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रैणी गांव में मकानों पर पड़ी हैं दरारें

  • वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने भी सौंपी सर्वे रिपोर्ट

देहरादून। चिपको आंदोलन की धरती रैणी गांव में कई घरों में दरारें पड़ी हुईं हैं। अब कोई दूसरी आपदा न आ जाए, लोगों को इसका डर सता रहा है। गौरा देवी की सहेली रही उखा देवी ने गांव के पुनर्वास की मांग की है। उन्होंने कहा कि गांव में कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। उनका गांव ऋषि गंगा से करीब 500 मीटर की दूरी स्थित है। गांव के नीचे नदी ने कटान कर दिया है। इससे भविष्य में खतरा हो सकता है। ग्राम प्रधान भवान राणा का कहना है कि 7 फरवरी को आई आपदा से गांव में लोग डर रहे हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉक्टर कालाचांद सांईं की अगुवाई में संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम ने नीती घाटी में आई भयावह प्राकृतिक आपदा के उद्गम स्थल का एरियल सर्वे कर तमाम अहम जानकारियां जुटाई हैं। संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम ने उद्गम स्थल का एरियल सर्वे करने के साथ ही उन तमाम इलाकों का भी एरियल सर्वे किया, जहां आपदा के बाद भारी तबाही हुई है। आपदा से हुई तबाही को देखकर संस्थान के वैज्ञानिक भी हैरान हैं।

चमोली आपदा को लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के की ओर से डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी यानी डीएसटी को प्रथम दृष्टया रिपोर्ट सौंप दी गई है। वाडिया इंस्टीट्यूट की ओर से डीएसटी को भेजी गई रिपोर्ट में बताया कहा गया है कि चमोली के नीती घाटी में भारी भरकम चट्टानों के साथ ही हैंगिंग ग्लेशियर के टूटने और लाखों टन बर्फ नीचे खिसकने की वजह से भयावह आपदा आई।

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