉट और भूस्खलन क्षेत्र से सुरक्षित आवाजाही कराना राज्य सरकार के साथ-साथ जिला प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है। उत्तराखंड ट्रैफिक निदेशालय के मुताबिक चारधाम यात्रा रूट पर 164 ब्लैक स्पॉट और 77 क्रैश साइट हैं, जो हादसों को दावत दे रहे हैं। ऐसे में ट्रैफिक विभाग ने सरकार को सूची भेजते हुए इन चिन्हित स्थानों के ट्रीटमेंट की गुहार लगाई है। मई और जून दो महीने ऐसे होते हैं, जब लाखों की तादाद में लोग उत्तराखंड पहुंचते हैं. बड़ी संख्या में यात्रियों के आने से ड्राइवरों को पैसे कमाने का अच्छा मौका हाथ लग जाता है। बिना सोए या बिना नींद पूरी किये ड्राइवर दिन-रात उत्तराखंड के दुर्गम रास्तों पर गाड़ियों चलाते हैं। ऐसे में उन लाखों लोगों की जान पर जोखिम बढ़ जाता है, जो पहाड़ों की हसीन यादों को तस्वीरों में कैद करने के लिए उत्तराखंड पहुंचते हैं।
उत्तराखंड पहाड़ी राज्य है। इस कारण यहां की सड़कें बहुत घुमावदार हैं। यानी ड्राइवर को लगातार स्टेयरिंग घुमाते रहना पड़ता है। एक तरफ पहाड़ होता है तो दूसरी तरफ खाई होती है। जहां ध्यान जरा सा टूटा, एकाग्रता भंग हुई हादसा होना तय है। या तो गाड़ी पहाड़ से टकराएगी या फिर खाई में गिरेगी। खाई भी कई सौ मीटर गहरी होती है। कई जगह खाई के नीचे नदी होती है। वैसे तो शराब पीकर गाड़ी चलाना प्रतिबंधित है। इसके बावजूद पहाड़ में अनेक चालक शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं। जिससे हादसों का जोखिम बढ़ जाता है। जांच के नाम पर भी परिवहन महकमा लीपापोती करता ही नजर आता है।
बीते रविवार को चार धाम यात्रा के श्रद्धालुओं को लेकर जा रही बस खाई में गिर गई। आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच साल में 7,000 वाहन दुर्घटनाओं में लगभग 5,000 लोग जान गंवा चुके हैं। करीब इतने ही लोग गंभीर रूप से घायल हुए। इस साल में ही राज्य में 500 सड़क दुर्घटनों में 300 लोगों की जान गई।
ये आंकड़े इसलिए भी डराते हैं क्योंकि जनसंख्या के लिहाज से उत्तराखंड में हादसों और उसमें होने वाली मौतें देश में सबसे ज्यादा हैं। इस हिमालयी राज्य में आपदा से भी ज्यादा मौतें सड़क दुर्घटनाओं से हुई हैं। एक और चौंकाने वाली बात ये हे कि दुनियाभर में जहां अच्छी सड़कों पर हादसे कम होते हैं, लेकिन उत्तराखंड में स्थिति उलट है। यहां हादसे उन स्थानों पर ज्यादा हो रहे है, जहां सड़क अच्छी है।
ऑल वेदर रोड बनने के बाद सड़कें काफी चौड़ी हो गई हैं। इससे ड्राइवर ओवर स्पीड से जा रहे हैं। मोड़ पर वाहन अनियंत्रित हो रहे हैं। मध्य प्रदेश के यात्रियों की बस भी यमुनोत्री में ओवर स्पीड के कारण खाई में गिरी। जांच में सामने आया कि ज्यादा फेरे लगाने के चक्कर में ड्राइवर सिर्फ 7 से 10 दिन में यात्रा पूरी कर रहे हैं। पहले इसमें 15 दिन लगते थे। तीर्थयात्रियों को ले जा रही ये बस 400 फीट नीचे खाई में गिरी थी। बस की हालत देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यात्रियों की कितनी दर्दनाक मौत हुई होगी।
यमुनोत्री हाइवे में डामटा के पास हुई मप्र के तीर्थयात्रियों की बस हादसे की जांच में प्रथम दृष्टि ड्राइवर की लापरवाही सामने आ रही है। घायलों में ड्राइवर हीरा सिंह भी है। खाई में गिरने से पहले ही उसने बस से छलांग लगा दी थी। हालांकि उसने पुलिस को बताया कि बस का स्टीयरिंग लॉक हो गया था, लेकिन अब जांच में सामने आ रहा है कि जहां बस गिरी, वहां पर सड़क बहुत चौड़ी थी। स्टीयरिंग लॉक भी हो जाता तो बस को रोका जा सकता था। बस की स्पीड तय सीमा से बहुत ज्यादा थी, इसलिए बस नहीं रोक सका।

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