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विश्व एड्स दिवस 2021: चार दशकों बाद भी लाइलाज है एड्स

World AIDS Day 2021: पूरा विश्व आज लाइलाज बीमारी कोरोना महामारी से त्रस्त है। लेकिन सिर्फ कोरोना ही नहीं बल्कि विश्व में कई ऐसी और बीमारियां हैं जो आजतक लाइलाज हैं। वैज्ञानिक न ही उन बिमारियों का कोई टिका बना पाए हैं न ही कोई और तोड़ खोज पाए हैं। उनमें से एक बीमारी है एड्स। दुनियाभर में लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल एक दिसम्बर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। डब्ल्यूएचओ ने सबसे पहले वैश्विक स्तर पर विश्व दिवस मनाने की शुरुआत अगस्त 1987 में की थी। लेकिन डब्ल्यूएचओ ने 1988 में 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में घोषित किया। कहा जाता है कि एड्स के जागरूकता अभियान से जुड़े जेम्स डब्ल्यू बुन और थॉमस नेटर नाम से ही इसकी शुरुआत की गयी थी। साल 1986 में पहली बार एड्स के वायरस को एचआईवी यानी ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी यानी एचआईवी वायरस का नाम मिला। और 1988 से हर साल एक दिसंबर को वर्ल्ड एड्स डे मनाया जाता है। वर्ल्ड एड्स डे मनाने का उद्देश्य लोगों को इन संक्रमण के प्रति जागरुक बनाने के साथ ही इसकी वजह से मरे लोगों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि देना है।
एड्स आज के आधुनिक समय की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। यूनीसेफ की रिपोर्ट की मानें तो अब तक 37 मिलियन से ज्यादा लोग HIV के शिकार हो चुके हैं। और अनुमानित 37.7 मिलियन व्यक्ति इसके साथ रह रहे थे। 2020 के अंत में यह दुनिया की सबसे घातक बीमारियों में से एक है। वहीं, भारत सरकार द्वारा जारी किए गए आकड़ों के अनुसार भारत में एचआईवी के रोगियों की संख्या लगभग 3 मिलियन के आसपास है।
एड्स क्या क्या है?
एड्स का मतलब अक्वायर्ड इम्यूनोडिफिशिएंसी सिंड्रोम हैI यह एचआईवी संक्रमण कि सबसे अंत में होनी वाली अवस्था हैI एचआईवी यानी ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस, एक ऐसा वायरस है जो शरीर में कोशिकाओं पर अटैक करता है, जो शरीर को इंफेक्शनन से लड़ने में मदद करता है, जिससे व्यक्ति अन्य संक्रमणों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। सरल शब्दों में कहें तो यह एक ऐसी स्थिति है जो तब आती है जब इम्यून सिस्टीम पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है। वायरस मानव रक्त, यौन तरल पदार्थ और स्तन के दूध में रहता है और जब इसका ट्रीटमेंट नहीं किया जाता है, तो यह एड्स की ओर जाता है। आमतौर पर यह असुरक्षित यौन संबंध, एचआईवी वाले व्यक्ति के संपर्क में आए इंजेक्शन या उपकरण को साझा करने से हो सकता है। मानव शरीर एचआईवी से छुटकारा नहीं पा सकता है, क्योंकि दुनिया भर में फिलहाल एचआईवी का कोई प्रभावी इलाज मौजूद नहीं है। इसलिए, एक बार एचआईवी हो जाने के बाद, यह जीवन भर आपके साथ रह सकता है।
1981 में सामने आया था एचआईवी का पहला मामला…
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, एड्स का पहला मामला साल 1981 में सामने आया था। और इस जानलेवा बीमारी की उत्पत्ति किन्शासा शहर में हुई, जो अब डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो की राजधानी है। बताया जाता है कि किन्शासा बुशमीट का बड़ा बाजार था। संभावना जताई गई थी कि वहीं से संक्रमित खून के संपर्क में आने से यह बीमारी इंसानों में पहुंची। अमेरिका के ‘सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ की रिपोर्ट कहती है कि एचआईवी का वायरस समलैंगिक युवकों के बीच संबंधों के कारण फैला। 38 साल पहले 1981 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के लॉस एंजिलिस के पांच पुरुषों में यह वायरस पाया गया, जो समलैंगिक थे। पहला मामला ‘गैटन दुगास’ ना के व्यक्ति में मिला। गैटन पेशे से एक कैनेडियन फ्लाइट अटेंडेंट था। कहा यह भी जाता है कि उसने अमेरिका के कई लोगों से जानबूझ कर संबंध बनाए थे। इसी कारण उसे ‘पेशेंट जीरो’ का नाम दिया गया था। अमेरिका में जब यह बीमारी जानकारी में आई, तब से शुरुआती आठ सालों तक एचआईवी के 92 फीसदी मरीज पुरुष ही होते थे। बाद के सालों में धीरे-धीरे यह बीमारी महिलाओं में भी फैली।
चिंपांजी से इंसानों में फैला एचआईवी…
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह तथ्य सामने आए हैं कि एक चिंपैंजी से यह बीमारी इंसान में पहुंची। बताया जाता है कि एचआईवी एड्स सबसे पहले कॉन्गो में एक चिंपांजी की वजह से हुआ, जब कैमरून के जंगलों में एक घायल चिंपांजी ने एक शिकारी को खरोंचा और काट लिया था। इससे शिकारी के शरीर पर भी गहरे जख्म हो गए थे। इसी दौरान घायल चिंपाजी का खून शिकारी के शरीर में मिल गया और इसी से एचआईवी का संक्रमण फैल गया।
लाइलाज है एड्स…
एड्स का पूरा इलाज अभी तक खोजा नहीं जा सका है। इसकी कोई वैक्सीन नहीं है और ना ही इसकी कोई एंटीबायोटिक बनी है। लेकिन यह भी सच है कि कुछ उपचार पूरी तरह से नहीं तो काफी हद तक प्रभावी भी है। फिर भी ये उपचार व्यक्ति का जीवन 20 साल से ज्यादा तक बढ़ा सकते हैं।
एड्स खत्म करने का लक्ष्य…
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि एड्स और अन्य महामारियों के इलाज के प्रयासों में भारी असामानता को खत्म करना बहुत जरूरी है। इस असमानता के खिलाफ कड़े कदम ना उठाए गए तो हम साल 2030 तक एड्स को खत्म करने के लक्ष्य को गंवाने का जोखिम बना रहेगा। इससे सामाजिक आर्थिक समस्याएं और गहरी होती जाएंगी।
विश्व एड्स दिवस 2012 की थीम…
विश्व एड्स दिवस महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आज के समाज में एचआईवी के कलंक के खिलाफ बोलने का भी काम करता है। इस तरह अधिक से अधिक लोगों को चाहे वे किसी भी जाति या पंथ के हों, एचआईवी जागरूकता के लिए अपना समर्थन देने के लिए कहा जाता है। इस साल वर्ल्ड एड्स डे की थीम भी इसी तर्ज पर है- “असमानता समाप्त करें, एड्स का अंत करें ”।
कोविड-19 महामारी ने दुनिया को कई ऐसे सबक दिए हैं जो एड्स के खिलाफ काम करने के जरूरत पर बल देते हैं। एड्स का पहला मरीज सामने आने के 40 साल बीतने के बाद भी एचआईवी दुनिया के लिए खतरा बना हुआ है। आज दुनिया साल 2030 तक एड्स को खत्म करने के लक्ष्य को हासिल करने के प्रयासों से भटक गई है। ऐसा ज्ञान और उपकरणों की कमी के कारण नहीं है, बल्कि संरचनात्मक असमानताओं के कारण है जिनसे एचआईवी की रोकथाम और उपचार के लिए सिद्ध समाधान बाधित हो रहे हैं। अगर एड्स के खिलाफ प्रयासों में असमानता को खत्म करने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए तो हो सकता है हमें लाखों करोड़ों मौतें और देखनी होगी।

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